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  • 23 जनवरी नेताजी सुभाष चन्द्र बोस जयन्ती पर कविता

    23 जनवरी नेताजी सुभाष चन्द्र बोस जयन्ती पर कविता: (23 जनवरी 1897 – 18 अगस्त 1945) भारत के स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणी और सबसे बड़े नेता थे। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई में, उन्होंने जापान की सहायता से आज़ाद हिंद फ़ौज का गठन किया था। उनके द्वारा दिए गए “जय हिंद” का नारा भारत का राष्ट्रीय नारा बन गया है। “तुम मुझे खून दो मैं तुम्हारी आज़ादी से आज़ादी चाहता हूँ” का नारा भी उनका था जो उस समय भारी वोग में आया था। भारतवासी उन्हें नेता जी के नाम से शहीद करते हैं।

    नेताजी सुभाषचन्द्र

    o गया प्रसाद शुक्ल ‘सनेही’ त्रिशूल

    तूफान जुल्मो-जब का सर से गुजर लिया,

    की शक्ति-भक्ति और अमरता का वर लिया।

    खादिम लिया न साथ कोई हमसफर लिया,

    परवा न की किसी की हथेली पर सर लिया।

    आया न फिर कफस में चमन से निकल गया।

    दिल में वतन बसा के वतन से निकल गया ॥

    बाहर निकल के देश के घर-घर में बस गया,

    जीवट – सा हर जवाने दिलावर में बस गया।

    ताकत में दिल की, तेग के जौहर में बस गया,

    सैनिक में बस गया कभी अफसर में बस गया।

    आजाद हिन्द फौज का वह संगठन किया।

    जादू से अपने काबू हरएक मन किया ।।

    गुर्बत में सारे शाही के सामान मिल गए,

    लाखों जवान होने को कुर्बान मिल गए।

    सुग्रीव मिल गए, कहीं हनुमान मिल गए,

    अंगद का पांव बन गए, मैदान मिल गए।

    कलियुग में लाये राम का त्रेता सुभाषचन्द्र ।

    आजाद हिन्द फौज के नेता सुभाषचन्द्र ॥

    हालांकि आप गुम हैं मगर दिल में आप हैं,

    हर शख्स की जुबान में महफिल में आप हैं।

    ईश्वर ही जानें कौन-सी मंजिल में आप हैं,

    मंझधार में हैं या किसी साहिल में आप हैं।

    कहता है कोई अपनी समस्या में लीन है।

    कुछ कह रहे हैं आप तपस्या में लीन हैं ।।

    आजाद होके पहुंचे हैं सरदार आपके,

    शैदा वतन के शेरे-बबर यार आपके ।

    बन्दे बने हैं काफिरो दीदार आपके,

    गुण गाते देश-देश में अखबार आपके ।

    है इन्तजार आप मिलें पर खुले हुए।

    आंखों की तरह दिल्ली के हैं दर खुले हुए ।।

    वह खून कहो

    ● गोपाल प्रसाद व्यास

    वह खून कहो किस मतलब का जिसमें उबाल का नाम नहीं ?

    वह खून कहो किस मतलब का आ सके देश के काम नहीं ।।

    वह खून कहो किस मतलब का जिसमें जीवन न रवानी है !

    जो परवश होकर बहता है, वह खून नहीं है, पानी है।

    उस दिन लोगों ने सही-सही खूँ की कीमत पहिचानी थी।

    जिस दिन सुभाष ने बर्मा में माँगी उनसे कुरबानी थी ।

    बोले ‘स्वतंत्रता’ की खातिर बलिदान तुम्हें करना होगा।

    तुम बहुत जी चुके हो जग में, लेकिन आगे मरना होगा ।।

    आजादी के चरणों में जो जयमाल चढ़ाई जाएगी।

    यह सुनो, तुम्हारे शीशों के फूलों से गूँथी जाएगी ।।

    आजादी का संग्राम कहीं पैसे पर खेला जाता है ?

    वह शीश कटाने का सौदा नंगे सर झेला जाता है ।।

    आजादी का इतिहास कहीं काली स्याही लिख पाती है ?

