Category: दिन विशेष कविता

  • वीर वीरमदेव और बाहुबली – शंकर आँजणा

    फिल्म बाहुबली का यह दृश्य तो सभी को याद होगा ही जब नायक बाहुबली एक विशाल शिवलिंग को अपने कंधों पर उठाकर झरने की ओर ले जाता है।पता नही निर्माता को इस दृश्य की प्रेरणा कहां से मिली होगी ?

    kavita
    hindi gadya lekh || हिंदी गद्य लेख

    वीर वीरमदेव और बाहुबली – शंकर आँजणा

    पिक्चर में यह दृश्य देखते ही मुझे अपने शहर जालोर का इतिहास याद आया। सैकड़ों वर्ष पहले भारतीय इतिहास के एक महानायक वीर कान्हड़देव एवं उनके पराक्रमी पुत्र वीर वीरमदेव ने अलाउद्दीन खिलजी की सेना के कब्जे से सोमनाथ महादेव की शिवलिंग मुक्त करवाकर करवाया था । बाहुबली का दृश्य देखकर मेरे मन में एक ऐसा दृश्य उभर कर आया मानो बहुत विशाल मैदान है , युद्ध चल रहा है, धरती लाशों से अटी पड़ी है और उस सब के बीच में से युवराज वीरमदेव म्लेच्छ सेना के कब्जे से शिवलिंग को मुक्त करवाकर आगे बढ़ रहे हैं।

    फिल्म बाहुबली में अभिनेता की जैसी कद काठी बताई गई है वीर वीरमदेव उससे 21 ही रहे होंगे। सुंदर इतने कि दिल्ली सल्तनत की राजकुमारी उनसे विवाह करने की हठ कर बैठी और पराक्रमी इतने है कि उस जमाने के कुश्ती के सबसे बड़े पहलवान भीमकाय शरीर वाले पंजू पहलवान को नवयुवक वीर वीरमदेव पटखनी दे दी।

    अब सुनिए पूरी कथा –

    बाहुबली देख कर वीरमदेव की याद क्यों आई । यह बात विक्रम संवत 1355 अर्थात सन 1298 की है। दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन को सोमनाथ मंदिर लूटने के लिए गुजरात पर आक्रमण करना था।
    दिल्ली से गुजरात का रास्ता जालौर से होते हुए जाता था और जालौर के उस समय के महाराजा कान्हड़ देव अपने स्वधर्म एवं स्वराष्ट्र के लिए अत्यंत समर्पित पराक्रमी राजा थे। अलाउद्दीन खिलजी का लक्ष्य सोमनाथ का वैभव लूटना एवं गुजरात का मान भंग करना था इसलिए उसने जालोर से उलझने की बजाय जालोर के महाराजा से गुजरात जाने के लिए रास्ता मांगा।

    दिल्ली के मुकाबले जालोर बहुत छोटा स्थान था किंतु यहां के राजा परम स्वाभिमानी वीर कान्हड़देव ने दो टूक उत्तर दिया कि मंदिरों को ध्वंस करने वाले और गौ माता की हत्या करने वाले दुष्ट मलेच्छ को हमारे राज्य से होकर जाने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। अल्लाउद्दीन का लक्ष्य गुजरात था अतः सुल्तान की सेना मेवाड़ के रास्ते गुजरात गई ,गुजरात लूटा और सोमनाथ के मंदिर में भीषण विध्वंस करते हुए सोमनाथ के शिवलिंग को चमड़े में बांधकर साथ लेकर लौटे। सुल्तानी सेना का नेतृत्व उलूग खां और नुसरत खां कर रहा था।

    जीत के अहंकार में उन्होंने वापसी में जालोर होते हुए निकलना तय किया। जालोर के निकट ही सेना ने अपना पड़ाव डाला और जालौर के राजा को यह चुनौती भी दे डाली कि हम बिना अनुमति के जालोर से होते हुए जा रहे हैं और आपके आराध्य भगवान सोमनाथ का शिवलिंग भी वहां से उठाकर लाए हैं ।
    दिल्ली की सेना के पड़ाव का समाचार मिलने पर जालोर महाराजा ने इस चुनौती को स्वीकार किया , भगवान सोमनाथ के शिवलिंग को मुक्त करवाने का निर्णय लिया और अपनी रणनीतियां तय की । इस बीच पड़ाव के दौरान सुल्तान की सेना में लूट के माल के बंटवारे को लेकर कुछ विवाद हुआ। इस कारण उनकी सेना में भी गुटबाजी हो गई थी ।

