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  • 2 अक्टूबर महात्मा गाँधी जयन्ती पर कविता

    2 अक्टूबर महात्मा गाँधी जयन्ती पर कविता

    गांधी जयंती हमें आदर्शो की याद दिलाती है। गांधी जी के विचारों से केवल भारत ही नहीं बल्कि कलाकारों से भी लाखों लोग प्रभावित हैं और प्रेरणा ले रहे हैं। अहिंसा और सत्य के मार्ग पर चलने वाले छोटू ने सम्पूर्ण मानव जाति को न केवल मानव का पाठ पढ़ा बल्कि जीवन जीने का सही तरीका भी सिखाया।

    महात्मा गाँधी जयन्ती पर कविता

    mahatma gandhi

    तूने कर दिया कमाल

    ● प्रदीप

    दे दी हमें आज़ादी बिना खड्ग बिना ढाल ।

    साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल

    आँधी में जलती रही गाँधी तेरी मशाल ।

    साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल ॥

    घर ही में लड़ी तूने अजब की लड़ाई

    दागा न कहीं तोप न बन्दूक ही चलाई

    दुश्मन के क़िले पर भी न की तूने चढ़ाई

    वाह रे फ़कीर ! खूब करामात दिखाई

    चुटकी में दिया दुश्मनों को देश से निकाल ।

    साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल ॥

    शतरंज बिछाकर यहीं बैठा था ज़माना

    लगता था मुश्किल है फ़िरंगी को हटाना

    टक्कर था बड़े जोर का दुश्मन भी था जाना

    पर तू भी था बापू बड़ा उस्ताद पुराना

    मारा वो दाँव कसके उनकी न चली चाल ।

    साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल ||

    जब-जब तेरी बिगुल बजी जवान चल पड़े

    मजदूर चल पड़े और किसान चल पड़े

    हिन्दू, मुसलमान, सिख पठान चल पड़े

    करम पे तेरे कोटि-कोटि प्राण चल पड़े

    फूलों की सेज छोड़ के दौड़े जवाहरलाल ।

    साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल ॥

    मन में अहिंसा की लगन तन पे थी लंगोटी

    लाखों में लिए घूमता था सत्य की सोटी

    वैसे तो देखने में थी हस्ती तेरी छोटी

    सर देख के झुकती थी हिमालय की भी चोटी

    दुनिया में तू बेजोड़ था इंसाँ था बेमिसाल।

    साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल ॥

    जग में कोई जिया तो बापू ने ही जिया

    तूने वतन की राह पे सब कुछ लुटा दिया

    माँगा न तू ने कोई तख्त बेताज ही रहा

    अमृत दिया सभी को खुद ज़हर ही पिया

    जिस दिन तेरी चिता जली रोया था महाकाल

    साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल ।।

    देवता नव राष्ट्र के

    0 सोहनलाल द्विवेदी

    देवता नव राष्ट्र के, नव राष्ट्र की नव अर्चना लो !

    विश्ववंद्य वरेण्य बापू, विश्व की नव वंदना लो !

    पा तुम्हारा स्नेह-धागा,

    यह अभागा देश जागा,

    जागरण के देवता ! नव जागरण की गर्जना लो।

    विश्ववंद्य वरेण्य बापू, विश्व की नव वन्दना लो।

    यह तुम्हारी ही तपस्या,

    युगों की सुलझी समस्या,

    कोटि शीशों की अयाचित नव समर्पण साधना लो !

    विश्ववंद्य वरेण्य बापू, विश्व की नव वन्दना लो !

    हे अहिंसा के पुजारी,

    प्रणति हो कैसे तुम्हारी ?

    मौन प्राणों की निरन्तर स्नेहमय नीराजना लो !

    विश्ववंद्य वरेण्य बापू, विश्व की नव वंदना लो !

    लहरता नभ में तिरंगा,

    लहरती है मुक्ति-गंगा,

    हे भगीरथ, भक्ति भागीरथी की आराधना लो !

    विश्ववंद्य वरेण्य बापू, विश्व की नव वंदना लो !

    सुन ले बापू ! ये पैगाम !

    ● भरत व्यास

    सुन ले ‘बापू’ ये पैगाम, मेरी चिट्ठी तेरे नाम।

    चिट्ठी में सबसे पहले लिखता तुझको राम-राम ।

    सुन ले ‘बापू’ ये पैगाम !