    इसके लिखने के लिए खून की नदी बहाई जाती है ।

    यूँ कहते-कहते वक्ता की आँखों में खून उतर आया ।

    मुख रक्त वर्ण हो गया, दमक उठी उनकी रक्तिम काया ।

    आजानु बाहु ऊँची करके वे बोले-‘रक्त मुझे देना’ ।

    इसके बदले में भारत की आजादी तुम मुझसे लेना ।।

    हो गई सभा में उथल-पुथल, सीने में दिल न समाते थे ।

    स्वर इंकलाब के नारों के, कोसों तक छाए जाते थे ।

    ‘हम देंगे-देंगे खून’, शब्द बस यहीं सुनाई देते थे ।

    रण में जाने को युवक, खड़े तैयार दिखाई देते थे ।

    बोले सुभाष ‘इस तरह नहीं, बातों से मतलब सरता है।

    लो, यह कागज है, कौन यहाँ आकर हस्ताक्षर करता है ?

    इसको भरने वाले जन को, सर्वस्व समर्पण करना है।

    अपना तन-मन-धन जीवन, माता को अर्पण करना है।

    पर यह साधारण पत्र नहीं, आजादी का परवाना है।

    इस पर तुमको अपने तन का, कुछ उज्ज्वल रक्त गिराना है ।।

    वह आगे आए जिसके तन में खून भारतीय बहता हो ।

    वह आगे आए जो अपने को, हिंदुस्तानी कहता हो ।।

    वह आगे आए, जो इस पर खूनी हस्ताक्षर देता हो।

    मैं कफन बढ़ाता हूँ, आए इसको जो हँसकर लेता हो।’

    सारी जनता हुंकार उठी, हम आते हैं, हम आते हैं।

    माता के चरणों में यह लो, हम अपना रक्त चढ़ाते हैं ।।

    साहस के बढ़े युवक उस दिन, देखा बढ़ते ही आते थे।

    चाकू छुरी कटारी से, वे अपना रक्त गिराते थे ।

    फिर उसी रक्त की स्याही में, वे अपनी कलम डुबाते थे।

    आजादी के परवाने पर, हस्ताक्षर करते जाते थे ।।

    उस दिन तारों ने देखा था, हिंदुस्तानी विश्वास नया ।

    जब लिखा था रणधीरों ने, खूं से अपना इतिहास नया ॥

  • 8 जनवरी लाला लाजपत राय जयन्ती पर कविता

    8 जनवरी लाला लाजपत राय जयन्ती पर कविता: लाला लाजपत राय एक भारतीय लेखक और साहित्यकार हैं। उनका जन्म 28 जनवरी 1865 को हुआ और उनकी मृत्यु 17 नवम्बर 1928 को हुई। इन्हें ‘पंजाब केसरी’ के नाम से जाना जाता है और उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में अहम भूमिका निभाई थी। लोग इन्हें ‘पंजाब का शेर’ भी कहते हैं जिसका मतलब ‘पंजाब का शेर’ होता है।

