किसे कहूं दर्द मेरा

किसे कहूं दर्द मेरा

किसे कहूं दर्द मेरा
ओ मेरे साजन
लगे सब कुछ सुना सुना सा
तुम बिन छाई मायूसी
काटने को दौड़ते हैं ये लम्हे
हर पल, पल पल भी
वीरान खण्डहर की तरह
छाया काली जुल्फों सा अंधेरा 
बिन तेरे ए हमसफ़र ।
सताता हैं अकेलापन
हर वक़्त क्षण क्षण भी
क्यो जुदा हुए तुम 
तोड़कर दिल मेरा
क्यो बना विरह वियोग
टूटा वो अनुराग प्यारा
क्यो बढ़ गया फासला 
वादा था जन्म जन्मों तक का
मुझसे मेरा सुख चैन क्यो छीना
ए मेरे हमनवाब ।
किस खता की दी सज़ा
कैसे बताये तुम्हें
तुम बिन हम हैं अधूरे
हर पल हर क्षण भी
राह तकती हैं ये निगाहें
लौट आओ…. लौट आओ
फिर से मेरी जिंदगी में
ए मेरे हमनसी ।।

✍ एल आर सेजु थोब ‘प्रिंस’
कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद

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