दीपक पर कविता

दीपक पर कविता

दीया जलाएं- सुरंजना पाण्डेय

माना कि चहुँओर घोर तमस है
अन्धियारा घना छाया बहुत हैं।
पर दीया जलाना कब मना है
आईए हम मन में विश्वास का
एक दीया तो ऐसे जलाएं।


हम सब हर दिन कुछ ऐसे बिताएं
खुशियों का करें हम ईजाफा।
खुशियों को चहुँदिशों जगमगाएं
एक दिया हो मन में ओज का,
एक शान्ति का दिया द्वार पर रखे।
नकारात्मकता को बाहर फेंके
सकारात्मकता को जीवन में शामिल करे।


एक दीया हो तो हमारे अपनो के लिए
एक दीया मन के खुशियों के लिए।
एक दीया दूसरो के खुशी के लिए जलाएं
हो चहुंओर जगमग दीप सब ओर
खुशियों के दीप टमटमांए हर मुण्डेर पे ।
ऐसी एक आशा की लौं हम जलाए
आईए जीवन में नवरस तो हम जगाए।


जीवन में नव खुशियां हम तो लाए
एक दीया हो नयी सोच का और
नयी ऊर्जा के नाम का तो जलाए।
जो जीवन को समर्थ ,सम्पन्न बनाए
आईए जीवन का हर पल हम
खुशनुमां तो हम जरूर बनाए।

रौनकों से सजी हो सारी दीवारें
कुछ ऐसी तो कोशिश की जाए।
और जीने की एक नयी राह बनाए
जीवन को तो एक नया आयाम दें।

नकारात्मकता को सदा के लिए विराम दें
एक नयी दिशा हम तो गढे और
सदा हम सच की राह चुने।
जो राह हो नयी आशा का
और नये आत्मविश्वास का
खुशियों के दीप जिसमें टिमटिमाए।


✍️ सुरंजना पाण्डेय

दीप अखंड ज्योति- डॉ शशिकला अवस्थी

खुद का जीवन दीपक- सा बनाएं ,खुद जलकर प्रकाश फैलाएं।

जग में जो दीन दुखी हैं, उनके जीवन में सहयोग का दीप जलाएं ।

जो निराश हैं उनमें आशा की जीवन ज्योत जलाए ।

अपने और पराए रिश्तो में प्रेम का दीप जलाएं।

देशवासियों में राष्ट्र भक्ति दीप जलाकर राष्ट्रप्रेम बढ़ाएं।

शहीदों के परिवारों को सहयोग मदद दिलाएं,
आशादीप बन जाए।

निराश्रित बुजुर्गों को आशियाना दे ,परिजन सा स्नेह दीप जलाएं ।

साहित्य जगत में मानवता, नैतिकता युक्त साहित्य रचाएं।

दुनिया को नई राह दिखाएं, अखंड ज्योत दीपक जलाएं।

प्रकाश स्तंभ बनकर, नौनिहालों को दीपक बनाएं।


रचयिता
डॉ शशिकला अवस्थी, इंदौर
मध्य प्रदेश

दीया तूफान से लड़ता रहा

रात भर दीया तूफान से लड़ता रहा
अकेला ऐकान्त में बस जलता रहा,

अपनी सारी शक्ति लगा जूझता रहा
लो को तेज हवाओं से बचाता रहा,

अपनी पहचान नही खोनी थी
रखता है दम वो भी लड़ना का,

आज उसे ये दिखाना था सबको
इसलिए हर हाल में बस टीका रहा,

लाख मुश्किलें आई सामने मगर
वो हालात से मुकाबला करता रहा,

बाती उड़ी,लो मुड़ी टुड़ी बार बार
पर दिये ने हौसला नही टूटने दिया,

दीये कीतरह लड़नी पड़ती है सबको
अपनी अपनी लड़ाई यहाँहर इंसां को

दीया सिखा गया तूफान से लड़ने की
ताकत,इरादों में मजबूती होनी चाहिए

रात भर दीया तूफान से लड़ता रहा
हाँअकेला अंधेरे से बस लड़ता रहा।


मीता लुनिवाल
जयपुर ,राजस्थान

दीपक बनकर जलना सीखो

खुद पर भरोसा है तो देना सीखो
खुद दीपक बनकर जलना सीखो,
बन सको अगर उजाला बनो तुम
खुशी खुशी रोशनी बनना सीखो।
घर रोशन करो तुम किसी और का
काँटे नहीं फूल बनना सीखो,

रोशन करो तुम किसी और का
काँटे नहीं फूल बनना सीखो,
कर सको राह रोशन किसी और की
दीपक ऐसा पहले बनना सीखो।
अपना दीपक भी खुद ही बन सको,
ऐसा जतन तो पहले करना सीखो,
अँधेरा मिटेगा तुम्हारा भी यारों
खुद अपना दीपक बनना तो सीखो।
● सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा, उ.प्र.

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