Category: हिंदी कविता

  • सम्पूर्ण श्री कृष्ण गाथा पर कविता

    सम्पूर्ण श्री कृष्ण गाथा पर कविता

    सम्पूर्ण श्री कृष्ण गाथा

    shri Krishna
    Shri Krishna

    कृष्ण लीला
    काली अँधेरी रात थी ,
    होने वाली कुछ बात थी ,
    कैद में थे वासुदेव,
    देवकी भी साथ थीं।

    कृष्ण का जन्म हुआ,
    हर्षित मन हुआ,
    बंधन मुक्त हो गए,
    द्वारपाल सो गए।

    एक टोकरी में डाल ,
    सर पर गोपाल बाल,
    कहीं हो न जाए भोर,
    चल दिए गोकुल की और।

    रास्ते में यमुना रानी,
    छूने को आतुर बड़ीं ,
    छू कर पांव कान्हा का,
    तब जा कर शांत पड़ीं।

    गोकुल गांव पहुंच कर तब,
    यशोदानन्दन भये,
    दिल का टुकड़ा अपना देकर,
    योगमाया ले गए।

    द्वारपाल जग गए,
    संदेशा कंस को दिया,
    छीन कर उसे देवकी से ,
    मारने को ले गया।

    कंस ने जो पटका उसको,
    देवमाया क्रुद्ध हुई ,
    कंस तू मरेगा अब,
    आकाशवाणी ये हुई।

    नन्द के घर जश्न हुआ,
    ढोल बाजा जम के हुआ,
    गोद में ले सारा गांव,
    देते बार बार दुआ।

    माँ यशोदा का वो लाला,
    सीधा सादा भोला भाला,
    कभी गोद में वो खेले,
    पालकी में झपकी लेले।

    कंस सोचे किसको भेजें,
    मारने गोपाल को,
    उसने फिर संदेसा भेजा,
    पूतना विकराल को।

    पूतना को गुस्सा आया,
    उसने होंठ भींच लिए,
    विष जो पिलाने लगी,
    स्तन से प्राण खींच लिए।

    असुर बहुत मरते रहे,
    पर तंग करते रहे,
    नन्द ने आदेश दिया,
    गोकुल को खाली किया।

    गोकुल की गलियां छोड़,
    वृन्दावन में वास किया,
    वत्सासुर को मार कर,
    पाप का विनाश किया।

    फिर दाऊ को सताना आया,
    माँ को मनाना आया,
    धीरे से चुपके से,
    माखन चुराना आया।

    गायों को चराना सीखा,
    बंसी को बजाना सीखा,
    ढेले से फिर मटकी फोड़,
    गोपी को खिझाना सीखा।

    ग्वाल बाल संग सखा,
    सब का ख्याल रक्खा ,
    दोस्तों को बांटते सब,
    माटी का भी स्वाद चखा।

    माँ को जब पता चला,
    मुंह झट से खुलवाया ,
    मोहन की थी लीला गजब,
    संसार सारा दिखलाया।

    शरारतों से तंग आकर,
    ऊखल से बांध दिया,
    देव दूत थे दो वृक्ष,
    उनका तब उद्धार किया।

    विष से जमुना जी का दूषण,
    संकट गंभीर था,
    कालिया को नथ के शुद्ध,
    किया उसका नीर था।

    इंद्र जब क्रुद्ध हुए,
    बारिशों का दौर हुआ,
    ऊँगली पर गावर्धन धरा ,
    घमंड इंद्र का चूर हुआ।

    गोपिओं के संग कान्हा,
    रचाते रासलीला हैं ,
    मुख की है शोभा सुँदर,
    वस्त्र उनका पीला है।

    एक गोपी एक कृष्ण,
    गजब की ये लीला है,
    राधा कृष्ण का वो मेल,
    नृत्य वो रसीला है।

    अक्रूर के साथ मथुरा,
    जाने को तैयार हैं,
    जल के भीतर देखा माने,
    ईश्वर के अवतार हैं।

    कंस के धोबी से कपडे,
    लेकर फिर श्रृंगार किया,
    कंस की सभा में,
    कुवलीयापीड़ का उद्धार किया।

    कंस को एहसास हुआ,
    आन पड़ी विपत्ता भारी ,
    कृष्ण और बलराम बोले,
    कंस अब है तेरी बारी।

    सम्पूर्ण श्री कृष्ण गाथा पर कविता

    चाणूर,मुष्टिक ढेर हुए,
    कंस का भी वध हुआ,
    उग्रसेन को छुड़ाया,
    राजतिलक तब हुआ।

    देवकी और वासुदेव ,
    कारागार में मिले,
    दोनों पुत्रों को देख,
    चेहरे उनके खिले।

    सांदीपनि के आश्रम में ,
    विद्या लेने गए,
    चौंसठ कलाओं में ,
    निपुण वो तब हुए।

    समझाने गए गोपिओं को ,
    उद्धव ब्रज में खो गए,
    संवाद गोपिओं से करके,
    पानी पानी हो गए।

    जरासंध से जो भागे,
    रणछोर फँस गए,
    द्वारकाधीश बनकर ,
    द्वारका में बस गए।

