Blog

  • 25 दिसंबर वीर ऊधम सिंह पुण्यतिथि पर कविता

    “वीर उधम सिंह” जिन्होंने जलियाँवाला बाग़ हत्याकांड का बदला लिया / इतिहास स्मृति -13 मार्च 1940. अमर शहीद ऊधम सिंह ने 13 अप्रैल, 1919 ई. को पंजाब में हुए भीषण जलियाँवाला बाग़ हत्याकांड के उत्तरदायी माइकल ओ’डायर की लंदन में गोली मारकर हत्या करके निर्दोष भारतीय लोगों की मौत का बदला लिया था। जिस लिए 25 दिसंबर को वीर ऊधम सिंह पुण्यतिथि मनाई जाती है

    25 दिसंबर वीर ऊधम सिंह पुण्यतिथि पर कविता

    ● नंदा राही ‘देहलवी’

    तेरे खूँ से शहीद ऊधम सिंह

    तेरे खूँ से शहीद ऊधम सिंह,

    हिंद का हर चिराग रोशन है।

    तेरे कुरबानियाँ के सदके ही,

    आज अपना दिमाग रोशन है।

    तेरे हलके से एक झटके से,

    बादशाहों के तख्त डोल गए ।

    ‘जलियाँवाले का मैंने बदला लिया’,

    आसमाँ तक तेरे ये बोल गए ॥

    तेरी मिट्टी तो उड़ गई लेकिन,

    आँधियों के कदम उखाड़ गई।

    तेरी आवाज दब गई बेशक,

    जलजलों को मगर पछाड़ गई ।।

    क्या मिटाएँगे आसमाँ उसको,

    नक्श जो तू जमीं पे छोड़ गया ।

    खून तेरा बिखर गया लेकिन,

    जुल्म की सरहदों को तोड़ गया।

    बदला लेने की आरजू तेरी,

    तेरे सीने का खून चाट गई।

    तेरी गरदन तो कट गई लेकिन,

    जुल्म का बंद बंद काट गई ।।

  • 30 जनवरी महात्मा गांधी पुण्यतिथि पर कविता

    30 जनवरी महात्मा गांधी पुण्यतिथि पर कविता

    महात्मा गांधी पुण्यतिथि पर कविता

    mahatma gandhi
    mahatma ghandh

    • बाबूलाल शर्मा ‘प्रेम’

    स्वतन्त्रता के अमर पुजारी, सत्य-अहिंसा के व्रतधारी !

    बापू, तुम्हें प्रणाम बापू, तुम्हें प्रणाम !

    देश-प्रेम का पाठ पढ़ाने, दुखियों का दुःख-दर्द मिटाने ।

    प्राण देश के लिए दे दिए और गए सुर-धाम !

    बापू, तुम्हें प्रणाम बापू, तुम्हें प्रणाम !

    लड़ते रहे न्याय के हित में, अपना सुख छोड़ा परहित में।

    श्रम सेवा का दीप तुम्हारा, जलें सदा अविराम !

    बापू, तुम्हें प्रणाम — बापू, तुम्हें प्रणाम !

    पद-चिह्नों पर चलें तुम्हारे, हमें शक्ति दो, बापू प्यारे !

    कठिनाई से लड़ना सीखें, जाने शीत न घाम !

    बापू, तुम्हें प्रणाम बापू, तुम्हें प्रणाम !

    जय बोल

    • मैथिलीशरण गुप्त

    खुली है कूटनीति की पोल,

    महात्मा गांधी की जय बोल ।

    नया पन्ना पलटे इतिहास,

    हुआ है नूतन वीर्य विकास,

    विश्व, तू ले सुख से नि:श्वास,

    तुझे हम देते हैं विश्वास ।

    आत्म-बल धारण कर अनमोल,

    महात्मा गांधी की जय बोल ।

    देख कर वैर, विरोध, विनाश,

    पड़ गया है नीला आकाश,

    किन्तु अब पशु-बल हुआ हताश,

    कटेगा पराधीनता – पाश ।

    उठा ईश्वर का आसन डोल,

    महात्मा गांधी की जय बोल ।

  • गोपालकृष्ण गोखले पुण्यतिथि पर कविता

    इसे सुनेंगोपाल कृष्ण गोखले (9 मई 1866 – 19 फरवरी 1915) भारत के एक स्वतंत्रता सेनानी, समाजसेवी, विचारक एवं सुधारक थे। महादेव गोविन्द रानडे के शिष्य गोपाल कृष्ण गोखले को वित्तीय मामलों की अद्वितीय समझ और उस पर अधिकारपूर्वक बहस करने की क्षमता से उन्हें भारत का ‘ग्लेडस्टोन’ कहा जाता है।