    काला धन, काला व्यापार,

    रिश्वत का है गरम बजार ।

    सत्य-अहिंसा करें पुकार,

    टूट गया चरखे का तार ।

    तेरे अनशन सत्याग्रह के,

    बदल गए असली बरताव ।

    एक नयी विद्या सीखी है,

    जिसको कहते हैं ‘घेराव’ ।

    तेरी कठिन तपस्या का यह,

    कैसा निकला है अंजाम ।

    सुन ले ‘बापू’ ये पैगाम !

    प्रांत-प्रांत से टकराता है,

    भाषा पर भाषा की लात ।

    मैं पंजाबी, तू बंगाली,

    कौन करें भारत की बात ।

    तेरी हिन्दी के पांवों में,

    अंगरेजी ने बांधी डोर |

    तेरी लकड़ी ठगों ने ठग ली,

    तेरी बकरी ले गए चोर ।

    साबरमती सिसकती तेरी,

    तड़प रहा है सेवाग्राम !

    सुन ले ‘बापू’ ये पैगाम !


    ‘राम राज्य’ की तेरी कल्पना,

    उड़ी हवा में बनके कपूर ।

    बच्चे पढ़ना-लिखना छोड़,

    तोड़-फोड़ में हैं मगरूर ।

    नेता हो गए दल-बदलू,

    देश की पगड़ी रहे उछाल ।

    तेरे पूत बिगड़ गए ‘बापू’

    दारूबंदी हुई हलाल ।

    तेरे राजघाट पर फिर भी,

    फूल चढ़ाते सुबहो – शाम !

    सुन ले ‘बापू’ ये पैगाम !

    फिर से आना बापूजी

    ● रामचरण सिंह साथी

    एक बार प्यारे भारत में

    फिर से आना बापू जी ।

    सत्य अहिंसा सदाचार का

    पाठ पढ़ाना बापू जी ॥

    महज स्वदेशी का नारा है

    सारा माल विदेशी है।

    सन सैंतालीस से पहले की

    याद दिलाना बापू जी ॥


    दाल-भात और कढ़ी चपाती

    घर का भोजन भूल गए।

    फास्ट-फूड के हुए दिवाने

    इन्हें बचाना बापू जी ॥

    इलू इलू चुम्मा-चुम्मा

    सबके दिल की धड़कन है।

    रघुपति राघव कौन सुने

    अब गया जमाना बापू जी ॥

    मोटी खादी की धोती ना

    रास किसी को आएगी

    कोट पैंट पतलून पहनकर

    टाई लगाना बापू जी ॥

    जात-पाँत और छुआ-छूत का

    रोग अभी तक बाकी है।

    कृपा करके मिटा सको तो

    इसे मिटाना बापू जी ॥

    साथी जो गांधीवादी थे

    एक एक कर चले गए।

    नई पौध में देश-प्रेम का

    भाव जगाना बापू जी ॥

    बापू महान् थे

    o डॉ. ब्रजपाल सिंह संत

    सत्य अहिंसा के पथिक, बापू महान् थे ।

    माँ भारती सम्मान का, स्वर्णिम विहान थे।

    जाति, वर्ग, रंग-भेद को मिटा गए।

    राष्ट्रपिता ‘श्रम करो’ की मीठी तान थे ।

    नौआखाली, अफ्रीका, सद्भावना लिये।

    प्रभु की पूजा में, नित समाधिस्थ ध्यान थे।

    स्वावलंबी बनके, आवश्यकता कम करो।

    लाठी, धोती, साथ थी, सदगुण की खान थे।

    कुरीतियों को, अंधविश्वासों को तोड़कर।

    जोड़कर जन-जन हृदय विस्तृत वितान थे।

    चरखा चलाकर स्वदेशी का, नारा दे गए।

    स्वदेशी मंत्र मूल में खादी निशान थे ।।

    सुदृढ़ थे संकल्प में, विद्वान् पारखी।

    एकता स्तंभ वे, गीता – कुरान थे 1

    अहिंसा व सत्य से, आजादी प्राप्त की।

    रामरूप, कृष्ण वे, भारत के प्राण थे ।

    हड्डियाँ कुछ पसलियाँ, थीं वज्र बन गईं।

    भारत की संस्कृति को, दधीचि समान थे ।

    सत्याग्रह, अनशन किए, जेलों में भी गए।

    गोरे शासन के लिए, तीरोकमान थे ।

  • 23 जुलाई चन्द्रशेखर आज़ाद जयन्ती पर कविता

    23 जुलाई 1906 को मध्यप्रदेश के झाबुआ में जन्में चंद्रशेखर आजाद ने महज 24 साल की उम्र में देश के लिए अपने प्राणों की आहूती दे दी. चंद्रशेखर आजाद का असली नाम चंद्रशेखर तिवारी था.