    शयामन्तक मणि की खातिर,
    जामवंत से युद्ध किया,
    पुत्री जामवंती को ,
    कृष्ण चरणों में दिया।

    शिशुपाल गाली देता,
    पार सौ के गया,
    कृष्ण के सुदर्शन ने तब,
    शीश उसका ले लिया।

    रुक्मणि ने पत्र भेज,
    कृष्ण को बुलाया वहाँ ,
    रुक्मणि का हरण किया,
    शादी का मंडप था जहाँ।

    गरीब दोस्त था सुदामा,
    सत्कार उसका वो किया,
    दो मुट्ठी सत्तू खाकर,
    महल उसको दे दिया।

    कुंती पुत्र पांच पांडव,
    उनको बहुत मानते,
    ईश्वर का रूप हैं ये,
    वो थे पहचानते।

    कौरवों ने धोखे से वो,
    चीरहरण था किया,
    द्रोपदी की लाज रक्खी ,
    वस्त्र अपना दे दिया।

    युद्ध कुरुक्षेत्र का वो,
    बड़े बड़े महारथी,
    पांडवों के साथ कृष्ण,
    अर्जुन के सारथी।

    अर्जुन को ज्ञान दिया,
    गीता उपदेश का ,
    दिव्या रूप दिखलाया,
    ब्रह्मा विष्णु महेश का।

    ऋषिओं का जो श्राप था,
    यदुवंश को खा गया,
    अँधेरा उस श्राप का,
    द्वारका पे छा गया।

    सारे यदुवंशी गए,
    चले बलराम जी,
    कृष्ण ने भी जग को छोड़ा,
    चले अपने धाम जी।

    @ajay singla

  • पृथ्वी माता पर कविता/  विजय कुमार कन्नौजे

    पृथ्वी माता पर कविता/  विजय कुमार कन्नौजे

    पृथ्वी माता पर कविता/  विजय कुमार कन्नौजे

    Global-Warming-
    Global-Warming-

    मां की गरिमा मां ही जानें
    इनकी महिमा कौन बखाने
    मातृ भूमि को मेरा प्रणाम
    सीना तानें जग को बचाने।।

    रसातल गगन बीच बैठकर
    सम भाव खुद में सहेज कर
    पृथ्वी माता तुम्हें है प्रणाम
    रक्षा कीजिए मां पुत्र मानकर

    हीरा पन्ना और सोना खान
    तेरी महिमा मां तुम ही जान
    खुशबू दिए मां तुम फुलों में
    मेरी पृथ्वी माता तुम्हें प्रणाम।

    जन्म मृत्यु के बीच में माता
    सीना तान कर तुम खड़ी है
    रसातल में डुबने से बचाने तु
    दीवाल बनकर बीच अड़ी हैं

    मौलिक स्वरचित रचना
    रचनाकार
    डॉ विजय कुमार कन्नौजे अमोदी आरंग ज़िला रायपुर छ ग

  • कारवाँ पर कविता / रमेश कुमार सोनी

    कारवाँ पर कविता / रमेश कुमार सोनी

    कारवाँ पर कविता / रमेश कुमार सोनी

    कारवाँ पर कविता / रमेश कुमार सोनी

    धरती माँ से सुनी
    कल एक कहानी
    दूध की नदियाँ और
    सोने की चिड़िया थी कभी
    आँचल रत्नगर्भा और
    पानी की अमृतधारा थी यहीं
    वृक्षों की ठंडी छाँह और
    खट्टे-मीठे फल का स्वाद
    परोसती थी वो कभी ।

    आज मुझे वो मिली है-
    जहरीली हवाओं की दम घोंटू साँस और
    अम्लीय वर्षा की चिंता लिए
    सीना छलनी हुए
    बोरवेल से छिद्रित आँचल का दर्द लिए
    पानी की घूँट को तरसती
    सीने में ज्वाला धधकाती
    ओज़ोन की फटी छतरी ओढ़े
    विषैले कचरों का बोझा ढोए
    मज़बूर है अपनी ही जैव सम्पदाओं को
    नष्ट होता देखने को वाकई
    धरा:कौन जाने दर्द तेरा।

    सबको अपने दर्द की चिंता है
    बदलते मौसम से कोफ़्त है
    समस्याएँ सबको पता है
    समाधान भी जानते हैं
    लेकिन ये प्रकृति के शहंशाह जो ठहरे
    धरा की आर्तनाद पुकार
    वहाँ तक पहुँचे भी तो कैसे।

    धरा जानती है इन्हें
    किसी माँ की तरह सुधारना
    भूकम्प, सुनामी और बाढ़ के
    पुराने तरीके छोड़
    अब यह गुस्से से कूकर बनी बैठी है
    अपने ही कोप भवन में
    लोग वैश्विक चर्चा में मशगूल हैं
    इसे कैसे मनाया जाय।

    इन सबसे दूर मैं
    पेड़ लगाते हुए अकेले
    बुला रहा हूँ लौटे हुए परिंदों को
    दुलार रहा हूँ अपने
    इकोसिस्टम की जैव सम्पदाओं को
    इस उम्मीद के साथ कि
    एक दिन कारवाँ ज़रूर बनेगा
    एक दिन ज़रुर ये नादान लोग
    शिकायत नहीं रहने देंगे कि-
    धरा:कौन जाने दर्द तेरा।