    गोपालकृष्ण गोखले पुण्यतिथि पर कविता:

    गोपालकृष्ण गोखले पुण्यतिथि पर कविता

    मानस्पद गोखले की मृत्यु पर

    ● गोपाल शरणसिंह

    जो निज प्यारी मातृ-भूमि का सुख सरोज विकसाता था,

    अन्धकार अज्ञान रूप जो हरदम दूर हटाता था ।

    अतिशय आलोकित था सारा भरत खण्ड जिसके द्वारा,

    हाय ! अचानक हुआ अस्त है वही हमारा रवि प्यारा ॥ १ ॥

    था जिसका प्रकाश-पथ- दर्शक हम लोगों का सुखकारी,

    था जिसका अभिमान सर्वदा देश बन्धुओं को भारी ।

    भारत-रूपी नभ में अतिशय चमक रहा था जो प्यारा,

    हाय सदा को लुप्त हो गया वहा अति दीप्तिमान तारा ॥२॥

    भरतभूमि पर हाय ! अचानक बड़ी आपदा है आई,

    जहां देखिये वहां आज है घटा उदासी की छायी।

    उस नर – रत्न बिना भारत में अन्धकार छाया वैसा,

    निशि में दीपक बुझ जाने से छा जाता, घर में जैसा ||३||

    जिसको प्यारी मातृभूमि की सेवा ही बस भाती थी,

    भोजन, वसन, शयन को चिन्ता जिसको नहीं सताती थी।

    जो अवलम्ब रहा भारत का, जो था उसका दृग-तारा,

    कुटिल काल ने छीन लिया वह उसका पुत्र रत्न प्यारा ॥४॥

    भारत के स्वत्वों की रक्षा कौन करेगा अब वैसी-

    निर्भयता के साथ सर्वदा उस नर वर ने की जैसी ।

    उसे तनिक भी व्यथित देखकर कौन विकल हो जाएगा,

    उसके हित अब उतने सच्चे सेवक कौन बनाएगा ||५||

    विपत्काल में भारतवासी किसको सकरुण देखेंगे ?

    किसको अपना सच्चा नेता अब वे हरदम लेखेंगे ?

    राजनीति की कठिन उलझनें कौन भला सुलझावेगा ?

