गांधी जयंती हमें आदर्शो की याद दिलाती है। गांधी जी के विचारों से केवल भारत ही नहीं बल्कि कलाकारों से भी लाखों लोग प्रभावित हैं और प्रेरणा ले रहे हैं। अहिंसा और सत्य के मार्ग पर चलने वाले छोटू ने सम्पूर्ण मानव जाति को न केवल मानव का पाठ पढ़ा बल्कि जीवन जीने का सही तरीका भी सिखाया।
महात्मा गाँधी जयन्ती पर कविता
तूने कर दिया कमाल
● प्रदीप
दे दी हमें आज़ादी बिना खड्ग बिना ढाल ।
साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल
आँधी में जलती रही गाँधी तेरी मशाल ।
साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल ॥
घर ही में लड़ी तूने अजब की लड़ाई
दागा न कहीं तोप न बन्दूक ही चलाई
दुश्मन के क़िले पर भी न की तूने चढ़ाई
वाह रे फ़कीर ! खूब करामात दिखाई
चुटकी में दिया दुश्मनों को देश से निकाल ।
साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल ॥
शतरंज बिछाकर यहीं बैठा था ज़माना
लगता था मुश्किल है फ़िरंगी को हटाना
टक्कर था बड़े जोर का दुश्मन भी था जाना
पर तू भी था बापू बड़ा उस्ताद पुराना
मारा वो दाँव कसके उनकी न चली चाल ।
साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल ||
जब-जब तेरी बिगुल बजी जवान चल पड़े
मजदूर चल पड़े और किसान चल पड़े
हिन्दू, मुसलमान, सिख पठान चल पड़े
करम पे तेरे कोटि-कोटि प्राण चल पड़े
फूलों की सेज छोड़ के दौड़े जवाहरलाल ।
साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल ॥
मन में अहिंसा की लगन तन पे थी लंगोटी
लाखों में लिए घूमता था सत्य की सोटी
वैसे तो देखने में थी हस्ती तेरी छोटी
सर देख के झुकती थी हिमालय की भी चोटी
दुनिया में तू बेजोड़ था इंसाँ था बेमिसाल।
साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल ॥
जग में कोई जिया तो बापू ने ही जिया
तूने वतन की राह पे सब कुछ लुटा दिया
माँगा न तू ने कोई तख्त बेताज ही रहा
अमृत दिया सभी को खुद ज़हर ही पिया
जिस दिन तेरी चिता जली रोया था महाकाल
साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल ।।
देवता नव राष्ट्र के
0 सोहनलाल द्विवेदी
देवता नव राष्ट्र के, नव राष्ट्र की नव अर्चना लो !
विश्ववंद्य वरेण्य बापू, विश्व की नव वंदना लो !
पा तुम्हारा स्नेह-धागा,
यह अभागा देश जागा,
जागरण के देवता ! नव जागरण की गर्जना लो।
विश्ववंद्य वरेण्य बापू, विश्व की नव वन्दना लो।
यह तुम्हारी ही तपस्या,
युगों की सुलझी समस्या,
कोटि शीशों की अयाचित नव समर्पण साधना लो !
विश्ववंद्य वरेण्य बापू, विश्व की नव वन्दना लो !
हे अहिंसा के पुजारी,
प्रणति हो कैसे तुम्हारी ?
मौन प्राणों की निरन्तर स्नेहमय नीराजना लो !
विश्ववंद्य वरेण्य बापू, विश्व की नव वंदना लो !
लहरता नभ में तिरंगा,
लहरती है मुक्ति-गंगा,
हे भगीरथ, भक्ति भागीरथी की आराधना लो !
विश्ववंद्य वरेण्य बापू, विश्व की नव वंदना लो !
सुन ले बापू ! ये पैगाम !
● भरत व्यास
सुन ले ‘बापू’ ये पैगाम, मेरी चिट्ठी तेरे नाम।
चिट्ठी में सबसे पहले लिखता तुझको राम-राम ।
सुन ले ‘बापू’ ये पैगाम !
