Category: हिंदी कविता

  • सूरज पर कविता- आर आर साहू

    सूरज पर कविता

    सुबह सबेरे दृश्य
    सुबह सबेरे दृश्य

    लो हुआ अवतरित सूरज फिर क्षितिज मुस्का रहा।
    गीत जीवन का हृदय से विश्व मानो गा रहा।।

    खोल ली हैं खिड़कियाँ,मन की जिन्होंने जागकर,
     नव-किरण-उपहार उनके पास स्वर्णिम आ रहा।

    खिल रहे हैं फूल शुभ,सद्भावना के बाग में,
    और जिसने द्वेष पाला वो चमन मुरझा रहा।

    चल मुसाफिर तू समय के साथ आलस छोड़ दे,
    देख तो ये कारवाँ पल का गुजरता जा रहा।

    बात कर ले रौशनी से,बैठ मत मुँह फेरकर,
    जिंदगी में क्यों तू अपने बन अँधेरा छा रहा।

    नीड़ से उड़ता परिंदा,बन गया है श्लोक सा,
    मर्म गीता का हमें,कर कर्म, ये समझा रहा ।
    —– R.R.Sahu
    कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद

  • शांतिदूत पर कविता -शांति के दीप जलाते हैं

    शांतिदूत पर कविता -शांति के दीप जलाते हैं

    विश्व पटल पर मानवता के फूल खिलाते हैं,
    हम हैं शांतिदूत, शांति के दीप जलाते हैं।

    भेद भाव के भवसागर में,
    दया भाव भरली गागर में,
    त्रस्त हृदय को दया कलश से सुधा पिलाते हैं।

    मानव बन मानव की खातिर, 
    दूर करें अज्ञान का तिमिर,
    इस वसुधा पर ज्ञान पताका हम फहराते हैं।

    ऊंच नीच का भेद मिटाते,
    स्वप्न सुनहरे सभी सजाते,
    कोई कदम जो डिगने लगे उसे राह दिखाते हैं।

    तन से मन से या फिर धन से, 
    करें सदा सेवा जीवन से,
    बस मानव को मानव का अधिकार दिलाते हैं।

    विश्व पटल पर मानवता के फूल खिलाते हैं,
    हम हैं शांतिदूत शांति के दीप जलाते हैं।
      (सरोज कंवर शेखावत)

  • हाइकु मंजूषा -पद्ममुख पंडा स्वार्थी

    हाइकु मंजूषा -पद्ममुख पंडा स्वार्थी

    हाइकु

    हाइकु मंजूषा

    1
    चल रही है
    चुनावी हलचल
    प्रजा से छल

    2

    भरोसा टूटा
    किसे करें भरोसा
    सबने लूटा

    3

    शासन तंत्र
    बदलेगी जनता
    हक बनता

    4

    धन लोलूप
    नेता हो गए सब
    अब विद्रूप

    5

    मंडरा रहा
    भविष्य का खतरा
    चुनौती भरा

    6

    खल चरित्र
    जीवन रंगमंच
    न रहे मित्र

    7

    प्यासी वसुधा
    जो शान्त करती है
    सबकी क्षुधा

    8

    नदी बनाओ
    जल संरक्षण का
    वादा निभाओ

    9

    गरीब लोग
    निहारते गगन
    नोट बरसे

    10

    आर्थिक मंदी
    किसकी विफलता
    दुःखी जनता

    पद्म मुख पंडा
    ग्राम महा पल्ली

  • वर्षा ऋतु कविता – कवयित्री श्रीमती शशिकला कठोलिया

    वर्षा ऋतु कविता 

    ग्रीष्म ऋतु की प्रचंड तपिश,
     प्यासी धरती पर वर्षा की फुहार,       
    चारों ओर फैली सोंधी मिट्टी,
    प्रकृति में होने लगा जीवन संचार।

    दिख रहा नीला आसमान ,
    सघन घटाओं से आच्छादित ,
    वर्षा से धरती की हो रही ,
    श्यामल सौंदर्य द्विगुणित । 

    छाई हुई है खेतों में ,
    सर्वत्र हरियाली ही हरियाली ,
    नाच रहे हैं वनों में मोर ,
    आनंदित पूरा जंगल झाड़ी ।

    नदिया नाला जलाशय, 
    जल से दिख रहे परिपूर्ण ,
    इंद्रधनुष की सतरंगी छटा,
    अलंकृत किए आसमान संपूर्ण ।

    हो गई थी सारी धरती ,
    ग्रीष्म ऋतु में बेजान वीरान ,
    वर्षा ऋतु के आगमन से ,
    कृषि कार्यों में संलग्न किसान।

     कृषि प्रधान इस भारत में ,
    वर्षा प्रकृति की जीवनदायिनी ,
    सच कहा है किसी ने ,
    वर्षा अन्न वृक्ष जल प्रदायिनी।

    श्रीमती शशिकला कठोलिया, शिक्षिका, अमलीडीह ,डोंगरगांव
    कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद

  • शांति पर कविता -नरेन्द्र कुमार कुलमित्र

    शांति पर कविता 

    हम कैसे लोग हैं
    कहते हैं—
    हमें ये नहीं करना चाहिए
    और वही करते हैं
    वही करने के लिए सोचते हैं
    आने वाली हमारी पीढियां भी
    वही करने के लिए ख़्वाहिशमंद रहती है
    जैसे नशा
    जैसे झूठ
    जैसे अश्लील विचार और सेक्स
    जैसे ईर्ष्या-द्वेष
    जैसे युद्ध और हत्याएं
    ऐसे ही और कई-कई वर्जनाओं की चाह

    हम नकार की संस्कृति में पैदा हुए हैं
    हमें नकार सीखाया जाता है
    हमारे संस्कार नकार में गढ़े गए हैं
    हम उस तोते की तरह हैं
    जो जाल में फंसा हुआ भी
    कहता है जाल में नहीं फँसना चाहिए
    हमारा ज्ञान, हमारी विद्या,हमारे सीख या तालीम
    सब तोता रटंत है,थोथा है,खोखला है
    सच को स्वीकार करना हमने नहीं सीखा
    जितने शिक्षित हैं हम
    हमारी कथनी और करनी के फ़ासले उतने अधिक हैं
    हम पढ़े-लिखे तो हैं
    पर कतई 
    कबीर नहीं हो सकते

    युद्धोन्माद से भरे हुए कौरवों के वंशज
    युद्ध को समाधान मानते हैं
    उन्हें लगता है
    युद्ध से ही शांति मिलेगी
    युद्ध करके अपनी सीमाओं का विस्तार चाहते हैं
    उन्हें नहीं पता कि
    युद्ध विस्तार-नाशक है
    युद्ध सारा विस्तार शून्य कर देता है
    युद्ध एक गर्भपात है
    जिससे विकास के सारे भ्रूण स्खलित हो जाते हैं
    समय बौना हो जाता है
    इतिहास लँगड़ा हो जाता है
    और भविष्य अँधा हो जाता है

    अब हास्यास्पद लगते हैं 
    विश्व शान्ति के सारे संदेश
    मजाक-सा लगता है
    सत्य और अहिंसा को अस्त्र मान लेना
    अब
    नोबेल शांति का हकदार वही है
    जो परमाणु बंम इस्तेमाल का माद्दा रखते हैं
    अब
    लगता है कई बार
    धनबल और बाहुबल के इस विस्तार में
    आत्मबल से भरे हुए उसी अवतार में
    फिर आ जाओ इक बार
    शांति के ओ पुजारी !

    —- नरेन्द्र कुमार कुलमित्र