सामाजिक बदलाव पर छत्तीसगढ़ी कविता
करलई होगे संगी ,करलई होगे गा।
छानी होगे ढलई ,करलई होगे गा ।।
पहिली के माटी घर ,मोला एसी लागे।
करसी के पानी म ,मोर पियास भागे।
मंझन पहा दन, ताश अऊ कसाड़ी म।
टेढ़ा फंसे रे , हमर बिरथा-बाड़ी म।
ए जमाना बदलई , करलई होगे गा ।
करलई होगे संगी , करलई होगे गा ॥
टीवी म झंपाके, लईका,सियान तको ।
रेसटीप अउ फुगड़ी खेल नंदागे सबो।
कइसे होही, हामर लइका के भविष्य ?
मोबाईल गेम म आंखी बटरागे दूनो।
नइ होत गोठ बतरई,करलई होगे गा ।
करलई होगे संगी, करलई होगे गा ॥
बईलागाड़ी लुकागे ,आ गय हे ट्रेक्टर ।
फटफटी कुदात हें ,सइकिल हे पंक्चर।
खरचा बढ़ा के ,बनथें अपन म सयाना।
गरीबी कार्ड के रहत लें, मनमाने खाना।
नइ होत हे कमई-धमई ,करलई होगे गा ।
करलई होगे संगी, करलई होगे गा ।।
पहिली कस पहुना , कोई आवत नईये।
बबा ह लईका ल, कथा सुनावत नईये।
कोठी म धान उछलत , भरावत नईये।
गुरुमन ल चेला हर , डरावत नईये।
मुर्रा लई कस होगे दवई,करलई होगे गा।
करलई होगे संगी, करलई होगे गा ॥
(रचयिता :- मनी भाई भौंरादादर, बसना)
मनीभाई ‘नवरत्न’, छत्तीसगढ़