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  • रक्षाबंधन पर कविता

    रक्षाबंधन पर कविता: रक्षा बंधन, या राखी, भाई-बहनों के बीच अटूट प्यार को दर्शन देने के लिए मनाया जाता है। यह त्यौहार अप्राकृतिक श्रावण मास (सावन माह) की पूर्णिमा तिथि (पूर्णिमा दिवस) पर आधारित है। इस दिन बहन पूजा- माणिक्य वैज्ञानिकों की कलाइयों पर राखियां बांधती हैं और उनके स्वास्थ्य एवं जीवन में सफल होने की कामना करती हैं।

    रक्षाबंधन पर कविता

    प्राण वीरों भले ही गँवाना

    ● वैद्य गोपाल दत्त

    प्राण वीरों भले ही गँवाना, पर न राखी की इज्जत घटाना ।

    यह जो राखी तिरंगी हमारी, देती इज्जत इसे हिंद सारी ।

    भाई इसको न हरगिज लजाना, चाहे जाना पड़ें जेलखाना ।

    प्राण वीरो भले ही….

    हम न भूले हैं जलियाँवाला, जहाँ पे डायर से पड़ा पाला ।

    पेट के बल था उसने रेंगाया, देश की लाज सब बहा आया ।

    अब की ऐसा न आएं जमाना, चाहे जाना पड़ें जेलखाना।

    प्राण वीरो भले ही….

    है वह स्वराज्य मंदिर हमारा, जहाँ पे बैठा है गांधी सितारा।

    वहाँ पर पहुँचे हैं हजारों भाई और बहिनों की भी माँग आई।

    अब तो वहीं है सबका ठिकाना, आओ सारे चलें जेलखाना।

    प्राण वीरो भले ही….

    याद रखना पेशावर की गोली, खेलना हिंद में वह ही होली ।

    जिससे माथा हो ऊँचा हमारा, और आजाद हो हिंद प्यारा।

    बात अपनी न नीची कराना, चाहे जाना पड़ें जेलखाना

    प्राण वीरो भले ही….

    दक्षिणा बस यही है तुम्हारी, लाज राखी की रखना हमारी।

    चाहे डंडे पड़ें तुमको खाना, पैर हरगिज न पीछे हटाना ।

    या तो गोली को सीने पै खाना, या कि सीधे चलो जेलखाना ।

    प्राण वीरो भले ही…

  • गुरु पूर्णिमा पर कविता

    गुरु पूर्णिमा पर कविता: गुरु पूर्णिमा का यह पर्व महर्षि वेद व्यास को समर्पित है क्योंकि आज ही के दिन महर्षि वेद व्यास का जन्म हुआ था। इस दिन शिष्य अपने गुरुओं की पूजा करते हैं…

    गुरुस्तुति

    गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु ,गुरुर्देवो महेश्वरः ।

    गुरुः साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः ।

    गुरु पूर्णिमा पर कविता

    गुरुवर मेरा उद्धार करो

    o आचार्य मायाराम ‘पतंग’

    गुरुवर मेरा उद्धार करो।

    पद वंदन को स्वीकार करो।

    दर-दर भटका ठोकर खाई ।

    सुख-शांति मुझे ना मिल पाई ॥

    जब से ली सुखद शरण गुरुवर ।

    तब से मुझ में हिम्मत आई ॥

    अब भक्ति भाव संचार करो।

    गुरुवर मेरा उद्धार करो।

    सत्युग सुमति का दाता है।

    हरि चिंतन मन को भाता है ।

    क्षमता है क्षीण हुई स्वामी

    साधना न तन कर पाता है।

    मत और अधिक लाचार करो।

    गुरुवर मेरा उद्धार करो ॥

    दर्शन की अभिलाषा मन में।
    पर साहस शेष नहीं तन में ॥

    जब तक ना दृष्टि दयामय हो

    पाऊँ संतोष न नयनन में ।

    दर्शन दो बेड़ा पार करो ।

    गुरुवर मेरा उद्धार करो ॥

  • नव वर्ष पर कविता

    नव वर्ष आया

    नव वर्ष पर कविता

    o आचार्य मायाराम ‘पतंग’

