न आंसू न आहें न कोई गिला है
न आंसू ,न आहें,न कोई गिला है,
लिखा भाग्य में जो वही तो मिला है,
पुकारूँ किसे पूछती है हथेली,
कभी जो दिया था उसी का सिला है।
उजाड़ा गया बाग ऐसे हमारा,
कभी जो बना था सभी का सहारा,
सता के मुझे मुस्कुराए जमाना,
कभी जो खिला ना वही तो खिला है।
निगाहें कभी देखती हैं उसे तो
यही सोचती हैं कभी पास आये,
बसा के उसे चाहतों के जहाँ में,
अकेले चला था मिला काफिला है।
शिकारी बना घूमता था सयाना,
बना आज कैसे अदा का निशाना,
बँधी पैर बेड़ी गले सर्प माला,
बड़ी बेबसी ये सदा वो हिला है।
नीतू ठाकुर
कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद
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