    रमेश कुमार सोनी
    कबीर नगर-रायपुर, छत्तीसगढ़
    मो.-70493-55476

  • लोकतंत्र का पर्व / आशीष कुमार

    लोकतंत्र का पर्व / आशीष कुमार

    लोकतंत्र का पर्व / आशीष कुमार

    लोकतंत्र का पर्व / आशीष कुमार

    लोकतंत्र का पर्व पावन परम है
    मतदान हमारा पुनीत करम है
    बज चुका है चुनावी बिगुल
    पक्ष-विपक्ष सबका मामला गरम है

    कोई कट्टरपंथी चरम है
    कोई दिखाता खुद को नरम है
    टर्र टरा रहे चुनावी मेंढक
    हर जगह मामला गरम है

    किसी का सब कुछ सिर्फ धरम है
    कोई बूझे सिर्फ जात-पात का मरम है
    सब कुछ देख रहा बूढ़ा बरगद
    जिसकी छाया में मामला गरम है

    किसी नजर में परिवारवाद अधरम है
    किसी को व्यक्तिवाद पर आती शरम है
    विकास के रास्ते हैं सभी के पास
    पर पहुँचने की बात पर मामला गरम है

    फैलाते जनता में भरम हैं
    चुनावी वादे सारे बेशरम हैं
    मैं सही सब गलत के चक्कर में
    सारे झूठों का मामला गरम है

    गिनती नहीं कितनी तरह का कुकरम है
    किसी की जेब ढीली किसी की जेब गरम है
    सुबह होने का अब इंतजार किसे है
    आधी रात को ही यहाँ मामला गरम है

    आशीष कुमार
    उच्च माध्यमिक शिक्षक
    मोहनिया, कैमूर, बिहार

  • गांँधीजी का ज्ञान

    गांँधीजी का ज्ञान

    राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी जी का वर्णन कविता “गांँधीजी का ज्ञान” के माध्यम से किया गया है।

    गांँधीजी का ज्ञान

    mahatma gandhi

    राष्ट्रपिता महात्मा गांँधी का करूंँ मैं बखान,
    अहिंसा से बना दिया हिन्दुस्तान को महान।
    भारत में जन्म लिया सत्य अहिंसा का वादी,
    नाम था जिनका मोहनदास करमचंद गांँधी।
    देश की आजादी के लिए चढ़ा परवान,
    सत्य अहिंसा है सर्वोपरि,गांँधीजी का ज्ञान।

    सत्य अहिंसा का सूत्र अपने जीवन में बांँधी,
    माता-पिता थे पुतलीबाई और करमचंद गांँधी।
    दक्षिण अफ्रीका गए गांँधी, था धन का अभाव,
    दूर किया अस्पृश्यता ,काले गोरे का दुष्प्रभाव।
    अफ्रीका में होने लगा, गांँधीजी का गुणगान,
    सत्य अहिंसा है सर्वोपरि, गांँधीजी का ज्ञान।

    तोड़ा अंग्रेजों का असत्य तानाशाही-अभिमान,
    गांँधी को बापू नाम से पुकारे भारतीय किसान।
    अंग्रेजों ने भारत में अपनी मुँह की खाई,
    जब लड़े गांँधी संग सरदार वल्लभभाई।
    हिन्द मुस्लिम सिक्ख ईसाई सब है समान.
    सत्य अहिंसा है सर्वोपरि,गांँधीजी का ज्ञान।

    असहयोग आंदोलन से अंग्रेजों की कमर टूटी,
    स्वराज-दांडी यात्रा से अंग्रेजों की भाग्य फूटी।
    नरम और गरम दल का मिला सहयोग,
    गांँधी-सुभाष के साथ चलने लगे लोग।
    कम्पीत-भयभीत था अंग्रेजी-हुक्मरान
    सत्य अहिंसा है सर्वोपरि,गांँधीजी का ज्ञान।

    हिन्दुस्तान में था हिंदू-मुस्लिमों का बुरा हाल,
    एकता को तोड़ने के लिए गोरों ने चला चाल।
    भारत में उदय हुआ स्वतंत्रता का प्रभात,
    15अगस्त1947को भारत हुआ आजाद।
    हरिजन आदिवासियों को मिला सम्मान,
    सत्य अहिंसा है सर्वोपरि,गांँधीजी का ज्ञान।

    30 जनवरी 1948 को नाथूराम ने गोली मारी,
    हो गए शहीद राष्ट्रपिता गांँधी रोई दुनिया सारी।
    करेंगे रक्षा-सेवा मातृभूमि का हम हैं हिन्दुस्तानी,
    भारत के लिए हुए शहीद कई स्वतंत्रता सेनानी।
    कहता है अकिल देश का बढ़ाओ मान,
    सत्य अहिंसा है सर्वोपरि,गांँधीजी का ज्ञान।

    अकिल खान रायगढ़ जिला – रायगढ़ (छ.ग.) पिन – 496440.