सुख-शांतिमय संसार हो
सुख-शांतिमय संसार हो। पशु-शक्ति का न प्रयोग हो,
सद्भाव का उपयोग हो, सबसे सदा सहयोग हो,
निज चित्त पर निज वित्त पर सबका सदा अधिकार हो,
सुख-शांतिमय संसार हो।
व्यक्तित्व का सम्मान हो,
निज देश का अभिमान हो,
पर विश्व-हित का ध्यान हो,
निज स्वार्थ में ही भूलकर
कोई नहीं अनुदार हो,
सुख-शांतिमय संसार हो।
सबका सदा उत्कर्ष हो,
तो भी न कुछ संघर्ष हो,
आराध्य बस आदर्श हो,
हों वर विवेक-विचार मन में
और उर में प्यार हो,
सुख-शांतिमय संसार हो।