    चंद्रशेखर आज़ाद जयंती

    ● डॉ. ब्रजपाल सिंह संत

    ब्रह्मचारी चारित्रिक बल, सचमुच ही राष्ट्र विनायक थे ।

    रह रहे आचमन लपटों का, जन-जन भारत जननायक थे।

    जो कल तक कंधा मिला रहे, कायर पद-लोलुप स्वार्थी बने ।

    कोई हाँफ रहा, कोई काँप रहा, लोभी होकर पद-रथी बने ।

    छुपते-छुपते कुछ छाप रहे, बिखरे युवकों को जोड़ रहे।

    धिक्कार रहे, हुंकार रहे, गोरों की पूँछ मरोड़ रहे ।

    भारत प्यारा देश हमारा, भारत माता जिंदाबाद ।

    भारत माँ की आँख का तारा, प्यारा चंद्रशेखर आजाद ।।

    अल्फ्रेड पार्क बन गया गवाह, सुखदेव, राज बैठे आजाद ।

    नॉट बाबर ने शेरे बब्बर पर, शॉट लगाया कर आघात ।

    वीर तान पिस्तौल मार गोली, भी अरि की बाँहें लटकाई।

    कायर बाबर भूला फायर, छुप गया झाड़ी में अन्यायी ।

    गोली दूसरी से बाबर की गाड़ी का इंजिन चूर किया।

    भगकर जाएगा कैसे ? यों दुश्मन को मजबूर किया ।

    इंस्पेक्टर विश्वेश्वर, झाड़ी से छिपा शेर को घूर रहा।

    साँय-साँय कर गोली धाँय, जबड़ा था चकनाचूर किया।

    उस दीवान का ठीक निशाना अंग्रेजों को रहेगा याद ।

    भारत माँ की आँख का तारा, प्यारा चंद्रशेखर आजाद ।

    मूँछें शमशीर समान बनी, दुश्मन की छेद रही छाती ।

    माथा भारत का शुभ्र मुकुट, लिखता भारत माँ को पाती।

    भौंहें क्या तीर कमान बनीं, बाँकी चितवन भैरव गाती ।

    मुखमंडल गीता बाँच रहा, दृष्टि से सृष्टि थर्राती ।

    दिन में थे तारे दिखा दिए, बंदूकों की नलकी ढलकी ।

    अफसर गए भीग पसीने से, खिड़कियाँ बंद हुई अक्ल की।

    हँसते थे तार जनेऊ के, मुसकाती धोती मलमल की।

    जिंदा ना किसी को छोडूंगा, खा रहे कसम गंगाजल की ।

    पेड़ की ओर चंद्रशेखर, थे निभा रहे माँ की मरजाद ।

    भारत माँ की आँख का तारा, प्यारा चंद्रशेखर आजाद ॥

    जय जय जय ! बढ़ो अभय

    सोहनलाल द्विवेदी

    फूंको शंख, ध्वजाएं फहरें

    चले कोटि सेना, घन घहरें।

    मचे प्रलय !

    बढ़ो अभय !

    जय जय जय !

    जननी के योद्धा सेनानी,

    अमर तुम्हारी है कुर्बानी,

    हे प्रणमय !

    हे व्रणमय !

    बढ़ो अभय!

    नित पददलित प्रजा के क्रंदन

    अब न सहे जाते हैं बंधन !

    करुणामय !

    बढ़ो अभय!

    जय जय जय !

    बलि पर बलि ले चलो निरंतर

    हो भारत में आज युगान्तर,

    हे बलमय !

    हे बलिमय !

    बढ़ो अभय!

    तोपें फटें, फटें भू-अंबर

    धरणी धंसें, धंसें धरणीधर,

    मृत्युञ्जय !

    बढ़ो अभय!

    जय जय जय !

    अमर सत्य के आगे थरथर,

    कंपें विश्व, कांपें विश्वम्भर,

    हे दुर्जय !

