कविता का संसार

कविता का संसार

गीतों ने संसार रचाया
हंसी-खुशी के ताल संग।
अलंकारों की झंकार में
नाचता है छमछम छंद।।

नायिका के ख्वाब सजाने
नायक चाँद-सितारे लाया
नदिया गीत सुहाने गाये
गूंजे निर्झर कलकल नाद

दुःख -सुख की अजब रंगोली
विरह-मिलन की गमगीनी
डूब-उबरते जाने कितने प्रेमी
प्रीत के सागर में।।

रंगमंच के इस खेले में
नवरस में डूबे चारण
कभी ओज में शब्द गूंजते
कभी भक्ति में झूम रहे

कभी विभत्स का प्रदर्शन
कभी ताण्डव दिखलाता 
कभी ग्लानि में डूबता कवि 
कभी मान मर्यादा रखता

मन आया राधेरानी पर
रास -रसैया ,ता ता थैया
नाचने लगे गोप-ग्वालन 
मुरली संग कृष्ण कन्हैया

विरही प्रेमी पत्थर खाके भी 
लैला लैला रटता रहता है
अपने रांझे से बिछुड़ी हीर
गम की चीख मारे फिरता है

अट्टहास कराता विदुषक
कभी स्तंभित कर जाता है
स्वेद बहाता कभी नायक
कभी रौद्र बन जाता है

कविता का संसार ये सारा
ममतामय हो जाता है
जब माँ की लोरी में 
नन्हा बालक सो जाता है

नाना रुपा छंद सजे हैं
नाना अलंकृत रुप धरे
कभी भजन में बहता है
तो कभी सृजन की राह चले ।

डा.नीलम, अजमेर

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *