जलती धरती/ रितु झा वत्स

विशुद्ध वातावारण हर ओर
मची त्रास जलती धरती धूमिल
आकाश पेड़ पौधे की क्षति हो
रही दिन रात धरती की तपिश
कर रही पुकार ना जाने
कब बरसेगी शीतल बयार प्लास्टिक
की उपयोग हो रही लगातार
दूषित हो रही हर कोना बदहाल
जलती धरती सह रही प्रहार
सूख रही कुंवा पोखर तालाब
बूंद भर पानी की धरती को
तलाश प्रकृति के बीच मची ये
कैसा हाहाकार जलती धरती
धूमिल आकाश बढ़ रही ये
हरपल हुंकार धरती की पीड़ा
स्नेहिल उद्गार मानव पर सदैव
बरसाते दुलार उठो मनुज स्वप्न से
सुनने धरती की पुकार
श्यामल सुभाषित धरती सह
रही कितनी अत्याचार “
रितु झा वत्स
बिहार जिला-सुपौल