Category: दिन विशेष कविता

  • बस वही परिवार है (परिवार पर कविता )- नमिता कश्यप

    संयुक्त राष्ट्र अमेरिका ने 1994 को अंतर्राष्ट्रीय परिवार वर्ष घोषित किया था। समूचे संसार में लोगों के बीच परिवार की अहमियत बताने के लिए हर साल 15 मई को अंतर्राष्ट्रीय परिवार दिवस मनाया जाने लगा है। 1995 से यह सिलसिला जारी है। परिवार की महत्ता समझाने के लिए विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।

    परिवार
    १५-मई-विश्व-परिवार-दिवस-पर-लेख-15-May-World-Family-Day

    बस वही परिवार है

    माता-पिता का लाड़ है,अपनों का और दुलार है।
    गलती करें तो डाँट भी,पर मन में प्रेम अपार है।
    बस वही परिवार है,हाँ वही परिवार है।

    सब बातें होतीं पास में, जब साथ बैठें रात में,
    बातों ही बातों में बढ़े जो,मीठी सी तकरार है,
    बस वही परिवार है,हाँ वही परिवार है।

    ना किसी की जीत है और ना किसी की हार है,
    एक-दूजे की खुशी,जीवन का सबके सार है,
    जब साथ हो विश्वास हो,खुद चलके आती बहार है,
    बस वही परिवार है,हाँ वही परिवार है।

    प्यार जिसकी नींव है,सम्मान ही आधार है,
    हैं जुड़े रहते दिलों से दिल के हरदम तार हैं,
    सब साथ मिलकर काटते,मुश्किल का हर जो पहाड़ है,
    बस वही परिवार है,हाँ वही परिवार है।

    नमिता कश्यप

  • परिवार की खातिर ( कविता ) by neha sharma

    संयुक्त राष्ट्र अमेरिका ने 1994 को अंतर्राष्ट्रीय परिवार वर्ष घोषित किया था। समूचे संसार में लोगों के बीच परिवार की अहमियत बताने के लिए हर साल 15 मई को अंतर्राष्ट्रीय परिवार दिवस मनाया जाने लगा है। 1995 से यह सिलसिला जारी है। परिवार की महत्ता समझाने के लिए विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।

    परिवार
    15 मई अंतर्राष्ट्रीय परिवार दिवस 15 May International Family Day

    परिवार की खातिर ( कविता )

    मजबूरी है साहब वरना वो
    भीख नहीं मांगता,
    यूँ बेसुध हो गलियों की
    खाक नहीं छानता।
    मजबूरी है तभी वो हाथ फैलता है,
    तपती ज़मीन पर नंगे पैर चला आता है।
    अपनी हालत पर रोता भी होगा,
    क्या पता रात को वो सोता भी होगा।
    उसका घर परिवार भी होगा,
    छोटा सा एक संसार भी होगा।


    कलियाँ भी चटकी होंगी कभी उसके आँगन में,
    खुशियों की बरसात भी हुई होंगी सावन में।
    क्या पता कैसे वो दीन बन गया,
    क्यों सबकी निगाहो में हीन बन गया।
    कहते है जैसा कर्म किया वैसा ही मिलता है,
    जैसा बीज होगा वैसा ही फूल खिलता है।
    वो कर्मो का नहीं शायद
    ग़रीबी का मारा है,
    हाँ गरीब ही है
    इसलिए बेसहारा है।


    इनकी भी तो कोई आस होती है,
    जीवन की अधूरी कोई प्यास होती है।
    बिखर कर रह जाते है सारे सपने,
    आंखे बिना नींद के सोती है।
    ईश्वर की भी अजीब माया है,
    जाने कौन सा ये खेल रचाया है।
    किसी को थमा दी लाखो की दौलत,
    और किसी को दर का भिखारी बनाया है।

    नेहा शर्मा….

  • आखिर हम मजदूर है- कविता, महदीप जंघेल

    आखिर हम मजदूर है- कविता, महदीप जंघेल

    मजदूर जिसे श्रमिक भी कहते हैं। मानवीय शक्ति के द्वारा जिसमें दिमागी कार्य,शारीरिक बल और प्रयासों से जो कार्य करने वाला होता है, उसे ही मजदूर कहा जाता है। कार्य करने के उपरान्त जो कार्य को अपनी मेहनत के द्वारा अपनी मानवीय शक्ति को बेच कर करे, उसी का नाम मजदूर कहा गया है।

    1 मई अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस 1 May International Labor Day