    बढ़ो अभय !

    जय जय जय !

    बढ़ो प्रभंजन आंधी बनकर,

    चढ़ो दुर्ग पर गांधी बनकर,

    वीर हृदय !

    धीर हृदय !

    जय जय जय !

    राजतंत्र के इस खंडहर पर,

    प्रजातंत्र के उठे नवशिखर,

    जनगण जय !

    जनमत जय !

    बढ़ो अभय!

    जगें मातृ-मन्दिर के ऊपर,

    स्वतन्त्रता के दीपक सुन्दर,

    मंगलमय !

    बढ़ो अभय!

    जय जय जय !

    कोटि-कोटि नित नत कर माथा,

    जनगण गावें गौरव गाथा,

    तुम अक्षय !

    अमर अजय !

    जय जय जय !

    जननी के मन-प्राण हृदय !

    जय जय जय !

    बढ़ो अभय!

  • 23 जुलाई लोकमान्य तिलक जयन्ती पर कविता

    23 जुलाई लोकमान्य तिलक जयन्ती पर कविता

    इसे भारत के स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों में बाल गंगाधर तिलक का नाम सबसे बड़ा सम्मान माना जाता है। उन्होंने हमारे देश को अंग्रेज़ों की गुलामी से मुशायरे में शामिल किया था। बाल गंगाधर तिलक का जन्म 23 जुलाई 1856 को महाराष्ट्र के रत्नागिरि के चिक्कन गांव में जन्‍म हुआ था

    • द्वारकाप्रसाद गुप्त ‘रसिकेन्द्र’

    जय बाल गंगाधर तिलक जय वीर भारत केसरी,

    जय लोकमान्य, वदान्य महिमा है भुवन भर में भरी ।

    पण्डितप्रवर, नवयुग प्रवर्तक, राष्ट्र के आधार जय,

    जय पुण्य पारावार नैतिक ज्ञान के भण्डार जय !

    जगमग जगत में ज्योति यश की है जगाती जीवनी,

    मृत जाति को जीवित किया, दी शक्तिमय संजीवनी ।

    यद्यपि कुनीति कुचक्र का, बन्धन लिये पीछे पड़ी ।

    पर दासता की बेड़ियों की काट दी कड़ियां कड़ी !

