Category: हिंदी देशभक्ति कविता

  • स्वतंत्रता दिवस अमर रहे

    स्वतंत्रता दिवस अमर रहे

    स्वतंत्रता दिवस अमर रहे!
    ***
    सतत् किया संघर्ष, गुलामी से छुटकारा पाने को,
    भारतीय जनता ने ठाना , जुल्मों सितम
    मिटाने को!
    वयोवृद्ध, बालक, बालिका और युवा सब
    थे एकत्र,
    ठान लिया था, अंग्रेज़ों का, छिन्न भिन्न हो
    जाए छत्र!
    स्वाधीनता की लौ जल रही, हर एक हृदय
    समाने को,
    आजादी के लिए, सभी थे, तत्पर मर मिट
    जाने को!
    अंग्रेजों ने छल पूर्वक, इस देश को हथियाया था,
    सीधी सादी जनता को, उसने तो बहुत
    सताया था।
    खेती बाड़ी, खुद का धंधा करने की मनाही थी,
    निर्धनता में जिएं सभी, ऐसे गोरों ने चाही थी!
    पर, गांधी, नेहरू, सुभाष, जैसे लोगों ने
    काम किया,
    भगत सिंह, आज़ाद, राजगुरु सुखदेव को
    साथ लिया,
    आंदोलन, सत्याग्रह करके विवश किया
    था गोरों को,
    भारत छोड़ो! कहकर सबने भगा दिया सब चोरों को,!
    पर बंटवारा हुआ देश का, यह दुःख का
    था विषय कठिन,
    पर जो होना था, उसका, क्या कर सकते
    हैै अब के दिन?
    जागो भारत वासी! हमको मिलजुलकर
    अब रहना है,
    एक सूत्र में बंधे हुए हम, संग संग सुख दुःख सहना है,,!

    पद्म मुख पंडा ग्राम महा पल्ली
    जिला रायगढ़ छ ग

  • गोली दन दन दन हो गयी शुरू

    गोली दन दन दन हो गयी शुरू

    गोली दन दन दन हो गयी शुरू

    गोली दन दन दन हो गयी शुरू ,हो गयी शुरू,
    भारत माँ के लाल गरजे शेर गबरू ..
    मूछ मरोड़ो,आगे आओ ,आया अपना दौर रे,
    और निचोड़ो ऐसे जैसे निम्बू दिया निचोड़ रे,
    क्योंकि गोली दन दन दन हो गयी शुरू ,हो गयी शुरू,
    भारत माँ के लाल गरजे शेर गबरू ..

    अरे खड़ा चीर दो खीरे जैसा मूली जैसा काटो ,
    उत्तर दक्षिण पूरब पश्चिम नरमुंडो से भर दो रे,
    क्योंकि गोली दन दन दन हो गयी शुरू ,हो गयी शुरू,
    भारत माँ के लाल गरजे शेर गबरू ..

    किसको यहाँ सदा रहना है,किसका यहाँ ठिकाना रे,
    किसका कन्धा,किसका कुंदा,माँ का घाव पुराना है,
    मुट्ठी भर सांसो की गठरी मरघट पर ले जाना है,
    क्योंकि गोली दन दन दन हो गयी शुरू ,हो गयी शुरू,
    भारत माँ के लाल गरजे शेर गबरू ..

    • संकलित
  • खुदीराम के नाम का गान /मनीभाई नवरत्न

    खुदीराम के नाम का गान /मनीभाई नवरत्न

    खुदीराम बोस भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक महान क्रांतिकारी थे, जिन्होंने देश के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए। उनके साहस, बलिदान और देशप्रेम को समर्पित एक गीत प्रस्तुत है:

    खुदीराम के नाम का गान /मनीभाई नवरत्न

    खुदीराम के नाम का गान

    (Verse 1)
    वो नन्हा वीर था, पर दिल में जोश था,

    नादान नहीं था , उसे होश था
    जिसके बलिदान से, महका हिंदुस्तान।

    वो प्रकाश, खुदीराम बोस था .