    वीर वीरमदेव, कांधल ,जेत्रा देवड़ा( जयवंत देवड़ा) जैसे पराक्रमी सेना नायकों के नेतृत्व में जालोर की सेना ने सुल्तान की सेना को घेर कर भीषण युद्ध किया , परास्त किया और भगवान सोमनाथ को मुक्त करवाया।

    कछु मारेसि कछु मर्देसि, कछु मिलएसि धरि धूरि।
    कछु पुनि जाइ पुकारे, प्रभु मर्कट बल भूरि ।

    कुछ कुछ ऐसा ही दृश्य रहा होगा उस युद्ध का।
    बाहुबली को कंधे पर शिवलिंग उठाए वह दृश्य देखकर इस युद्ध में सोमनाथ के शिवलिंग को मुक्त करवाते हुए वीर वीरमदेव का स्मरण होना स्वभाविक ही है।
    इस पहले युद्ध मे सुल्तान की सेना का बहुत बड़ा भाग यहां नष्ट हुआ। शेष बचे कुछ सैनिकों ने दिल्ली जाकर समाचार दिया। इसके बाद दो बार और युद्ध हुआ है ।उसका एक अलग लंबा इतिहास है,उस पर चर्चा फिर कभी।
    आज वैशाख शुक्ल षष्ठी को इन्ही वीर वीरमदेव का बलिदान दिवस है , उनके श्री चरणों मे सादर प्रणाम।

    शंकर आँजणा नवापुरा धवेचा
    बागोड़ा जालोर

  • दूर संचार करेगा विकास का योग -अशोक शर्मा

    इसे सुनेंविश्व दूरसंचार दिवस १७ मई को मनाया जाता है। यह दिन 17 मई 1865 को अंतर्राष्ट्रीय दूरसंचार संघ की स्थापना की स्मृति में विश्व दूरसंचार दिवस के रूप में जाना जाता था। वर्ष1973 में मैलेगा-टोर्रीमोलिनोन्स में एक सम्मेलन के दौरान इसे घोषित किया गया।

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    दूरसंचार पर कविता



    समय पुराने अतीत काल में,
    दूर दराज के हाल चाल में,
    चिट्ठी आती खुशियां लाती,
    बहुत पुराना हाल बताती।


    हाल चाल जब उधर से आवे,
    बड़ी देर समाचार बतावे।
    खबर मिले जब तुरंत हरसावे,
    पर वो खबर बूढ़ी हो जावे।


    फिर आया नव दूर संचार,
    नए तरीके नया विचार।
    पल भर में यह बात सुनावे,
    कब कहाँ कैसे हैं बतलावे।


    भाव दिलों के दूर से आवे,
    अस लागे जैसे पास ही पावे।
    देख देख मुखड़ा हँस हँस कर,
    बात होती चिपक चिपककर।


    और कुछ खास बातों में,
    लिखकर होती रातों रातों में।
    खोज एक से एक अनमोल,
    मैसेज मिलने में कोई न झोल।


    युग ऐसा तरक्की का आया,
    सब कुछ पलमें द्वार है लाया।
    अतिशय बुरा हर चीज का भाई,
    यदि बिन सोचे दुरुपयोग हो जाई।


    संयम से यदि करें उपयोग,
    दूर संचार करेगा विकास का योग।।


    ★★★★★★★★★★★
    अशोक शर्मा 17.05.21
    ★★★★★★★★★★★

  • मेरा परिवार- शंकर आँजणा ( परिवार दिवस पर कविता)

    संयुक्त राष्ट्र अमेरिका ने 1994 को अंतर्राष्ट्रीय परिवार वर्ष घोषित किया था। समूचे संसार में लोगों के बीच परिवार की अहमियत बताने के लिए हर साल 15 मई को अंतर्राष्ट्रीय परिवार दिवस मनाया जाने लगा है। 1995 से यह सिलसिला जारी है। परिवार की महत्ता समझाने के लिए विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।

    परिवार
    15 मई अंतर्राष्ट्रीय परिवार दिवस 15 May International Family Day

    मेरा परिवार- शंकर आँजणा


    दिए की बाती समान हूँ मैं
    सदा अपनो के लिए जलता हूँ।

    रोशनी देता हूं परिवार को सदा मैं
    उनके लिए दिल में उमंगें रखता हूँ ।

    चाहे कितनी भी बाधाओं में फंसा हूँ मैं
    सदा परिवार के लिए ही खड़ा रहता हूँ ।

    आंच न आये परिवार पे सोचता हूँ मैं
    खुद को दीये सा जलाये रखता हूँ ।

    यूं तो परेशानियां बहुत आती जीवन में
    लो उनसे भी दो-दो हाथ करता रहता हूँ ।

    मेरा परिवार भी जान लुटाए मुझ पर ,
    बस इसलिए मैं भी मजबूत खड़ा रहता हूँ।

    दीए की बाती समान हूँ मैं
    सदा अपनो के लिए जलता हूँ।

    दीए का काम हैं जलकर रोशनी देना हरेक को।
    चाहता हूँ कष्ट झेलके ,मैं रोशन करूं अपनों को ।