    भारत तरणि यह डूब जाती जो न होते साथ में,

    लाए इसे तट पर तुम्हीं, पतवार लेकर हाथ में ।

    गीता रहस्य प्रकाश से कर्तव्य पथ दरसा दिया,

    फिर लहलहाई कर्म लतिका, वह अमृत बरसा दिया।

    गजराज दुःशासन पछाड़ा भीम बल मृगराज हो,

    अन्याय अत्याचार विहंगों को लथाड़ा बाज हो ।

    कंटक कुलिश समझे कुसुम सम, स्वर्ग कारागार को,

    जयमाल समझे शीश पर आती हुई तलवार को ।

    जातीयता पर जान दी, जाने न अपनी आन दी,

    दौड़ा रगों में रक्त फिर से, छेड़ ऐसी तान दी ।

    रवि-बाल की छवि-लालिमा, तम-कलिमा को हर गई,

    है एक विद्युत शक्ति की धारा हृदय में भर गई ।

    साहस सुकृत बनता रहें, प्रभु के पदों के ध्यान से,

    पिछड़ें नहीं अनुचर तुम्हारे, स्वत्व के मैदान से ।

    जय भुवन भूषण कुशलता के केन्द्र वन्दे मातरम्,

    जय तिलक तीनों लोक के, रसिकेन्द्र वन्दे मातरम् ।

    वज्रपात ! पर मिटे

    ● माखनलाल चतुर्वेदी

    वज्रपात ! मर मिटे हाय हम ! रोने दो, संहार हुआ,

    कसक कलेजे काढ़ दुखी हैं, बुरे समय पर वार हुआ ।

    नभ कंपित हो उठा, करोड़ों में यह हाहाकार हुआ,

    वही हाथ से गिरा, भँवर में जो मेरा पतवार हुआ।

    मैं ही हूँ, मुझे इकलौती ने, अपना जीवन-धन खोया,

    रोने दो, मुझ हतभागिन ने अपना मन मोहन खोया ।

    आधी रात करोड़ों बंधन, अन्यायों से झुकी हुई,

    पराधीनता के चरणों पर, आँसू ढाले रुकी हुई।

    अकुलाते – अकुलाते मैंने एक लाल उपजाया था,

    था पंचानन ‘बाल’ खलों का एक काल उपजाया था ।

    जिसने टूटे हुए देश के विमल प्रेम बंधन तोड़े,

    कसे हुए मेरे अंगों के कुटिल काल-बंधन तोड़े ।

    खड़ा हुआ निःशंक शिवानी पर बलि होना सिखलाया,

    जहाँ सताया गया, वहाँ वह शीश उठा आगे आया।

    बागी, दागी कहलाने पर, जरा न मन में मुरझाया,

    अगणित कंसों ने सम्मुख सहसा श्रीकृष्ण खड़ा पाया ।

    जहाँ पुकारा गया, वीर रण करने को तैयार रहा,

    मातृभूमि के लिए लड़ाका, मरने को तैयार रहा।

    ‘तू अपराधी है तूने क्यों गाए भारत के गीत वृथा ?

    तू ढोंगी बकता फिरता है तुच्छ देश की कीर्ति-कथा !

    तुझ-सों का रहना ठीक नहीं, ले देता हूँ काला पानी’,

    हे वृद्ध महर्षि ! हिला न सकी कायर जज की कुत्सित वाणी ।

    क्यों आर्य-देश के तिलक चले, क्यों कमजोरों के जोर चले,

    तुम तो सहसा उस ओर चले, यह भारत माँ किस ओर चले ?