    (Chorus)
    खुदीराम, तुम हो अमर,
    देशभक्ति की ज्योत प्रखर।

    खुदीराम, तुम हो अमर,
    देशभक्ति की ज्योत प्रखर।

    (Verse 2)
    कम उम्र में ही, वो बना क्रांतिकारी,
    भारत की गुलामी , उसको लगता था भारी ।
    बम पिस्तौल, बन गये उसके साथी,
    दुश्मनों के मन में जला दी दहशत की बाती।

    (Chorus)
    खुदीराम, तुम हो अमर,
    देशभक्ति की ज्योत हो प्रखर।


    खुदीराम, तुम हो अमर,
    देशभक्ति की ज्योत हो प्रखर।

    (Verse 3)
    वो हंसते-हंसते फांसी पे झूल गया,
    देश के लिए , सब कुछ भूल गया।
    वीरों की धरती पे , जन्मा वो महान,
    याद रहेगी सदा , तेरा बलिदान जवान।

    (Chorus)
    खुदीराम, तुम हो अमर,
    देशभक्ति की ज्योत हो प्रखर।

    खुदीराम, तुम हो अमर,
    देशभक्ति की ज्योत हो प्रखर।

    (Outro)
    तुमको,कभी ना भूलेंगे,
    तुम्हारी रंग में घुलेंगे।
    खुदीराम, तेरा नाम रहेगा सदा,
    देश का सच्चा वीर, तू ही हमारा।


    यह गीत खुदीराम बोस के साहस, बलिदान और देशप्रेम को समर्पित है। उनके बलिदान ने स्वतंत्रता संग्राम के आंदोलन को और भी मजबूत किया और आज वे भारतीय इतिहास के अमर वीरों में गिने जाते हैं।

  • भारत छोड़ो का जयघोष (भारत छोड़ो आंदोलन पर एक कविता)

    भारत छोड़ो का जयघोष (भारत छोड़ो आंदोलन पर एक कविता)

    यहां भारत छोड़ो आंदोलन पर एक कविता प्रस्तुत है:

    भारत छोडो आन्दोलन

    भारत छोड़ो का जयघोष

    सुनो कहानी वीरों की, जब भारत हुआ बेखौफ,
    आजादी का बिगुल बजा, उठा स्वतंत्रता का शोर।
    नव जागरण की लहर चली, एकता का उठा संकल्प ,
    भारत छोड़ो का नारा गूंजा, देश की हुई कायाकल्प ।

    अंग्रेजों की हुकूमत से, तंग हो गया था आमजन,
    तोड़नी थी बेड़ी हमें , मंजूर नहीं शोषण और दमन।
    गांधी के नेतृत्व में, आजादी का बिगुल बजा,
    ‘भारत छोड़ो’ का जयघोष, पूरे देश में गूंजा।

    8 अगस्त का दिन आया, संघर्ष की नई आंधी लाई,
    “अब अंग्रेजों, भारत छोड़ो!” हर कोने से बात गहराई
    जन-जन में जगी थी ज्वाला, आजादी का अलख जगाया,
    हर दिल में थी एक तमन्ना, एक नया साहस जुटाया ।

    सत्याग्रह की शक्ति से, किया अन्याय का प्रतिकार,
    गांधी, नेहरू, पटेल और सुभाष, सबने किया प्रहार ।
    महिला और पुरुष सभी ने, बढ़ाया आंदोलन का रथ,
    बालक-बालिकाओं ने भी, समझा अपना कर्तव्य पथ।

    हर गांव, हर शहर ने देखी, आजादी की जंग,
    भारत मां के खातिर सबने, सजाया लहू का रंग ।
    आंदोलन की ज्वाला में, जले थे कितने सपने प्यारे,
    न्योछावर हो गये आन्दोलन में, कई देशभक्त हमारे।

    जेलों में डाले गए थे कई स्वतंत्रता सेनानी,
    पर रुके नहीं कदम, बढ़ते रहे स्वाभिमानी।
    देशभक्ति की अग्नि में, तपे थे उनके अरमान,
    अंततः मिली विजय हमें, आजादी का नव विहान।

