घर का संस्कार है बेटी
घर आँगन की शान,अभिमान है होती।
माँ बाप की जान पहचान होती है बेटी।
अक्सर शादी के बाद पराए हो जाते हैं बेटे।
दो कुलों की मान-सम्मान होती है बेटी।1।
माँ के रूप में ममता की मूरत है बेटी।
पत्नी के रूप में फर्ज की सूरत है बेटी।
पीहर व ससुराल के बीच सामंजस्य बिठाये।
दया,त्याग,प्रेम की सच्ची मूरत है बेटी।2।
भाई के कलाई में रेशम का प्यार है बेटी।
बहन के लिए दुलार,घर का व्यवहार है बेटी।
घर घर में पूजी जाए,तीज त्यौहार है बेटी।
बेटा एक विचार है तो घर का संस्कार है बेटी।3।
*सुन्दर लाल डडसेना”मधुर”*
ग्राम-बाराडोली(बालसमुंद),पो.-पाटसेन्द्री
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