लाल तुम कहाँ गये

लाल तुम कहाँ गये


* मेरे आँगन  का उजियारा था
माँ बाप के आँख का तारा था
सीमा पर तुझको भेजा था
पत्थर  का बना  कलेजा था
पर मैने यह नहीं   सोचा  था।
तू मुझे छोड़  कर जायेगा 
माँ बाप को  रुलवायेगा ।
क्यों पुलवामा  में सो गये ।
लाल तुम कहाँ गये ।

कहता था ब्याह रचाऊँगा
प्यारी सी बहू   मैं  लाऊँगा
फिर झूले में  तुझे झुलाऊँगा
खाना माँ तुम्हे खिलाऊँगा
कैसे  सपने दिखा  चले गये
लाल तुम कहाँ गये ।
बूढ़ी आँखे  अब  रोती   है
हरपल आँचल  को भिगोती है
खो गई आँख की  ज्योति   है
बेटा  तू   हीरा   मोती है ।
बिन कहे कुछ क्यों  चले गये ।
लाल तुम कहाँ गये ।
पापा का तू ही  सहारा था
तू  मेरा  राज  दुलारा    था
बहनों का भाई  प्यारा था
बस्ती वालों का  रखवारा  था ।
क्यों मुझे तड़पते छोड गये
लाल तुम कहाँ गये ।
लाल तुम कहाँ गये ।
केवरा यदु “मीरा “
राजिम
कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद

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