    जीने की राह दिखलाई

    © डॉ. ब्रजपात सिंह संत

    शांति क्रांति की परिभाषा, जिसने आजादी दिलवाई।

    लाला लाजपतराय ने हमको, जीने की राह दिखलाई।

    आठ जनवरी सन् अट्ठारह सौ पैंसठ का दिन पावन ।

    जिला फिरोजपुर धुड़ी ग्राम में, अग्रवाल पिता राधाकिशन ।

    धन्य माता की कोख हुई, भारत के भाग्य जगाने को ।

    नर-नाहर बच्चा मचल रहा, गीदड़ को बाहर भगाने को ।

    मुसकान देखकर बालक की, खुश हुई बहुत अम्मा-दादी ।

    आँखों में स्वाभिमान लिये, बोला आजादी आजादी ।

    ‘वंदेमातरम्’ के अंदर, भारतवालों की लिखी कथा ।

    प्रताप, शिवाजी, दयानंद, मिष, भारत भू की लिखी व्यथा ।

    दीन दलित को दिया सहारा, जन-जन में आई तरुणाई।

    लाला लाजपत राय ने हमको, जीने की राह दिखलाई।

    अंग्रेज गिराते गाज चले, लंदन को लदे जहाज चले।

    भारत को खाली कर डाला, लूटकर भारत के साज चले।

    भारतवासी अपमानित थे, रक्तिम आँसू की धारा थी।

    बस लूटपाट, हत्या, साजिश, हर देशभक्त को कारा थी।

    पेरिस, जापान गए जर्मन, अमरीका फिर पहुँचे लंदन

    एशिया, रूस में घूम-घूम, भारत का सुन करुण क्रंदन ।

    भारत माँ की बेड़ी काटी, दीवाने ने ली अँगड़ाई ।

    लाला लाजपत राय ने हमको जीने की राह दिखलाई ।।

    कपड़ों की जलती होली थी, दन-दन सीने पर गोली थी।

    दुश्मन की गहरी चालें थीं, दिल, की खटपट खड़तालें थीं।

    ये फैली कैसी महामार ? थी टैक्स बंद की तैयारी।

    अंग्रेजी आँखें फटी रहीं, आ गई समस्या जब भारी ।

    तीस अक्टूबर अट्ठाईस, लाहौर शहर में चहल-पहल ।

    पल-पल की ले रहे टोह, सरकारी अफसर रहे टहल ।

    था साइमन नाम कमीशन का, इंग्लैंड से आया सौदाई।

    लाला लाजपत राय ने हमको, जीने की राह दिखलाई ।

    जाने क्या होने वाला है? भगवान् आज रखवाला है।

    उसका क्या कोई कर लेगा, जिसने सब कुछ दे डाला है।

    जिसकी साँसों में आजादी, उसकी बाँहों में आजादी

    संकल्प है जिसका आजादी, निश्चित पाएगा आजादी ।।

    गोरों ने लाठीचार्ज किया, घायल थे जनता के सीने।

    हड्डी हड्डी उनकी टूटी, ना आह करी लाला जी ने ॥

    पर कहा, फिरंगी शासन ने ताबूत में कीलें ठुकवाई।

    लाला लाजपत राय ने हमको जीने की राह दिखलाई।

    धन्य ! भारत – सुयोग्य सुत

    माधव शुक्ल

    धन्य आर्य कुल वीर लाजपत नरवर श्रीयुत।

    धन्य बन्धु हित करन धन्य भारत सुयोग्य सुत ॥

    धन्य दया के पुंज बुद्धि विद्या के सागर ।

    सहनशील गम्भीर धन्य पंजाब दिवाकर ॥

    मृदुभाषी निष्कपट साधु भारत हितकारी ।

    सदाचार-पटु श्रमी देश स्वातंत्र्य – भिखारी ॥

    नीतिविज्ञ वाचाल न्याय के रूप गुणाकर।

    अति उदार दृढ वीर हृदय निश्छल करुणाकर ||

    सरस भाव परिपूर्ण जासु केहरि सम बानी ।

    राजनीति उपदेश अनेकन रस से सानी ॥

    दुखी प्रजायुत मातृभूमि की दशा सुधारक ।

    शासन के अन्याय -जनित संताप निवारक ॥

    भारत जन सर्वस्व सुमन्त्री ब्रिटिश राज के |

    स्वहृदय पोषक बायकाट इच्छुक स्वराज के ॥

    तन मन धन से रहत सदा तो देश कार्यरत ।

    वीर भूमि को वीर पुत्र मित्र सोइ वीर लाजपत ।।

    देश बंधु हित छांड़ि आपनो यश चिरसंचित ।

    तज्यो पिता प्रिय पुत्र मित्र बन्धुन स्वदेश हित ।।

    प्यारे तेरो नाम सुयश अतिशय प्रिय पावन ।

    पराधीनता शोक व्यथा संताप नसावन ॥

    भारत के इतिहास बीच तेरो गुण विस्तृत ।

    स्वर्णाक्षर में आर्य होयगा निश्चय मुद्रित ।।

    प्यारे तेरे विमल कीर्ति की सरस कहानी ।

    पढ़ि-पढ़ि अति हित मोद लहेंगे बुधभट ज्ञानी ॥

    कविजन आदर सहित तुम्हारा गान करेंगे।

    ईष्यो तुव यश सुनत दांत तर जीभ धरेंगे ॥

    करि तेरो अनुकरण देश के जेते बालक ।

    अवश होएंगे मातृभूमि के दृढ प्रतिपालक

    बुधि विद्या कछु नाहि कहां लौ तुव गुण गाऊं ।

    तुवं छाया तर बैठ सदा तुव कुशल मनाऊं ॥

  • गुरु गोविन्द सिंह जयन्ती पर कविता

    गुरु गोविन्द सिंह जयन्ती पर कविता : वे सिक्ख धर्म के अंतिम गुरु थे। सिख धर्म में गुरु गोबिंद सिंह का अहम योगदान माना जाता है। गुरु गोबिंद सिंह जी महाराज ने सिख धर्म के कई नियम बनाए, जिनका पालन आज भी किया जाता है। उन्होंने गुरु ग्रंथ साहिब की गुरु के रूप में स्थापना की। उन्होंने सामाजिक हितैषी का पुर्जोर का समर्थन किया। गुरु गोबिंद सिंह जी ने दमन और भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाई, इसलिए लोगों के लिए एक महान प्रेरणा के रूप में उभरे।

