Category: हिंदी कविता

  • चेतना आधारित कविता

    चेतना आधारित कविता

    वह  चेतन  निर्द्वन्द  है अद्भुत  निर्विकार  है
    सारे विकार  मनजनित कल्पित संस्कार है ।
    आत्म सत्ता है सर्वोपरि  बोधक है  सदगुरु ,
    भ्रम  भेद  भय भटकाता अतुल भवभार है ।
    जो है अजर जो है अमर सर्वदा त्रयकाल है ,
    इस जीव जगत का सर्वत्र मात्र एक दातार है।
    संयोग  वियोग दुख  सुख से है परे प्राणधन ,
    जग विचित्र लगता पर वो अदृश्य अपार है ।
    भटकाव भरी क्षणभंगुरता  यद्यपि दृष्टि मे हैें ,
    सबको देता आकार जो जग में निराकार है ।
                        ~रामनाथ साहू  ”  ननकी  “
                                  मुरलीडीह

  • छेरछेरा त्योहार पर कविता

    छेरछेरा त्योहार

    पूस मास की पूर्णिमा, अन्न भरे घर द्वार।
    जश्न मनाता आ गया, छेरछेरा त्योहार।।
    अन्न दान का पर्व है, संस्कृति की पहचान।
    मालिक या मजदूर हो, इस दिन एक समान।।


    घर-घर जातें हैं सभी, गाते मंगल गान।
    मुट्ठी भर-भर लोग भी, करते हैं सब दान।।
    भेष बदल कैलाश-पति, गये उमा के द्वार।
    अन्नदान से फिर मिला, इक दूजे को प्यार।।


    कर्म सभी अपना करें, रखें सभी से प्रीत।
    हमें यही बतला रही, लोक पर्व की रीत।।
    प्रेम-प्यार से सब रहें, करें मलिनता दूर।
    मात अन्नपूर्णा करें, धन वैभव भरपूर।।
           
             केतन साहू “खेतिहर”
       बागबाहरा, महासमुंद (छ.ग.)

  • अन्धविश्वास पर कविता

    अन्धविश्वास पर कविता

    तंत्र मंत्र के चक्कर की खबरे खूब आती है
    अन्धविश्वास में अक्सर जानें ही जाती है।


    सुन लो घटना हुआ जो कोरबा रामकक्षार है
    अंधभक्त पुत्र ने कर दिया खुद माँ पर वार है
    भ्रम जाल में फंसकर अपनी माँ को गंवा लिया
    लहू भी पीया उसने माँ का मांस भी खा लिया


    पड़ा रहा मति मार कर अबूझ अज्ञान गोरख में
    माँ का सर चढ़ाया देवता पर एक मूरख ने
    पूजा करते माँ को मार दिया  कुल्हाड़ी से
    मंत्र सिद्धि में ग्यारह जाने गई थी दिल्ली के बुराड़ी से


    मंत्र सिद्धि का जाल फैलाया है यहां यूँ ठगों ने
    दौड़ रहा अन्धविश्वास विद्या कुछ रगो में
    ना समझ पड़े रहते हैं क्यों झूठी सम्मोह में
    ऎसी घटनाएं हुई हमीरपुर और दमोह में


    ज्ञान विज्ञान से अज्ञानता मिलकर भगाओ जी
    अंधश्रद्धा उन्मूलन से लोगो को बचाओ जी


    राजकिशोर धिरही

  • कोशिश क्यों नही करता अपना घर बसाने को

    कोशिश क्यों नही करता अपना घर बसाने को

    ऐ पाक़!तू क्यों तना है अपना घर जलाने को।

    कोशिश क्यों नही करता अपना घर बसाने को।।

    तुम्हारे तमाम ज़ुल्मों को सीनें से लगाते रहे।

    पर गुस्सा क्यों दिलाता है हथियार उठाने को।।

    पंछी की तरह तो तुझे हम आज़ाद कर दिये थे।

    फिर क्यों चाहता है तू अपना पर कटाने को।।

    तुझे पता ही नही कि तू किस मिट्टी से पैदा हुआ।

    और ललकार रहा है यूँ बेमौत मर जाने को।।

    अपने गिरेबाँ में झाँककर जरा देख भी लो।

    फिर सीना तानकर आना हमसे नज़र मिलाने को।।

    कश्मीर की कलियों से इश्क़ लड़ाना छोड़ दो ज़नाब।

    नही तो तैयार हो जाओ अपना सर कटानें को।।

    तू ख़ुद अपनी काली करतूतों से इतना ग़मगीन है।

    कि दिलजले भी नही चाहते तेरा दिल जलाने को।।

    ख़ुद बर्बाद हजारों की ज़िन्दगी भी बर्बाद कर दी।

    अब क्या खाक़ करेगा किसी की ज़िन्दगी बनानें को।।

    पाक़ राहों से गुजरनें तुझे हम राह भी दिखाते रहे।
    “सरल” राहों में भटका क्यों अपनी मंज़िल पाने को।।


               ।।रचनाकार।।

       उमेश श्रीवास”सरल”

    पता–मु.पो.+थाना-अमलीपदर
       विकासखण्ड-मैनपुर
    जिला-गरियाबंद (छत्तीसगढ़)      
         

  • संगम नगरी प्रयागराज

    संगम नगरी प्रयागराज

    संक्रांति के पावन दिवस पर
    चलो आज हम कुंभ नहालें
    प्रयागराज के संगम तट पर
    माँ गंगे का भव्यदर्शन पा लें।।
         भव्य दिख रही संगम नगरी
         भाँति- भाँति के लोग हजार
         शाही स्नान करने को पहले
         देखो नागा की लगी कतार।।
    साधु संतकी भीड़ है उमड़ी
    नागा, जूना,जंघम, किम्बर
    डुबकी लगाकर इस संगम में
    जीवन बनाते हैं पुण्योज्वल।।
         दादा, दादी, मामा, मामी
         सभी नहाने तो आए हैं।
         पोते,पोती,नाती,नातिन
         अपने साथ जो लाएँ है ।।
    कवियों, साहित्यकारों की नगरी
    प्रयागराज बड़ा है प्यारा ।
    कुंभ स्नान कर धन्य हो गये
    कितना बड़ा सौभाग्य हमारा।।


    ✍बाँके बिहारी बरबीगहीया ✍