    नया वर्ष आया नया वर्ष आया ।

    नया वर्ष लेकर नया वर्ष आया ।।

    उठो तुम नया आज उत्साह लेकर ।

    चलो साथियों हाथ में हाथ लेकर ।

    सतत युद्ध में वीरता से लड़ो तुम ।

    कठिन पथ में धीरता से बढ़ो तुम ॥

    प्रगति पथ खुला है स्वगति तो बढ़ाओ ।

    कदम-से-कदम आज अपने मिलाओ ॥

    विषम पर्वतों के शिखर भी लो।

    झुका उन्हें काट कर मार्ग अपने बना लो ॥

    नदी, झील कब जोश को रोक पाए।

    साहस ने सचमुच समुंदर सुखाए ।

    नव वर्ष में पुष्प नूतन खिलाओ।

    जरा आदमी आदमी से मिलाओ ॥

    कहीं आदमी भीड़ में खो गया है।

    दिखाने का रोग उसे हो गया है।

    सभी एक हैं यह सहज ज्ञान दे दो ।

    इंसानियत की उसे पहचान दे दो ।

    नए वर्ष का मीत स्वागत मनाओ।

    नया काम खोजो, नए स्वर सजाओ।

  • 28 मई वीर सावरकर पुण्यतिथि पर कविता

    वह पहला देशभक्त

    28 मई वीर सावरकर पुण्यतिथि पर कविता

    राजेंद्र राजा

    वह पहला देशभक्त जिसने सब वस्त्र विदेशी जलवाए।

    स्वराज स्वदेशी मंत्र दिया सब उसके साथ चले आए।

    वह पहला अमरपुत्र जिसने पूरी आजादी माँगी थी।

    उसके कदमों की आहट से भारत की जनता जागी थी॥

    वह पहला वीर पुरुष जिसने लंदन में बिगुल बजाया था ।

    प्रवासी भारत वीरों का आजादी संघ बनाया था ।

    वह पहला बैरिस्टर था जो डिग्री से वंचित किया गया।

    रह गए देखते न्यायालय ना न्याय सत्य को दिया गया ॥

    वह था पहला साहित्यकार प्रतिबंधित जिसकी रचनाएँ।

    जिनको पढ़कर आजादी की जन-जन में जगी भावनाएँ ।।

    था वह पहला इतिहासकार जिसने ना झूठा कथन सहा ।

    अंग्रेज गदर कहते जिसको, स्वातंत्र्य प्रथम संग्राम कहा ।।

    पहला दो देशों का बंदी इंग्लैंड-फ्रांस का वाद बना।

    उस विश्व हेग न्यायालय में जाकर इक नया विवाद बना ॥

    तीन रंग का पहला ध्वज लंदन में स्वयं बनाया था।

    जिसको लेडी कामाजी ने जर्मन जाकर फहराया था ।

    था पहला देशभक्त जिसको ‘दो जीवन कारावास’ मिला।

    फिर भी वह सच्चा सेनानी आजादी पथ से नहीं हिला ॥

    पहला बंदी कवि, जेलों की दीवारों पर लिख दी कविता ।

    बिन कागज कलम और स्याही के, बहती रही काव्य सरिता ॥

    पहला समतावादी चिंतक जिसने दलितों को अपनाया ।

    फिर दलित वर्ग के मानव को मंदिर का सेवक बनवाया ॥

    भारत माता का वह सपूत आया था युगद्रष्टा बनकर ।

    या भारत की आजादी की सृष्टि का युगस्त्रष्टा बनकर ॥

  • 23 मार्च सरदार भगतसिंह बलिदान दिवस पर कविता

    भगतसिंह बलिदान दिवस पर कविता: इस दिन को बेहद विचित्र दिन के रूप में याद किया जाता है। वहीं 23 मार्च को भगत सिंह (भगत सिंह), राजगुरु (राजगुरु) और सुखदेव (सुखदेव) को फाँसी दे दी गई थी। इसलिए 23 मार्च को अमर शहीद के बलिदान को याद करके शहीद दिवस मनाया जाता है। इस दिन इन शहीद को रक्षाबंधन की शुभकामनाएं दी जाती हैं

    23 मार्च सरदार भगतसिंह बलिदान दिवस पर कविता

    o आचार्य मायाराम ‘पतंग”

    जो जन्म भू पर हो गया बलिदान बंधुओ !

    अंत:करण स कीजिए सम्मान बंधुओ !!

    तेईस वर्ष की उम्र का वह नौजवान था।

    था वीरता की मूर्ति वह भारत की शान था।

    सबके लिए थी प्रेरणा जन-जन का प्राण था ।

    गौरव समस्त देश का साहस की खान था ।

    सरदार भगत सिंह था युग मान बंधुओ !

    अंतः करण से कीजिए सम्मान बंधुओ !!

    बम तो प्रतीक मात्र था, मन की मशाल का ।

    आकंठ देशप्रेम के उठते उबाल का ।

    भीतर धधकती क्रांति की उस उग्र ज्वाल का ।

    वह था जवाब सामयिक जलते सवाल का ।

    मिल-जुल शहीद का करें यशगान बंधुओ!

    अंत:करण से कीजिए सम्मान बंधुओ !!

    भागा नहीं वह सिंह-सा जमकर यों खड़ा था ।

    पर्वत किसी तूफान के आगे ज्यों अड़ा था।

    हँस के जवान मौत के सीने पे चढ़ा था।

    माँ के मुकुट में कीमती मोती-सा जड़ा था।

    मलयज भी उसका कर रहा गुणगान बंधुओ !

    अंतःकरण से कीजिए सम्मान बंधुओ !!

    फाँसी का फंदा चूमके, चंदा से जा मिला।

    बगिया धरा की छोड़ के आकाश में खिला ।

    हँस के परंतु कह गया मुझको नहीं गिला ।

    बलिदान मातृभूमि हित जनमों का सिलसिला

    भारत महान् पर हमें अभिमान बंधुओ !

    अंत:करण से कीजिए सम्मान बंधुओ !!