    गुरु हजूर जी साहिब

    ● डॉ. ब्रजपाल सिंह संत

    गुरु हजूर जी साहिब, गोविंद सिंह को नमन करो।

    अकाल पुरुष के अकाल तख्त पर, ताप-शाप सब शमन करो।

    गुरु तेग बहादुर पिता आपके, गुजरी माँ का प्यार मिला।

    पौष सुदी संवत सतरह सौ, तेईस को अवतार खिला ।

    अत्याचारों को रोका, टोका था शासक अन्याई ।

    सब कुछ न्योछावर कर डाला, थी बजी वीरता शहनाई।

    जुल्मों की थी भरमार हुई, गुरुवर की आँखें भर आईं।

    निहत्थे भोले-भालों को रहे मार, अधर्मी अन्याई ।

    जात-पाँत का भेद मिटाया, छकाया अमृत सच्चे शाह ने ।

    जुल्मी जालिम का किया खात्मा, सिक्खी धर्म खालसा ने ।

    अकाल पुरुष की राह सुझाई, मात-पिता सुत चार दिए ।

    देश का धर्म बचाने को, ‘काल-गाल’ भी वार दिए ।

    सरहिंद शहीदी सात वर्ष, था नाम फतेह सिंह साहिब जी ।

    जोरावर सिंह नौ वर्ष उम्र, जूझे जुझार सिंह साहिब जी ।

    चमकौर साहिब में हुई शहीदी, अजीत सिंह नर नाहर था।

    चारों साहिबजादों का कातिल, था बुजदिल जगजाहिर था ।

    यवन घमंडी दौलत का, अपने भारी सेना बल का ।

    गुरु सहारा वाहेगुरु था, पल-पल के सिमरण संबल का ।

    पंच प्यारे, पाँच वायदे, पाँच कायदे रच डाले ।

    पाँच वाणियाँ, पाँच ठाणियाँ, सारे ही सच कर डाले ।

    पंच ककारों का गुरुजी ने संगत को संदेश दिया ।

    कड़ा, केश, कंघा, कृपाण कच्छा सच्चा उपदेश दिया ।

    गुरु आसन पर गुरुग्रंथ साहिब को ही पूरा सम्मान दिया।

    वाहे गुरु का वीर खालसा यह संगठन को वरदान दिया।

    जिसके सिंहनाद में दहक उठी तरुणाई थी।

    नेजा और तलवार देश की लाज बचाने आई थी।

    रणजीत नगारा बजता था जिससे दिल्ली थर्राई थी।

    गुरु गोविंद सिंह ने भारत के दुश्मन की नींद उड़ाई थी ।

    नाईं, धोबी, बढ़ई, लुहार, गूजर या जाट कहाते थे ।

    सब गुरु सेना के सैनिक थे, सब वीर सिक्ख कहलाते थे।

    सब में साहस विश्वास भरा, गुरु के बल पर लड़ जाते थे ।

    अपनी रक्षा को स्वयं खड़े हो, सिंह नहीं भय खाते थे ।

    गुरु का लंगर प्रसाद पाकर सब में अपार बल भरता था ।

    वीरों की सेना थी अजेय, टकरानेवाला मरता था।

    अब भी गोविंद सिंह कहकर जो रण में लड़ने जाता है।

    वह विजयी होकर आता है या जगह स्वर्ग में पाता है।

  • डॉ. राम मनोहर लोहिया जयन्ती पर कविता

    डॉ. राम मनोहर लोहिया जयन्ती पर कविता : आर्चिक जीवन एवं शिक्षा डॉ. राममनोहर मूर्ति का जन्म 23 मार्च 1910 को उत्तर प्रदेश के अयोध्या जनपद में वर्तमान-अम्बेडकर नगर जनपद में हुआ था। उनके परमप्रिय श्री हीरालाल कट्टर से शिक्षक एवं हृदय से भक्त राष्ट्रभक्त थे। प्रबल वर्ष की आयु में ही उनकी माताजी (चंदा देवी) का देहान्त हो गया था।

