सम्पूर्ण श्री कृष्ण गाथा
कृष्ण लीला
काली अँधेरी रात थी ,
होने वाली कुछ बात थी ,
कैद में थे वासुदेव,
देवकी भी साथ थीं।
कृष्ण का जन्म हुआ,
हर्षित मन हुआ,
बंधन मुक्त हो गए,
द्वारपाल सो गए।
एक टोकरी में डाल ,
सर पर गोपाल बाल,
कहीं हो न जाए भोर,
चल दिए गोकुल की और।
रास्ते में यमुना रानी,
छूने को आतुर बड़ीं ,
छू कर पांव कान्हा का,
तब जा कर शांत पड़ीं।
गोकुल गांव पहुंच कर तब,
यशोदानन्दन भये,
दिल का टुकड़ा अपना देकर,
योगमाया ले गए।
द्वारपाल जग गए,
संदेशा कंस को दिया,
छीन कर उसे देवकी से ,
मारने को ले गया।
कंस ने जो पटका उसको,
देवमाया क्रुद्ध हुई ,
कंस तू मरेगा अब,
आकाशवाणी ये हुई।
नन्द के घर जश्न हुआ,
ढोल बाजा जम के हुआ,
गोद में ले सारा गांव,
देते बार बार दुआ।
माँ यशोदा का वो लाला,
सीधा सादा भोला भाला,
कभी गोद में वो खेले,
पालकी में झपकी लेले।
कंस सोचे किसको भेजें,
मारने गोपाल को,
उसने फिर संदेसा भेजा,
पूतना विकराल को।
पूतना को गुस्सा आया,
उसने होंठ भींच लिए,
विष जो पिलाने लगी,
स्तन से प्राण खींच लिए।
असुर बहुत मरते रहे,
पर तंग करते रहे,
नन्द ने आदेश दिया,
गोकुल को खाली किया।
गोकुल की गलियां छोड़,
वृन्दावन में वास किया,
वत्सासुर को मार कर,
पाप का विनाश किया।
फिर दाऊ को सताना आया,
माँ को मनाना आया,
धीरे से चुपके से,
माखन चुराना आया।
गायों को चराना सीखा,
बंसी को बजाना सीखा,
ढेले से फिर मटकी फोड़,
गोपी को खिझाना सीखा।
ग्वाल बाल संग सखा,
सब का ख्याल रक्खा ,
दोस्तों को बांटते सब,
माटी का भी स्वाद चखा।
माँ को जब पता चला,
मुंह झट से खुलवाया ,
मोहन की थी लीला गजब,
संसार सारा दिखलाया।
शरारतों से तंग आकर,
ऊखल से बांध दिया,
देव दूत थे दो वृक्ष,
उनका तब उद्धार किया।
विष से जमुना जी का दूषण,
संकट गंभीर था,
कालिया को नथ के शुद्ध,
किया उसका नीर था।
इंद्र जब क्रुद्ध हुए,
बारिशों का दौर हुआ,
ऊँगली पर गावर्धन धरा ,
घमंड इंद्र का चूर हुआ।
गोपिओं के संग कान्हा,
रचाते रासलीला हैं ,
मुख की है शोभा सुँदर,
वस्त्र उनका पीला है।
एक गोपी एक कृष्ण,
गजब की ये लीला है,
राधा कृष्ण का वो मेल,
नृत्य वो रसीला है।
अक्रूर के साथ मथुरा,
जाने को तैयार हैं,
जल के भीतर देखा माने,
ईश्वर के अवतार हैं।
कंस के धोबी से कपडे,
लेकर फिर श्रृंगार किया,
कंस की सभा में,
कुवलीयापीड़ का उद्धार किया।
कंस को एहसास हुआ,
आन पड़ी विपत्ता भारी ,
कृष्ण और बलराम बोले,
कंस अब है तेरी बारी।
चाणूर,मुष्टिक ढेर हुए,
कंस का भी वध हुआ,
उग्रसेन को छुड़ाया,
राजतिलक तब हुआ।
देवकी और वासुदेव ,
कारागार में मिले,
दोनों पुत्रों को देख,
चेहरे उनके खिले।
सांदीपनि के आश्रम में ,
विद्या लेने गए,
चौंसठ कलाओं में ,
निपुण वो तब हुए।
समझाने गए गोपिओं को ,
उद्धव ब्रज में खो गए,
संवाद गोपिओं से करके,
पानी पानी हो गए।
जरासंध से जो भागे,
रणछोर फँस गए,
द्वारकाधीश बनकर ,
द्वारका में बस गए।
शयामन्तक मणि की खातिर,
जामवंत से युद्ध किया,
पुत्री जामवंती को ,
कृष्ण चरणों में दिया।
शिशुपाल गाली देता,
पार सौ के गया,
कृष्ण के सुदर्शन ने तब,
शीश उसका ले लिया।
रुक्मणि ने पत्र भेज,
कृष्ण को बुलाया वहाँ ,
रुक्मणि का हरण किया,
शादी का मंडप था जहाँ।
गरीब दोस्त था सुदामा,
सत्कार उसका वो किया,
दो मुट्ठी सत्तू खाकर,
महल उसको दे दिया।
कुंती पुत्र पांच पांडव,
उनको बहुत मानते,
ईश्वर का रूप हैं ये,
वो थे पहचानते।
कौरवों ने धोखे से वो,
चीरहरण था किया,
द्रोपदी की लाज रक्खी ,
वस्त्र अपना दे दिया।
युद्ध कुरुक्षेत्र का वो,
बड़े बड़े महारथी,
पांडवों के साथ कृष्ण,
अर्जुन के सारथी।
अर्जुन को ज्ञान दिया,
गीता उपदेश का ,
दिव्या रूप दिखलाया,
ब्रह्मा विष्णु महेश का।
ऋषिओं का जो श्राप था,
यदुवंश को खा गया,
अँधेरा उस श्राप का,
द्वारका पे छा गया।
सारे यदुवंशी गए,
चले बलराम जी,
कृष्ण ने भी जग को छोड़ा,
चले अपने धाम जी।
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