काला धन, काला व्यापार,
रिश्वत का है गरम बजार ।
सत्य-अहिंसा करें पुकार,
टूट गया चरखे का तार ।
तेरे अनशन सत्याग्रह के,
बदल गए असली बरताव ।
एक नयी विद्या सीखी है,
जिसको कहते हैं ‘घेराव’ ।
तेरी कठिन तपस्या का यह,
कैसा निकला है अंजाम ।
सुन ले ‘बापू’ ये पैगाम !
प्रांत-प्रांत से टकराता है,
भाषा पर भाषा की लात ।
मैं पंजाबी, तू बंगाली,
कौन करें भारत की बात ।
तेरी हिन्दी के पांवों में,
अंगरेजी ने बांधी डोर |
तेरी लकड़ी ठगों ने ठग ली,
तेरी बकरी ले गए चोर ।
साबरमती सिसकती तेरी,
तड़प रहा है सेवाग्राम !
सुन ले ‘बापू’ ये पैगाम !
‘राम राज्य’ की तेरी कल्पना,
उड़ी हवा में बनके कपूर ।
बच्चे पढ़ना-लिखना छोड़,
तोड़-फोड़ में हैं मगरूर ।
नेता हो गए दल-बदलू,
देश की पगड़ी रहे उछाल ।
तेरे पूत बिगड़ गए ‘बापू’
दारूबंदी हुई हलाल ।
तेरे राजघाट पर फिर भी,
फूल चढ़ाते सुबहो – शाम !
सुन ले ‘बापू’ ये पैगाम !
फिर से आना बापूजी
● रामचरण सिंह साथी
एक बार प्यारे भारत में
फिर से आना बापू जी ।
सत्य अहिंसा सदाचार का
पाठ पढ़ाना बापू जी ॥
महज स्वदेशी का नारा है
सारा माल विदेशी है।
सन सैंतालीस से पहले की
याद दिलाना बापू जी ॥
दाल-भात और कढ़ी चपाती
घर का भोजन भूल गए।
फास्ट-फूड के हुए दिवाने
इन्हें बचाना बापू जी ॥
इलू इलू चुम्मा-चुम्मा
सबके दिल की धड़कन है।
रघुपति राघव कौन सुने
अब गया जमाना बापू जी ॥
मोटी खादी की धोती ना
रास किसी को आएगी
कोट पैंट पतलून पहनकर
टाई लगाना बापू जी ॥
जात-पाँत और छुआ-छूत का
रोग अभी तक बाकी है।
कृपा करके मिटा सको तो
इसे मिटाना बापू जी ॥
साथी जो गांधीवादी थे
एक एक कर चले गए।
नई पौध में देश-प्रेम का
भाव जगाना बापू जी ॥
बापू महान् थे
o डॉ. ब्रजपाल सिंह संत
सत्य अहिंसा के पथिक, बापू महान् थे ।
माँ भारती सम्मान का, स्वर्णिम विहान थे।
जाति, वर्ग, रंग-भेद को मिटा गए।
राष्ट्रपिता ‘श्रम करो’ की मीठी तान थे ।
नौआखाली, अफ्रीका, सद्भावना लिये।
प्रभु की पूजा में, नित समाधिस्थ ध्यान थे।
स्वावलंबी बनके, आवश्यकता कम करो।
लाठी, धोती, साथ थी, सदगुण की खान थे।
कुरीतियों को, अंधविश्वासों को तोड़कर।
जोड़कर जन-जन हृदय विस्तृत वितान थे।
चरखा चलाकर स्वदेशी का, नारा दे गए।
स्वदेशी मंत्र मूल में खादी निशान थे ।।
सुदृढ़ थे संकल्प में, विद्वान् पारखी।
एकता स्तंभ वे, गीता – कुरान थे 1
अहिंसा व सत्य से, आजादी प्राप्त की।
रामरूप, कृष्ण वे, भारत के प्राण थे ।
हड्डियाँ कुछ पसलियाँ, थीं वज्र बन गईं।
भारत की संस्कृति को, दधीचि समान थे ।
सत्याग्रह, अनशन किए, जेलों में भी गए।
गोरे शासन के लिए, तीरोकमान थे ।