    शुचि प्रेम-बीज सब हृदयों में, गाली खाते-खाते बोया,

    सद्भावों से उसको सींचा, उसका भारी बोझा ढोया ।

    तुझको अब कष्ट नहीं देंगे, हाथों में झंडा ले लेंगे,

    मांडले के क्या सूली के, कष्टों को सादर झेलेंगे।

    इंग्लैंड नहीं नभ-मंडल में, हम तेरे हैं, हो आवेंगे,

    तूने नरसिंह बनाए हैं, अपना तिलकत्व दिखावेंगे।

    तू देख देश स्वाधीन हुआ, उस पर हम लाखों जिएँ-मरें,

    बस इतना कहना मान तिलक, हम तेरे सिर पर तिलक करें।

    मेरे जीते-जी पूरा स्वराज्य भारत पाए अरमान यही,

    बस शान यही, अभिमान यहो, हम तीस कोटि की जान यही ।

    लोकमान्य अनुपम तिलक

    ● सत्यनारायण कविरल

    जय जय जय द्विजराज देश के सांचे नायक ।

    यदपि प्रभासत वक्त्र सुधा नवजीवन दायक ||

    दृग चकोर आराध्य राष्ट्र नभ प्रतिभा – भाषा ।

    वंदनीय विस्तार विशारद ज्योत्स्ना आशा ।।

    जय चितपावन, सद्भाव सों जग शुभचिन्तक प्रति पलक ।

    शिव भारत भाल विशाल के लोकमान्य अनुपम तिलक ॥

    देश-भक्ति स्वर्गीय गंग-आघात तीव्रतर ।

    गंगाधर सम सह्यो अटल मन तुम गंगाधर ।।

    नित स्वदेश हित निर्भय निर्मम नीति प्रकाशक ।

    जय स्वराज्य संयुक्त शक्ति के पुण्य उपासक ॥

    जय आत्म-त्याग अनुराग से उज्ज्वल उच्च उदाहरन ।

    जय शिव संकल्प स्वरूप शुभ एकमात्र तारन तरन ।

    कर्मयोग आचार्य आर्य आदर्श उजागर।

    निर्मल न्याय निकुंज पुंज करुणा के सागर ।

    सुदृढ़ सिंहगढ़ के सजीव ध्वज धर्म धुरन्धर ।

    अद्भुत अनुकरणीय प्रेम के प्रकृत पुरन्दर ।।

    प्राणोपम राष्ट्र प्रताप वह, अघ त्रिताप हर सुरसरी ।

    जय जन सत्ता के छत्रपति महाराष्ट्र कुल केसरी ।।

    मर्यादा पूरण स्वतंत्रता प्रियता प्यारी ।

    प्रकृति मधुर मृदु मंजु सरलता देखि तिहारी ॥

    रोम रोम कृतकृत्य भयो यह जन्म कृतारथ ।

    तव दर्शन करि लोचन पायो लाहु यथारथ ॥

    चित होय परम गद्गद मुदित जब विचारत कृत्ति तुव ।

    जय जीवन जंग जहाज के जगमगात जातीय ध्रुव ॥

  • प्रार्थना गीत

    तुम्ही हो माता, पिता तुम्ही हो

    तुम्ही हो माता, पिता तुम्ही हो, तुम्ही हो बंधु, सखा तुम्ही हो ।

    तुम्ही हो माता, पिता तुम्ही हो, तुम्ही हो बंधु, सखा तुम्ही हो ।

    तुम्ही हो साथी, तुम्ही सहारे, कोई न अपना, सिवा तुम्हारे ।

    तुम्ही हो साथी, तुम्ही सहारे, कोई न अपना सिवा तुम्हारे ||

    तुम्ही हो नैया, तुम्ही खिवैया, तुम्ही हो बंधु, सखा तुम्ही हो।

    तुम्ही हो माता, पिता तुम्ही हो, तुम्ही हो बंधु, सखा तुम्ही हो ।

    जो खिल सके न, वो फूल हम हैं, तुम्हारे चरणों की, धूल हम हैं।

    जो खिल सके न, वो फूल हम हैं, तुम्हारे चरणों की, धूल हम हैं।

    दया की दृष्टि सदा ही रखना, तुम्ही हो बंधु, सखा तुम्ही हो ।

    तुम्ही हो माता, पिता तुम्ही हो, तुम्ही हो बंधु, सखा तुम्ही हो ॥

    वन्दना के इन स्वरों में

    0 सोहनलाल द्विवेदी

    वंदना के इन स्वरों में.

    एक स्वर मेरा मिला लो।

    वंदिनी माँ को न भूलो,

    राग में जब मत्त झूलो।

    अर्चना के रत्न-कण में,

    एक कण मेरा मिला लो ।

    जब हृदय का तार बोलें,

    श्रृंखला के बंध खोलें।


    हों बलि जहाँ शीश अगणित,

    एक सिर मेला मिला लो।

    इतनी शक्ति हमें देना

    इतनो शक्ति हमें देना दाता,

    मन का विश्वास कमजोर हो ना।

    हम चलें नेक रस्ते पे हमसे,

    भूलकर भी कोई भूल हो ना ।।

    हर तरफ जुल्म है, बेबसी है,

    खोया-खोया सा हर आदमी है।

    पाप का बोझ बढ़ता ही जाए,

    जाने कैसे यह धरती थमी है।

    बोझ ममता का तू ये उठा ले,

    तेरी रचना का ही अंत हो ना ।। हम चलें…

    दूर अज्ञान के हों अँधेरे ।

    तू हमें ध्यान का ज्ञान देना ।

    हर बुराई से बचते रहें हम,

    जितनी भी दें भली जिंदगी दें।

    बैर हो ना किसी से किसी का,

    भावना मन में बदले की हो ना ॥ हम चलें…

    इतनी शक्ति हमें देना दाता,

    मन का विश्वास कमजोर हो ना ॥

    दया करो हे दयालु

    पं. राधेश्याम कथावाचक

    शरण में आए हैं हम तुम्हारी,

    दया करो हे दयालु भगवन् !

    सम्हालो बिगड़ी दशा हमारी।

    दया करो हे दयालु भगवन् ॥

    न हममें बल है न हम में शक्ति,

    न हममें साधन न हम में भक्ति ।

    तुम्हारे दर के हैं हम भिखारी,

    दया करो हे दयालु भगवन् ।

    शरण में…

    जो जो तुम तुम हो स्वामी तो हम हैं सेवक,

    पिता हो तो हम हैं बालक ।

    जो तुम हो ठाकुर तो हम पुजारी,

    दया करो हे दयालु भगवन् ॥

    शरण में….

    सुना है हम अंश ही हैं तुम्हारे,

    तुम्हीं हो सच्चे प्रभू हमारे ।

    कहो तो, तुमने क्यों सुधि बिसारी,

    दया करो हे दयालु भगवन् ॥

    शरण में….

