जलती धरती/नीरज अग्रवाल

जलती धरती/नीरज अग्रवाल



पर्यावरण और वन उपवन हैं।
जल थल जंगल हमारे जीवन हैं।
जलती धरती बढ़ता तापमान हैं।
मानव जीवन में आज  संकट  हैं।
हम सभी को सहयोग जो करना हैं।
जलती धरती तपता सूरज कहता हैं।
वसुंधरा को हरा भरा हमको करना हैं।
मानव जीवन में कुदरत के रंग भरने हैंं।
आज  हम सभी को प्राकृतिक बनना हैं।
न सोचो कल का जलती धरती कहतीं हैंं।
बादल बरसे जलती धरती की प्यास बुझाते हैं।
हम कदम उठाए जलती धरती को बचाना हैंं।

नीरज अग्रवाल
चंदौसी उ.प्र

JALATI DHARATI
JALATI DHARATI

जलती धरती/नीरज अग्रवाल

सच तो यही जिंदगी कुदरत हैं।
जलती धरती आकाश गगन हैं।
हम सभी की सोच समझ हैं।
हां जलती धरती  सूरज संग हैं।
खेल हमारे मन भावों में रहते हैं।
जलती धरतीं मानव जीवन हैं।
हमारे मन भावों में प्रकृति बसी हैं।
सच और सोच हमारी अपनी हैं।
हम सभी जलती धरती के संग हैं।
आज कल बरसों से हम जीते हैं।
हां सच जलती धरती रहती हैं।
हम सब मानव समाज कहते हैं।
कुदरत और प्रकृति और हम,
बस जलती धरती रहती हैं।


नीरज अग्रवाल चंदौसी उ.प्र

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