जीवनामृत मेरे श्याम : —
अमृत कहाँ ले पाबे रे मंथन करे बगैर ।
सद्ज्ञान नई मिले तोला साधन करे बगैर ।।
मन मंदराचल बना ले हिरदे समुंद कर ,
मन नई बँधावे देख ले बंधन करे बगैर ।।
गुन दोष के सुतरी ल बने बांध खिंच के ,
मथ रात दिन आठो पहर खंडन करे बगैर ।।
आही घड़ी लगन अमरित हो जाही परगट ,
झन पीबे ननकी सद्गुरु बंदन करे बगैर ।।
~ रामनाथ साहू ” ननकी “
मुरलीडीह
Leave a Reply