    प्रदान कर दो महान् शक्ति,

    भरो हमारे में ज्ञान भक्ति ।

    तभी कहाओगे तापहारी,

    दया करो हे दयालु भगवन् ॥

    शरण में…

    न होगी जब तक कृपा की दृष्टि,

    न होगी जब तक दया की वृष्टि ।

    न तुम भी तब तक हो न्यायकारी,

    दया करो हे दयालु भगवन् ॥

    हे शरण में…

    हमें तो बस टेक ना की है,

    पुकार बस ‘राधेश्याम’ की है।

    तुम्हारी तुम जानो निर्विकारी,

    दया करो हे दयालु भगवन् ॥

    शरण में…..

    स्वामी के शुचि चरण में

    स्वामी के शुचि चरण-कमल में सादर शीश झुकाऊँ मैं।

    दुखियों के संताप – हरणकी भक्ति विलक्षण पाऊँ मैं ।।

    दो ऐसा वरदान दयामय, दीनों को अपनाऊँ मैं ।

    सारा दुःख दुखियों का लेकर, उनका सुख बन जाऊँ मैं ।

    अंधों की लकड़ी बनकर के, सूधे मार्ग चलाऊँ मैं ।

    भटक रहें जो लक्ष्य भुलाकर, उनको पथ दिखलाऊँ मैं ।।

    गुण समूह को प्रकट करूँ, अवगुण को सदा दुराऊँ मैं।

    धागा बनूँ अंग निज देकर, सबके छिद्र छिपाऊँ मैं ।

    प्रभु के निर्मल लीला-रस की सरस रागिनी गाऊँ मैं।

    मुरझी हृदय-कुसुम-कलिका को पूर्णतया विकसाऊ मैं।

    गत विश्वास संशयी पुरुषों का विश्वास बढ़ाऊ मैं ।

    प्रभु की महिमा सुना-सुनाकर चरण शरण दिलवाऊँ मैं॥

    प्रभु की प्रेम-अमिय- रसधारा उज्ज्वल अमल बहाऊँ मैं ।

    काम स्वार्थ का मल धो, माँ धरती को सफल बनाऊँ मैं |

  • 8 मई मातृ दिवस पर कविता /Poem on 8th May Mother’s Day

    सबसे ज्यादा मेरी माता

    o आचार्य मायाराम ‘पतंग’

    सबसे ज्यादा मेरी माता, लगती मुझको प्यारी है।

    माता के पावन चरणों, जग सारा बलिहारी है ॥

    माँ ने सबको जन्म दिया है अपना दूध पिलाया है।

    गीले में खुद सोई माँ, सूखे में हमें सुलाया है ॥

    भूख, प्यास सब सही स्वयं पर दुःखी नहीं हमको देखा ।

    मेरी छोटी सी पीड़ा से फैली चिंता की रेखा ।।

    मैं ही नहीं बहन या भाई पूज्य पिता दादा-दादी ।

    सबकी चिंता करती अम्मा, खोकर अपनी आज़ादी ।।

    सबको भोजन करा देती आप बाद में खाती है।

    बड़े सवेरे सबसे पहले बिस्तर से उठ जाती है।

    जो भी चीज न पाए घर में पढ़ने, लिखने, खाने की।

    अम्मा को आवाज लगाते हम सारे अनजाने ही ।।

    साज, सफाई और रसोई, कपड़ों का धोना सीना।

    माता से सीखा है हमने सेवा मेहनत कर जीना ॥

    ऐसी माता के चरणों में अपना शीश झुकाते हैं।

    ईश्वर का साकार रूप हम माताजी में पाते हैं ।

    हम बलवानों की जननी है।

    ० सुवर्णसिंह वर्मा ‘आनंद’

    हम बलवानों की जननी है, तुमको बलवान् बना देंगी।

    हम अबला हैं या सबला हैं, तुझको यह ध्यान दिला देंगी ।

    हम देशभक्ति पर मरती हैं, न्योछावर तन-मन करती हैं,

    हम भारत के दुःख हरती हैं, होकर कुरबान दिखा देंगी।

    हम मद्य प्रचार मिटा देंगी, परदेशी वस्त्र हटा देंगी,

    हम अपना शीश कटा देंगी, पर तुम्हें सुराज दिला देंगी।

    हम दुर्गा-चंडी काली हैं, आजादी की मतवाली हैं,

    हम नागिन डसनेवाली हैं, दुश्मन का दिल दहला देंगी ।

    हम शांत चित्त हैं, ज्ञानी हैं, हम ही झाँसी की रानी हैं,

    यह अटल प्रतिज्ञा ठानी है, भारत स्वाधीन करा देंगी।