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  • माँ शारदे पर कविता

    माँ शारदे पर कविता (देव घनाक्षरी)

    नमन मात शारदे
    अज्ञानता से तार दे
    करुणा की धार बहा
    मुख में दो ज्ञान कवल।।

    वीणा पुस्तकधारिणी
    भारती ब्रह्मचारिणी
    शब्दों में शक्ति भरदो
    वाणी में दो शब्द नवल।।

    हंस की सवारी करे
    तमस अज्ञान हरे
    रोशन जहान करे
    पहने माँं वस्त्र धवल।।

    अज्ञानी है माता हम
    करिए दोषों को शम
    ज्ञान का दान कर दो
    बढ़ जाएगा बुद्धि बल।।

    ✍️ डॉ एन के सेठी

  • मैं भी सांता क्लाॅज

    मैं भी सांता क्लॉज

    क्रिसमस डे को सुबह सवेरे
    मैं भी निकला बन ठन कर
    सांता क्लॉज के कपड़े पहन
    चलने लगा झूम झूम कर

    पीठ पर लिया बड़ा सा थैला
    खिलौने रख लिए भर भर कर
    लंबी दाढ़ी पर हाथ फेरते
    मैं चला बच्चों की डगर

    पहुँचा क्रिसमस पार्टी में जब
    बच्चों की तैयारी थी जमकर
    मुझे देखते दौड़ पड़े सब
    सांता सांता बोल बोल कर

    मेहनत का हर काम किया पर
    उपेक्षा मिलती थी मुझको दर दर
    बच्चों ने सर आँखों पर बिठाया
    खिले थे चेहरे उनके मुझे पाकर

    मिले थे पैसे भूखे पेट भरने भर
    खुशियाँ मिली थी दिल खोलकर
    ऐसी ही खुशियाँ घर बाँटने को
    निकला वहाँ से झोली समेटकर

    शाम को जब मैं घर लौटा
    उछल पड़े बच्चे मुझे देख कर
    दौड़ कर मुझे गले लगाया
    मेरे पापा मेरे सांता कह कर

    खुशी मेरी मायूसी में तब बदली
    थैला था खाली पहुँचते-पहुँचते घर
    पोंछ कर मेरे आँसू बच्चों ने कहा
    पापा आप हमारे सांता सालों भर

    सभी प्यारे सांता की यही कहानी
    खुशियाँ देते अपने गम भूल कर
    बच्चों की एक हँसी की खातिर
    नहीं देखते अपनी जेबें टटोलकर

    – आशीष कुमार
    मोहनिया, कैमूर, बिहार

  • पैसों के आगे सब पराया

    मुश्किल समय में नहीं आता है;
    अपने ही अपनो के काम होगा।
    आगे चलकर भुगतना पड़ता है;
    ऊँचे से ऊँचे मोल का दाम होगा।1।

    मोल पैसों का नहीं संस्कार का है;
    प्यार से करो बात मन में जगता आस।
    माता-पिता और गुरु से मिले जो संस्कार;
    कभी ना खोना धैर्य मन में रखो विश्वास।2।

    मुश्किल का सामना जब भी होता है;
    तब आती है अपनों की याद।
    जो नहीं करते हैं अपनों पे विश्वास;
    सदा करता रहता है रब से फरियाद।3।

    इस कलयुगी दुनिया में सब मतलबी हो गये;
    रिश्ते पराया होकर पैसों के पीछे भाग रहे।
    पैसा खातिर इंसान अपनों से नाता तोड़ रहे;
    महत्व दे पैसों को सीने से लगाकर जाग रहे।4।

    परमानंद निषाद

  • जिम्मेदारी पर कविता

    कविता-जिम्मेदारियां

    जिम्मेदारियां एक बोझ है
    ढोने वाले पर
    लद जाते हैं,
    ना ढोने वाले को
    नासमझ/
    नालायक/
    आवारा
    लोग कह जाते हैं,

    जिम्मेदारियां,
    जीवन का
    एक पहलू है
    बिना जिम्मेदारी के
    जीवन
    जानवर का बन जाते हैं ,

    जिम्मेदारियों से
    घबड़ाना/
    चिल्लाना/
    कभी नहीं
    परेशानियां
    तो इनके संग ही आते हैं,
    जिम्मेदारियों से
    अपनो में
    रहने का
    अपना कुछ
    कहने का
    सबका कुछ
    सुनने का
    अपनों से मिल जाते हैं ,

    जिम्मेदारियां
    एक दर्शन है
    जो सिखाता है
    जीवन जीने
    की सरीखे
    तरीके,
    पता नहीं कि
    कब आ गये
    बुढ़ापे के सफ़र में
    पता ही नही चला,
    छोड़ जाते हैं
    बहुत कुछ
    अपनों के लिए,
    जिम्मेदारियां
    जिम्मेदारियों से
    फिर दूसरों को
    सौंप कर दे जाते हैं।

    रचनाकार -रामबृक्ष बहादुरपुरी अम्बेडकरनगर यू पी

  • वक्त पर कविता

    वक्त पर कविता

    पलटी खाता वक्त बेवक्त,
    मुंह बिचका के चिढ़ाता है।
    किया धरा पानी फिराता,
    वक्त ओंधे मुंह गिराता है।।

    सगा नहीं किसी का वक्त,
    हर वक्त चलता रहता है।
    कभी धूप कभी छांव सा,
    स्वरूप बदलता रहता है।।

    कच्ची धूप ओस की बूंद,
    प्रकृति को निहलाती है।
    तेज़ धूप झुलसाती तपन,
    अंत में ख़ुद ढल जाती है।।

    वक्त का मारा हारा मानव,
    हताश निराश हो जाता है।
    हिम्मत धैर्य रखनेवाला ही,
    बुरे वक्त पर विजय पाता है।।