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  • मैं हूँ मोहब्बत – विनोद सिल्ला

    मोहब्बत

    मुझे
    खूब दबाया गया
    सूलियों पर
    लटकाया गया
    मेरा कत्ल भी
    कराया गया
    मुझे खूब रौंदा गया
    खूब कुचला गया
    मैं बाजारों में निलाम हुई
    गली-गली बदनाम हुई
    तख्तो-ताज भी
    खतरा मानते रहे
    रस्मो-रिवाज मुझसे
    ठानते रहे
    जबकि में एक
    पावन अहसास हूँ
    हर दिल के
    आस-पास हूँ
    बंदगी का
    हसीं प्रयास हूँ
    मैं हूँ मोहब्बत
    जीवन का पहलू
    खास हूँ।

    विनोद सिल्ला©

  • संविधान दिवस पर कविता

    संविधान दिवस पर कविता

    हां
    मैं सेकुलर हूँ
    समता का समर्थक हूँ
    मैं संविधान प्रस्त हूँ
    सेकुलर होना गुनाह नहीं

    गुनाह है
    सांप्रदायिक होना
    गुनाह है
    जातिवादी होना
    गुनाह है
    पितृसत्ता का
    समर्थक होना
    गुनाह है
    भाषावादी होना
    गुनाह है
    क्षेत्रवादी होना
    गुनाह है
    भेदभाव का
    पोषक होना।

    -विनोद सिल्ला©

  • मैं सो जाऊं – बाल कविता

    बाल गीत

    प्यारे प्यारे सपनों की दुनिया में, मैं खो जाऊं।
    चंदन के पलने में मुझे झुलाओ, मैं सो जाऊं।

    ममता का आंचल ओढ़ कर, तेरा राजा बेटा,
    सुकून भरी नींद में मुझे सुलाओ, मैं सो जाऊं।

    परियों की दुनिया की सैर, करनी है सपने में,
    चंदा तारे सब मुझे खिलाएं, मैं सो जाऊं।

    मम्मी मेरी सबसे प्यारी, पापा भी प्यारे प्यारे हैं।
    हम सब बच्चे मम्मी पापा की, आंखों के तारे हैं।

    डांट लगाते वो हमें, जब हम शैतानी करते हैं।
    प्यार से गोद में खिलाते, अच्छे बच्चे बन जाते हैं।

    मुश्किल में कहते मत घबराना, साथ हम तेरे हैं।
    सबसे ज्यादा प्यार हमें करते, मम्मी पापा मेरे हैं।

    अक्षत सक्सेना ( 9 वर्ष)

  • विश्व मानवाधिकार दिवस पर कविता

    विश्व मानवाधिकार दिवस पर कविता

    विश्व मानवाधिकार दिवस पर कविता

    विश्व मानवाधिकार दिवस पर कविता

    मिले कई अधिकार, जीवधारी को जग में|
    कुछ हैं ईश प्रदत्त, बने उपयोगी पग में |
    जीने का अधिकार, जगत में सबने पाया |
    भोजन पानी संग, भ्रमण का हक दिलवाया |
    अपने मन का नृप बने, जीव सभी इनसंसार में |
    अधिकारों का कर हनन, मस्त रहे व्यवहार में ||

    अधिकारों कीइन 5 बात, समझता जो बोया है |
    हक का पाकर नूर, भला किसने खोया है |
    करते भाषण खूब, गिनाते अधिकारों को |
    भूले निज कर्तव्य, भूलते आधारों को |
    एक दूसरे से जुड़े, जाल बना संसार रुचि |
    पृथक नहीं कर्तव्य से, कोई भी अधिकार रुचि ||

    तुमको है अधिकार, चलाये अपना सिक्का |
    पहन राज का ताज, चलाये अपना इक्टी का |
    नामंजूरी कौन, करे अब आगे तेरे |
    मिले तुझे वर्चस्व, मिला कानूनी घेरे |
    इस सत्ते ऊपर बना, सच्ची सत्ता ईश का |
    जो अंतिम सर्वोच्च है, न्याय तंत्र जगदीश का |

    सुकमोती चौहान रुचि

  • तितली पर बाल कविता

    तितली पर बाल कविता

    तितली पर बाल कविता

    नीली पीली काली तितली।
    सुंदर पंखों वाली तितली।।

    तितली पर बाल कविता

    आए-जाए फूलों पर ये,
    घूमे डाली-डाली तितली।।

    कुदरत ने कितने रंग भरे,
    लाड-चाव से पाली तितली।।

    फूल-फूल पर आती जाती,
    रहती है कब खाली तितली।।

    सब को खुशियां देने वाली,
    ऐसी है मतवाली तितली।।

    छूने से ये डर जाती है,
    नाजो-नखरे वाली तितली।

    -विनोद सिल्ला