    कद छोटा मगर

    © राजेंद्र प्रसाद ‘राजन’


    कद छोटा मगर कृतित्व से महान् थे लोहिया।

    समता के पोषक, प्रणेता थे प्राण लोहिया ।

    आस्तिक थे किंतु रूढिभंजक थे लोहिया ।

    सचमुच दलित की, दीन की भाषा थे लोहिया ॥

    अभिमान से अनभिज्ञ मस्तमौला थे लोहिया।

    राष्ट्रीयता के भाव में सराबोर थे लोहिया ।

    सीने में क्रांतिज्वाल और बाँहों में बल प्रबल ।

    आजाद सोच मन लिये, तूफान थे लोहिया ।

    अहिंसा के पथिक थे, ये मगर थे क्रांति दूत भी।

    सिंह- सी गर्जन लिये मृगराज थे लोहिया ।

    हिंदू थे जनम से, मगर मुसलिम, ईसाई भी।

    इंसानियत से पूर्ण, मनुजवर थे लोहिया ।।

    साहस, सुबुद्धि, त्याग से, प्रतिभा से पूर्ण थे।

    सूरज-सा तेज, चंद्र-से शीतल थे लोहिया।

    हीरे से मूल्यवान, दृढ थे वज्र से कठोर ।

    बालक-सी सरलता लिये कोमल थे लोहिया ||

    लैला ए हिंदुस्तान के, मजनू थे लोहिया।

    शोषित, दलित व वंचितों के थे मान लोहिया ।

    पीडित, दुःखी व दीन के, सचमुच थे मसीहा

    ‘राजन’ वो राजनीति की थे शान लोहिया ||

  • 25 दिसम्बर महामना मालवीय जयन्ती पर कविता

    शत-शत आज नमन है

    ● डॉ. ब्रजपाल सिंह संत

    देह भस्म तो उड़ जाती है, कार्य अजर-अमर है।

    विष्णु चरणी, शीतलता सा, हर-हर गर्जन स्वर है

    संकल्पों का शंख, विश्व को दे गया माणिक मोती ।

    हिंदुस्तान बना हिंदू से, देकर गया चुनौती ।

    ‘श्रद्धा मर्यादा’ परिभाषा, मंगलमय तन-मन है ।

    मोहन मदन मालवीय आपको शत-शत आज नमन है।

    पच्चीस दिसंबर अठारह सौ इकसठ इलाहाबाद पयधार।

    मात गोद अरु तात मोद, त्रिवेणी प्रभा मुदित परिवार ।

    मंगलाचार नर-नारी करें, शिशु केलि करें, आमोद भरें।

    अंजन आँखियन में युग दर्पण, मन में चिंतन का शोध करें।

    हो गया निनादित दिग्दिगंत, आया नव परिवर्तन है।

    मोहन मदन मालवीय आपको शत-शत आज नमन है ।

    हर आलय में, कार्यालय में, न्यायालय में हिंदी आई।

    हिंदी की चमक उठी बिंदिया, भारती भाल नव अरुणाई ।

    साहित्य सम्मेलन अनुगूँज, जन-जन अंतस्तल पहुँचाई।

    ‘नागरी प्रचारिणी सभा’ उदित, नव रश्मि-पुंज लेकर आई।

    ऊँचा उठ जाए समाज, देश, नित कहता अंतर्मन है।

    मोहन मदन मालवीय आपको, शत-शत आज नमन है ।

    भारतीय सनातन का प्रतीक, एक शक्ति संगठन शिक्षालय ।

    स्थापित करना चाहते थे, विज्ञान, ज्ञान, कृषि विद्यालय ।

    चार फरवरी उन्नीस सौ सोलह, सपना साकार हुआ।

    ‘काशी हिंदू विश्वविद्यालय’ मोहन यज्ञ परिपूर्ण हुआ।

    जहाँ नर बन जाता नारायण, मन मोर करे नर्तन है।

    मोहन मदन मालवीय आपको, शत-शत आज नमन है ।