    आखिर हम मजदूर है (मजदूर दिवस) विधा -कविता

    हम मजदूर है,
    मजदूरी हमारा काम।
    पत्थर से तेल निकाला हमने,
    नही हमेआराम।
    कंधे अड़ा दे, तो
    हर काम बन जाए,
    हाथ लगा दे,तो
    बड़ा नाम बन जाए।
    मेहनत मजूरी हम करते,
    बड़े से बड़ा काम होता है।
    पसीने की बूंद हम टपकाते,
    औरों का नाम होता है।
    सड़क पुल हमने बनाया,
    दुनिया को हमने सजाया।
    हमे सिर्फ मेहनत मजूरी मिली,
    इनाम और नाम किसी और ने पाया।
    दुनिया का हर कार्य हमने किया,
    विकास का पथ हमने दिया।
    हर कार्य में कंधे लगाया,
    नाम दाम किसी और ने पाया।
    मेहनत पूरी की, फिर भी
    वजूद नही,आखिर हम मजदूर है।
    रोज खाने रोज कमाने को ,
    आखिर हम मजबूर है।
    बडा घर ,बड़ा महल बनाया,
    जीते जी कभी न रह पाया।
    झुग्गी झोपड़ी में रहने को ,
    हम मजबूर है।
    आखिर हम एक मजदूर है।
    हमने सब कुछ किया,
    अपना जीवन समर्पित किया।
    विश्व की प्रगति हेतू,
    तन मन अर्पित किया।
    हम एक मजदूर,
    झोपड़ी में रहने को मजबूर।
    न कोई सुविधा न कोई राहत,
    आखिर हम एक मजदूर।
    न कोई गम ,न कोई दुःख,
    हम साहसी और मजबूत है।
    हमारी मेहनत से ये दुनिया टिका है,
    लाचार नही ,
    हम मेहनतकश मजदूर है।

    महदीप जंघेल
    खमतराई,खैरागढ़

  • परिवार – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    परिवार (family) साधारणतया पति, पत्नी और बच्चों के समूह को कहते हैं, किंतु दुनिया के अधिकांश भागों में वह सम्मिलित वासवाले रक्त संबंधियों का समूह है जिसमें विवाह और दत्तक प्रथा स्वीकृत व्यक्ति भी सम्मिलित हैं।

    परिवार
    १५-मई-विश्व-परिवार-दिवस-पर-लेख-15-May-World-Family-Day

    परिवार – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    परिवार , जीवन का आधार
    परिवार, समाज के उद्भव का आधार

    परिवार से , संस्कृति और पलते संस्कार
    परिवार, धर्म का विस्तार

    परिवार से ये कायनात रोशन
    परिवार से प्रकृति का श्रृंगार

    परिवार राष्ट्र की धरोहर
    परिवार से मिलता एकता को बल

    परिवार से ही रोशन होता यह संसार
    परिवार, मर्यादाओं का विस्तार

    परिवार , अनुशासन का आधार
    परिवार से रोशन होता आशियाँ

    परिवार , ग़मों को साझा करने का आधार
    परिवार, खुशियों को जीने का आधार

    परिवार से मुकम्मल होती ये कायनात
    परिवार से ही सामाजिकता का विस्तार

    परिवार , एक अनुपम उपहार
    परिवार ! परिवार ! परिवार !

  • रिश्तों का ख़ून – 15 मई विश्व परिवार दिवस विशेष कविता

    परिवार (family) साधारणतया पति, पत्नी और बच्चों के समूह को कहते हैं, किंतु दुनिया के अधिकांश भागों में वह सम्मिलित वासवाले रक्त संबंधियों का समूह है जिसमें विवाह और दत्तक प्रथा स्वीकृत व्यक्ति भी सम्मिलित हैं।

    परिवार
    १५-मई-विश्व-परिवार-दिवस-पर-लेख-15-May-World-Family-Day

    रिश्तों का ख़ून – 15 मई विश्व परिवार दिवस

    ख़ून के रिश्ते सम्भालो यारों, रिश्तों का ना ख़ून करो।
    आप सम्पन्न हो गये हो तो, उनका दु:ख मालूम करो।
    शायद हीन भावना हो उनमें, या आपसे कतराते हों।
    या सीधेपन का फायदा उठा उन्हें कोई भड़काते हों।

    ख़ून के रिश्ते अपने होते, वो रिश्तेदार तुम्हारा है।
    ईर्श्या, नफ़रत मत पालो, ख़ून आखिर तुम्हारा है।
    भाई हो आर्थिक कमजोर, हाथ उसका थाम लो।
    तुम अगर सक्षम हो तो, ईश्वर की मर्जी मान लो।

    माना कुछ गलतफहमियां, आपस में हो ही जाती हैं।
    दु:ख तकलीफ़ में आख़िर याद आप ही की आती है।
    अपनों के होते अपने दूसरों के आगे हाथ फैलाते है ।
    तो अपने साथ आपकी भी इज्जत पे बट्टा लगाते है।

    अनाथालयों में दान करो और अपना भूखा सोता है।
    बहन तंगहाल जीवन जीती, उसका परिवार रोता है।
    संस्थाओं में धन दान करो, भाभी के घर ना आटा है।
    ईश्वर क्या तुमसे खुश होगा, वही तो सबका दाता है।

    ख़ून के रिश्तों की मदद करो, यही फर्ज तुम्हारा है।
    उनसे ईर्श्या द्वेश, भाव करो तो पतन भी तुम्हारा है।
    रिश्तों का ख़ून मत करो, रिश्तों से पहचान होती है।
    गले लगाकर देखो तो, रिश्तों में अपनायत होती है।

    राकेश सक्सेना