Category हिंदी कविता

विश्व हिंदी दिवस पर कविता / राकेश राज़ भाटिया

विश्व हिंदी दिवस पर कविता “यह हिंदी मन के हर भाव की भाषा है” स्नेह भरे हर मन से मन के यह लगाव की भाषा है। जो रिश्तों को अमृत देता है उस आव की भाषा है।।जब अधरों को छू…

क्या होगा / विनोद सिल्ला

क्या होगा हाथ हाथ को काट रहा है क्या होगा।भाई भाई को बांट रहा है क्या होगा।। कटना बंटना रास रहा है उसको तो,एक एक को छांट रहा है क्या होगा।। शेर  बकरियां एक घाट कैसे पीएं,नाम शेर के घाट…

अंग्रेजी नववर्ष अभिनंदन / आचार्य गोपाल जी

अंग्रेजी नववर्ष अभिनंदन १.कहें चौबीस अलविदा, स्वागत है नववर्ष|मंगल मोद मना रहे़ं , है प्रतीक्षा सहर्ष ||है प्रतीक्षा सहर्ष, स्वप्न चौबीस के सजे|हर्षित जनमन‌ आज, नूतन संवत् विराजे||विनय करे ‘गोपाल’ , खुशी बाँटते सब रहे़ं।अंग्रेजी वर्ष की ,शुभेच्छा भी सभी…

एक जनवरी पर कविता / शिवशंकर शास्त्री “निकम्मा”

एक जनवरी भारत का,कोई  भी नूतन साल नहीं।। चैत्र प्रतिपदा शुक्ल पक्ष,नववर्ष है, किसको ख्याल नहीं? पेड़ों में पत्ते हैं पुराने,ठिठुर रहे हम जाड़े में।धुंध आसमां में छाए हैं,जलती आग ओसारे में।।तन में लपेटें फटे पुराने,कहीं न जाड़ा लग जाए,।धूप…

यह पतन का पाशविक उत्थान /रेखराम साहू

     यह पतन का पाशविक उत्थान है शीर्ष से आहत हुआ सोपान है,भूमिका का घोर यह अपमान है। झुर्रियों का जाल है जो भाल पर,काल से संघर्ष का आख्यान है। पारितोषिक में अनाथालय उसे,उम्र भर जिसने किया बलिदान है। युद्ध…

हमर का के नवा साल !/ राजकुमार ‘मसखरे’

*हमर का के नवा साल !* हमर का के नवा साल….उही दिन-बादर,उही हालहमर का के नवा साल…. बैंक  म  करजा  ह  माढ़े  हेसाहूकार  दुवारी  म  ठाढ़े हेये रोज गारी,तगादा देवत हेदिनों दिन हमर खस्ता हालहमर का के नवा साल…..! नेता …

नया साल ख़ास / अकिल खान

             नया साल ख़ास वक्त के साथ दिन-महीने,और बदल गए साल,निरंतर आगे बढ़ना है,यही है समय की चाल।मेहनत से हम सबको कुछ पाने की है,आश,यही है उम्मीद सभी का हो,नया साल ख़ास। नूतन वर्ष 2025 का,किजीए सभी इस्तकबाल,विनम्रता से बनाईए…

दरूहा सरकार पर कविता/ बिसेन कुमार यादव’बिसु’

दरूहा सरकार। कोन किथे निपोर मन,इहा राम राज्य आवत हे।राम राज्य नई मोर भाई,दरुहा राज्य बनावत हे छत्तीसगढ़ के मनखे मन ला,अऊ दारू पिये बर सिखावत हे।सरकार हा खुदे जनता मन ला, मनपसंद दारू पियावत हे। सरकार हा मोबाइल फोन…

गृहलक्ष्मी पर कविता/ डॉ नीतू दाधीच व्यास

तुम आओगी क्या? मैं तुम्हें अपनी गृहलक्ष्मी बनाऊंगा,तुम आओगी क्या?बस तुम संग एक छोटा सा संसार बसाऊंगा,तुम आओगी क्या? नहीं लाऊंगा तोड़कर कोई चाँद – तारें,न ही जुगनू से रोशनी कराऊंगा।मैं तो तुम्हारे हाथों से ही, घर के मंदिर में…

खूबसूरत है मग़र बेजान है / रेखराम साहू

खूबसूरत है मग़र बेजान है खूबसूरत है मग़र बेजान है,ज़िंदगी से बुत रहा अनजान हैं। बेचता ताबीज़ है बहुरूपिया,है वही बाबा, वही शैतान है। माँगता है,शर्त रखता है कभी,‘प्यार का दावा’, अभी नादान है । रूह की कीमत बहुत नीचे…