Category: हिंदी कविता

  • कंगन की खनक समझे चूड़ी का संसार

    कंगन की खनक समझे चूड़ी का संसार

    HINDI KAVITA || हिंदी कविता
    HINDI KAVITA || हिंदी कविता

    नारी की शोभा बढ़े, लगा बिंदिया माथ।
    कमर मटकती है कभी, लुभा रही है नाथ।

    कजरारी आँखें हुई,  काजल जैसी रात।
    सपनों में आकर कहे,  मुझसे मन की बात।

    कानों में है गूँजती, घंटी झुमकी साथ।
    गिर के खो जाए कहीं, लगा रही पल हाथ।

    हार मोतियों का बना, लुभाती गले डाल।
    इतराती है पहन के, सबसे सुंदर माल।

    कंगन की खनक समझे, चूड़ी का संसार।
    प्रिय मिलन को तड़प रही, तू ही मेरा प्यार।

    अर्चना पाठक ‘निरंतर’ 

    अम्बिकापुर 

  • धूल पर दोहे

    धूल पर दोहे

    पाहन नारी हो गई,पाकर पावन धूल
    प्रभु श्रीराम करे कृपा,काँटे लगते फूल

    महिमा न्यारी धूल की,केंवट करे गुहार
    प्रभु पग धोने दीजिए,तभी चलूँ उस पार

    मातृभूमि की धूल भी,होता मलय समान
    बड़भागी वह नर सखी,त्यागे भू पर प्रान

    आँगन में सब खेलते,धूल धूसरित ग्वाल
    मात यशोदा गोद ले,चुमती मोहन गाल

    कृष्ण पाद रज धो रहे,बहा नैन जलधार
    भक्त सुदामा है चकित,देख मित्र सत्कार

    ✍ सुकमोती चौहान रुचि
    बिछिया,महासमुन्द,छ.ग.
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  • बस तेरा ही नाम पिता

    बस तेरा ही नाम पिता

           
    उपर से गरम अंदर से नरम,ये वातानुकूलित इंसान है!
    पिता जिसे कहते है मित्रो,वह परिवार की शान है!!

    अच्छी,बुरी सभी बातो का,वो आभास कराते है!
    हार कभी ना मानो तुम तो,हर पल हमै बताते है!!

    वो नही है केवल पिता हमारे,अच्छे,सच्चे मित्र भी है!
    परिवार गुलशन महकाए,ऎसा ब्रंडेड ईत्र भी है!!

    वह धिरज और गंभिरता की,जिती जागती सुरत है!
    वही हमारे परिवार मे,ईश्वर की दुजी मुरत है!!
    ”””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””
                  (२)
    अनुशासित दिनचर्या उनसे,असिम ज्ञान भंडार है!
    गुस्सा भी है सबसे जादा,और सबसे जादा प्यार है!!

    मुश्किलो मे परिवार की,पापा ही एक हौसला है!
    उन्हीके कारण परिवार का,एक सुरक्षित घोसला है!!

    वो खूद की ईच्छाओ का हनन है,परिवार की पुर्ती है!
    परिवार मे पिता ही साक्षात,बड़ी त्याग की मुर्ती है!!

    अपनी आँखो के तारो का,बहुत बड़ा अरमान हो तुम!
    परिवार के हर शख्स की,सचमुंछ मे एक जाॅन हो तुम!!
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                    (३)
    रात को उठकर जो बच्चो को,उढ़ाते देखे कंबल है!
    जो मां के माथे की बिंदीया,परिवार का संबल है!!

    हमने जिनके कंधे चढ़कर,जगत मे देखे मेले है!
    परिवार की खूशियो खातिर,संकट जिसने झेले है!!

    गुरु,जनक,पालक,पोषक तुम,तुम ही भाग्यविधाता हो!
    जरुरत की सब पुर्ती हो तुम,तुम ही सच्चे ताता हो!!

    रहे सदा जीवनभर जगमे,बस तेरा ही नाम पिता!
    बच्चो सुनो कितने भी बड़े हो,करना सब सम्मान पिता!!
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    कवि-धनंजय सिते(राही)
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  • मानव समानता पर कविता

    मानव समानता पर कविता

    HINDI KAVITA || हिंदी कविता
    HINDI KAVITA || हिंदी कविता

    हम मानव मानव एक समान।
    हम सब मानव की संतान ।
    धर्म-कर्म भाषा भूषा से ,
    हमको ना किञ्चित् अभिमान ।
    हिंदू की जैसे वेद पुराण ।
    बस वैसे ही बाइबल और कुरान ।
    सब में छुपी हुई है एक ही ज्ञान।
    सभी बनाती है मनुष्य को महान।
    छोड़ दो करना लहूलुहान ।
    मानवता धर्म की कर पहचान ।
    धर्म जाति से पहले हम इंसान ।
    हम हैं भारत मां की शान ।
    आत्मा एक है चाहे रूप की हो खान ।
    दूसरों में तू सदा परमात्मा को भान।
    कर लो इस मिट्टी का सम्मान।
    गायें आओ सदा भारत माता की गान।।

    • मनीभाई ‘नवरत्न’, छत्तीसगढ़
  • शादी से पहले

    शादी से पहले

    marriage

    मैं जीना चाहता था
    एकांत जीवन प्रकृति के सानिध्य में।
    पर न जाने कब उलझा
    सेवा सत्कार आतिथ्य में ।
    अनचाहे  विरासत में मिली
    दुनियादारी की बागडोर ।
    धीरे-धीरे जकड़ रही है
    मुझे बिना किए शोर।
    कभी तौला नहीं था
    अपना वजूद समाज के पलड़ों में ।
    अब जरूरी जान पड़ता
    कि पड़ूँ दुनियादारी के लफड़ों में ।
    सुख चैन मिलता सहज
    शादी से पहले ।
    पर अब जद्दोजहद करनी होगी
    चाहे  कोई कुछ भी कह ले।।

     मनीभाई ‘नवरत्न’,छत्तीसगढ़,