    15 अगस्त 1947 को, फहराया तिरंगा गर्व से,
    स्वतंत्रता का नव युग आया, भारत की जय से।
    आज हम सब मिलकर गर्व करें, उन बलिदानों की शान में,
    जिनके प्रयासों से मिला , स्वतंत्रता का यह वरदान हमें।

    याद रखें उस हिम्मत को, जो ‘भारत छोड़ो’ में आई,
    एकता की अद्भुत मिसाल, जिसने आजादी दिलाई।
    भारत मां के वीर सपूतों को, नमन करें बारंबार,
    जिनकी वजह से आज हम , स्वतंत्रता के हकदार।

    मनीभाई नवरत्न


    यह कविता भारत छोड़ो आंदोलन के संघर्ष और साहसिक प्रयासों को समर्पित है, जिसने देश को स्वतंत्रता की ओर अग्रसर किया।

  • पुष्प की अभिलाषा हिंदी कविता

    पुष्प की अभिलाषा हिंदी कविता

    “पुष्प की अभिलाषा” माखनलाल चतुर्वेदी की एक प्रसिद्ध कविता है, जिसमें एक पुष्प (फूल) की इच्छाओं और उसकी बलिदानी भावना का सुंदर वर्णन किया गया है। इस कविता के माध्यम से, कवि ने देशभक्ति और आत्म-समर्पण की भावना को प्रस्तुत किया है।

    पुष्प की अभिलाषा

    पुष्प की अभिलाषा / माखनलाल चतुर्वेदी


    चाह नहीं, मैं सुरबाला के
    गहनों में गूँथा जाऊँ,


    चाह नहीं प्रेमी-माला में बिंध
    प्यारी को ललचाऊँ,


    चाह नहीं सम्राटों के शव पर
    हे हरि डाला जाऊँ,


    चाह नहीं देवों के सिर पर
    चढूँ भाग्य पर इठलाऊँ,


    मुझे तोड़ लेना बनमाली,
    उस पथ पर देना तुम फेंक!


    मातृ-भूमि पर शीश- चढ़ाने,
    जिस पथ पर जावें वीर अनेक!

    यहाँ पर कविता का भावार्थ दिया गया है:

    भावार्थ:

    इस कविता में एक पुष्प अपनी अभिलाषा प्रकट करता है। वह पुष्प किसी राजमहल की शोभा बनने या किसी प्रियजन के बालों में सजने की इच्छा नहीं करता। वह यह भी नहीं चाहता कि उसे देवताओं की पूजा में चढ़ाया जाए। उसकी अभिलाषा कुछ और ही है, वह अपने जीवन को देश के लिए बलिदान करने की इच्छा रखता है। पुष्प चाहता है कि जब वह खिले, तो उसे उस पथ पर फेंक दिया जाए जिस पर देश के वीर सपूत स्वतंत्रता की लड़ाई के लिए जा रहे हों। वह वीरों के पैरों में कुचला जाना चाहता है, ताकि वह भी देश के लिए अपना जीवन न्योछावर कर सके।

    मुख्य विचार:

    1. देशभक्ति: पुष्प की देश के प्रति प्रेम और समर्पण की भावना को दर्शाया गया है।
    2. बलिदान की भावना: पुष्प का यह कहना कि वह वीरों के पैरों में कुचला जाना चाहता है, बलिदान की भावना को दर्शाता है।
    3. सादगी और त्याग: पुष्प की इच्छाएँ भौतिक सुखों से परे हैं, जो सादगी और त्याग का प्रतीक हैं।

    निष्कर्ष:

    माखनलाल चतुर्वेदी ने इस कविता के माध्यम से यह संदेश दिया है कि वास्तविक सौंदर्य और मूल्य देश के लिए बलिदान में है। यह कविता पाठकों को देशभक्ति और आत्म-समर्पण के लिए प्रेरित करती है। पुष्प के माध्यम से कवि ने यह व्यक्त किया है कि एक साधारण व्यक्ति भी अपने देश के लिए कितना बड़ा योगदान दे सकता है।