मिला जो आशियाना

मिला जो आशियाना

मिला जो आशियाना
वह सर्द रातों में ठिठुरता
आसरा ढूंढता पेड़ो के नीचे
पेड़ भी तो टपक रहे हैं
चीथड़े खोजता अपने लिए
जिससे ढक सके
कम्पित बदन को
मसृण पात…बैरी बने
एक बूंद ….एक शीतल बूंद
सिहरन पैदा करती अंतर तक
श्वान से सटकर
हल्की गर्माहट महसूस करता
घुटने भी सिकुड़कर ,
छू रहे चिबुक को
सांसो की भाप से तपाता,
हस्त,नेत्रों को
नींद तो कहाँ?
गुजर जाये ये निसि
प्राणांतक… स्याह
मार्ग में चलते मोटरों के धुएँ से
तपन खींचता -सा
आह! मिली जगह ओस बूंदों से बचने की
श्मशान की चद्दरें
तप्त गर्म राख सेंकने को
अब जग के सब आशियाने
तुच्छ है इसके लिये…
✍–धर्मेन्द्र कुमार सैनी,बांदीकुई
दौसा(राजस्थान)
मो.-9680044509
कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद

कविता बहार

"कविता बहार" हिंदी कविता का लिखित संग्रह [ Collection of Hindi poems] है। जिसे भावी पीढ़ियों के लिए अमूल्य निधि के रूप में संजोया जा रहा है। कवियों के नाम, प्रतिष्ठा बनाये रखने के लिए कविता बहार प्रतिबद्ध है।

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