    कौन हाय ! जातीय सभा (कांग्रेस) का बेड़ा पार लगावेगा ॥ ६ ॥

    भारत माता के हित जो सब क्लेश सहर्ष उठाता था,

    उसकी उन्नति-वेलि सींचकर जो सर्वदा बढ़ाता था ।

    राजा और प्रजा दोनों को जो था प्यारा सुखकारी,

    वह क्या है उठ गया, देश पर गिरा वज्र है दुखकारी ॥७॥

    तृण सम त्याज्य जिसे स्वदेश हित अपना सुख-सम्मान रहा,

    जिसके मृदुल हृदय में संतत देश-भक्ति का स्रोत बहा ।

    सबसे अधिक लगी थी जिससे भारत की आशा सारी,

    उस नरवर-सा कौन आज है भरत-भूमि का हितकारी ॥८॥

    जिसने अपनी मातृभूमि को था अर्पण सर्वस्व किया,

    विद्या – बुद्धि सहित जीवन था जिसने उस पर वार दिया।

    ऐसा पुत्र रत्न निज कोई देश अभागा यदि खोये,

    तो सिर धुनकर बिलख-बिलखकर क्यों न शोक से वह रोये ॥ ९ ॥

    क्या कहकर भारत माता को हाय ! आज हम समझावें,

    हों जिनसे उसका आश्वासन शब्द कहां ऐसे पावें ।

    कभी धैर्य धारण कर सकती क्या वह जननी बेचारी,

    खोई है जिसने निज अनुपम प्राणोपम सन्तति प्यारी ॥१०॥

  • 13 अप्रैल बेगुनाहों पर बमों की बौछार पर कविता

    ● सरयू प्रसादर

    बेगुनाहों पर बमों की बेखबर बौछार की,

    दे रहे हैं धमकियाँ बंदूक की तलवार की ।

    बागे-जलियाँ में निहत्थों पर चलाई गोलियाँ,

    पेट के बल भी रेंगाया, जुल्म की हद पार की ॥

    हम गरीबों पर किए जिसने सितम बेइंतिहा,

    याद भूलेगी नहीं उस डायरे-बदकार की ।

    या तो हम भी मर मिटेंगे या तो ले लेंगे स्वरात,

    होती है इस बार हुज्जत खतम अब हर बार की ॥

    शोर आलम में मचा है लाजपत के नाम का,

    ख्वार करना इनको चाहा, अपनी मिट्टी ख्वार की ।

    जिस जगह पर बंद होगा तन शेरे-पंजाब का,

    आबरू बढ़ जाएगी उस जेल की दीवार की ॥

    जेल में भेजा हमारे लीडरों को बेकसूर,

    लॉर्ड हार्डिंग तुमने अच्छी न्याय की भरमार की ।

    खूने मजलूमों की ‘सूरत’ अब तो गहरी धार है,

    कुछ दिनों में डूबती है आबरू अगियार की।

  • 13 अप्रैल जलियाँवाला बाग की वेदी पर कविता

    जलियाँवाला बाग की वेदी पर कविता

    नहीं लिया हथियार हाथ में

    ● माखनलाल चतुर्वेदी

    नहीं लिया हथियार हाथ में, नहीं किया कोई प्रतिकार,

    ‘अत्याचार न होने देंगे’, बस इतनी ही थी मनुहार ।

    सत्याग्रह के सैनिक थे ये सब सहकर रहकर उपवास,

    वास बंदियों में स्वीकृत था, हृदय-देश पर था विश्वास ।

    मुरझा तन था, निश्चय मन था, जीवन ही केवल धन था,

    मुसलमान हिंदूपन छोड़ा, बस निर्मल अनापन था ।

    मंदिर में था चाँद चमकता, मसजिद में मुरली की तान,

    मक्का हो चाले वृंदावन, होते आपस में कुरबान ।

    सूखी रोटी दोनों खाते, पीते थे रावी का जल,

    मानो मल धोने को पाया, उसने अहा उसी दिन बल ।

    गुरु गोविंद तुम्हारे बच्चे, अब भी तन चुनवाते हैं।

    पथ से विचलित न हों, मुदित, गोली से मारे जाते हैं।

    गली-गली में अली-अली की गूँज मचाते हिल-मिलकर,

    मारे जाते कर न उठाते, हृदय चढ़ाते खिल-खिलकर।

    कहो करें क्या, बैठे हैं हम, सुनें मस्त आवाजों को,

    धो लेवें रावी के जल से, हम इन ताजे घावों को ।

    रामचंद्र मुखचंद्र तुम्हारा, घातक से कब कुम्हलाया,

    तुमको मारा नहीं वीर, अपने को उसने मरवाया ।

    जाओ – जाओ जाओ प्रभु को, पहुँचाओ स्वदेश-संदेश,

    ‘गोली से मारे जाते हैं भारतवासी हे सर्वेश !’

    रामचंद्र तुम कर्मचंद्र सुत बनकर आ जाना सानंद,

    जिससे माता के संकट के बंधन तोड़ सको स्वच्छंद ।

    चिंता है होवे न कलंकित, हिंदू धर्म, पाक इसलाम,

    गावें दोनों सुध-बुध खोकर या अल्ला, जय-जय घनश्याम ।

    स्वागत है सब जगतीतल का, उसके अत्याचारों का,

    अपनापन रखकर स्वागत है, उसकी दुर्बल मारों का ।

    हिंदू-मुसलिम ऐक्य बनाया, स्वागत उन उपहारों का,

    पर मिटने के दिवस रूप धर आवेंगे त्योहारों का ।

    गोली को सह जाओ प्रिय अब्दुल करीम बन जाओ,

    अपनी बीती खुदा तक, अपने बनकर पहुंचाओ।