जीत मरण को वीर / भवानी प्रसाद तिवारी
जीत मरण को वीर, राष्ट्र को जीवन दान करो,
समर-खेत के बीच अभय हो मंगल-गान करो।
भारत-माँ के मुकुट छीनने आया दस्यु विदेशी,
ब्रह्मपुत्र के तीर पछाड़ो, उघड़ जाए छल वेशी।
जन्मसिद्ध अधिकार बचाओ, सह-अभियान करो,
समर-खेत के बीच, अभय हो, मंगल-गान करो।
क्या विवाद में उलझ रहे हो हिंसा या कि अहिंसा ?
कायरता से श्रेयस्कर है छल-प्रतिकारी हिंसा।
रक्षक शस्त्र सदा वंचित है, द्रुत संधान करो,
समर-खेत के बीच, अभय हो मंगल-गान करो।
कालनेमि ने कपट किया, पवनज ने किया भरोसा,
साक्षी है इतिहास विश्व में किसका कौन भरोसा ।
है विजयी विश्वास ‘ग्लानि’ का अभ्युत्थान करो,
समर-खेत के बीच, अभय हो मंगल-गान करो।
महाकाल की पाद-भूमि है, रक्त-सुरा का प्याला,
पीकर प्रहरी नाच रहा है देशप्रेम मतवाला ।
चलो, चलो रे, हम भी नाचें, नग्न कृपाण करो,
समर-खेत के बीच, अभय हो मंगल-गान करो।
आज मृत्यु से जूझ राष्ट्र को जीवन दान करो,
रण-खेतों के बीच अभय हो मंगल-गान करो।