    शंकर आँजणा नवापुरा धवेचा
    बागोड़ा जालोर-343032
    कक्षा स्नातक तृतीय वर्ष
    मो.8239360667

  • विश्व परिवार दिवस पर – प्रियांशी की कविता

    संयुक्त राष्ट्र अमेरिका ने 1994 को अंतर्राष्ट्रीय परिवार वर्ष घोषित किया था। समूचे संसार में लोगों के बीच परिवार की अहमियत बताने के लिए हर साल 15 मई को अंतर्राष्ट्रीय परिवार दिवस मनाया जाने लगा है। 1995 से यह सिलसिला जारी है। परिवार की महत्ता समझाने के लिए विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।

    परिवार
    15 मई अंतर्राष्ट्रीय परिवार दिवस 15 May International Family Day

    विश्व परिवार दिवस पर प्रियांशी की कविता

    परिवार में होते कई सदस्य
    सबकी अलग है भूमिका ।
    कोई हर काम में तेज़ तो
    तो कोई हर काम है फीका ।

    कहीं दादा-पोते में है प्यार,
    कहीं दादी की मीठी फटकार,
    कहीं मम्मी की प्यारी  डांट,
    तो पापा के अपने ही ठांठ।

    छोटों की चहल-पहल,
    और होती बड़ों की गम्भीरता,
    इन सबके मेल से होती
    परिवार जनों में एकता।

    परिवार का साथ है तो
    लगता हर दिन त्योहार है,
    जिसमें सबकी जीत हो,
    ना होती किसी की हार है।



    -प्रियांशी मिश्रा
    उम्र:16

  • सफ़ेद कपड़ों में लिपटी हुई देवी (विश्व नर्स दिवस पर कविता)- नमिता कश्यप

    इंटरनेशनल काउंसिल ऑफ नर्सेस (नर्स लोगन के अंतर्राष्ट्रीय समीति) एह दिवस के 1965 से हर साल मनावेले। जनवरी 1974, से एकरा के मनावे के दिन 12 मई के चुनल गइल जवन की फ्लोरेंस नाइटेंगल के जन्म दिवस हवे। फ्लोरेंस नाइटेंगल के आधुनिक नर्सिंग के संस्थापक मानल जाला।

    सफ़ेद कपड़ों में लिपटी हुई देवी (विश्व नर्स दिवस पर कविता)- नमिता कश्यप

    सफ़ेद कपड़ों में लिपटी हुई देवी

    एक दिन पूछा था किसी ने..
    उन सफ़ेद कपड़ों में लिपटी हुई देवी से,
    “सबकी सेवा करती हुई तुम कभी थकती नही,
    ना ही आता है हिचकिचाहट का कोई भाव
    तुम्हारे मुख मंडल पर…
    कैसे हो इस स्वार्थ भरे संसार में इतनी निःस्वार्थ तुम।”
    सफ़ेद लिबास वाली वो देवी…रुकी…मुस्कुराई….
    फिर अपना काम करते हुए बोली,
    “किसने कहा तुमसे कि निःस्वार्थ हूँ मैं?
    हर इंसान की तरह मेरे भी स्वार्थ है,
    अपना काम करते हुए ही मिलती हैं वो चीजें मुझे,
    जो बना देतीं हैं मुझे सबसे अमीर।
    बेबसों को संभालकर मुझे सब्र मिलता है,
    घाव पर उनके मरहम लगाकर….
    अपने घाव भरते प्रतीत होते हैं मुझे,
    लाचारों को पहुँचाकर उनकी सही स्थिति में
    मैं पाती हूँ उनकी ढेरो दुआयें…
    और मुस्कुराते हुए देखकर उन्हें उनके अपनों के साथ
    मिलता है गहरा सुकून मुझे,
    तो कहो! कहाँ निःस्वार्थ हूँ मैं?”
    प्रश्न पूछने वाला खड़ा रहा….अवाक….
    जब होश आया तो बस सर झुका दिया उसने
    उन सफ़ेद कपड़ों में लिपटी देवी के सामने….।


    – नमिता कश्यप