परिश्रम पर कविता
वो मेहनतकश
करता रहा कड़ा परिश्रम
फिर भी रहा अभावग्रस्त
उसके श्रमफल पर
करते रहे अय्याशी
पूंजीपति
धर्म के नाम पर
करते रहे शोषण
धर्म के ठेकेदार
समानता के नाम पर
बटोरते रहे वोट
कुटिल सियासतदान
मेहनतकश के हालात
रहे जस के तस
जबकि उसके हक में
लगते रहे नारे
बनते रहे संगठन
होती रही राजनीति
आज तलक
-विनोद सिल्ला©