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  • राजनीति बना व्यापार जी – राजकुमार मसखरे

    राजनीति बना व्यापार जी

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    देखो आज इस राजनीति क
    कैसे बना गया ये व्यापार जी ,
    लोक-सेवक अब गायब जो हैं
    मिला बड़ा उन्हें रोज़गार जी !
    राजनीति अब स्वार्थ- नीति है
    कर रहे अपनों का उपकार जी,
    कुर्सी में चिपके रहने की लत
    बस एक ही इनका आधार जी !
    चमचा बनो व जयकारा लगाओ
    फ़लफूल रहा है ये बाज़ार जी,
    छुट-भैये नेता पीछे झंडा उठाये
    इस धंधे का है ख़ूब पगार जी !
    कुछ नही करते तो नेता बनो
    या नेता के अच्छे चाटुकार जी,
    जनता, देश से न कोई मतलब
    बस बन तो जाये सरकार जी !
    कई पीढ़ियों के भर लिए ख़ज़ाने
    सोना-चांदी है इनका आहार जी,
    इन बंगलों में खूब गुलछर्रे उड़ाते
    वो ‘वोटर’ बीच फँसे मझधार जी !

    — *राजकुमार ‘मसखरे’*

  • गुलबहार -माधुरी डड़सेना

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    गुलबहार

    होश में हमीं नहीं सनम कभी पुकार अब
    हो तुम्हीं निगाह में हमें ज़रा निहार अब ।

    वक़्त की फुहार है ये रोज़ की ही बात है
    दिल मचल के कह रहा मुझे तुम्हीं से प्यार अब।

    खिल उठा गुलाब है चमन में रौनकें सजी
    हर गली महक रहा कि चढ़ रहा खुमार अब।

    अजीब खलबली यहाँ न पूछ हाल क्या हुआ
    चाँद से दुआ करो मिले कहीं क़रार अब ।

    जंग जिंदगी लगे गुमान इश्क का हमें
    उम्र का हरेक पल करूँ तुम्हें निसार अब ।

    खेल खेल में नज़र झुका के बात कह दिए
    हम नवाब थे कभी हुए तेरा शिकार अब ।

    ये जहां नया हुआ मिठास भी ग़ज़ब लगे
    पाक साफ दिल जिगर इबादतें हजार अब ।

    क्या लिखूँ किताब में पढो कभी निकाल के
    माधुरी महक रही बनी है गुलबहार अब ।


    *माधुरी डड़सेना ” मुदिता “*

  • नशा नाश करके रहे- विनोद सिल्ला

    यहां पर नशा नाश करके रहे , जो कि नशा मुक्ति पर लिखी गई विनोद सिल्ला की कविता है।

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    नशा नाश करके रहे



    नशा नाश करके रहे,नहीं उबरता कोय।
    दूर नशे से जो रहे, पावन जीवन होय।।

    नशा करे हो गत बुरी, बुरे नशे के खेल।
    बात बड़े कहकर गए,नशा नाश का मेल।।

    नशा हजारों मेल का, सभी नशे बेकार।
    जिसे नशे की लत लगी, लुट जाए घर-बार।।

    काया को जर्जर करे, सदा रहे बीमार।
    मान घटे मदपान से, जा परलोक सिधार।।

    नशा नहीं करना कभी, यही बड़ों की सीख।
    नशा नहीं जो छोड़ते, पड़े मांगनी भीख।।

    नशा बुराई एक है, दुष्परिणाम हजार।
    नशेबाज को हर जगह, पड़ती है फटकार।।

    सिल्ला की सुन लीजिए,देकर अपना ध्यान।
    नशा नाश की राह है, बात भले की मान।।

    विनोद सिल्ला

  • प्लास्टिक मुक्त दिवस पर दोहे-अंचल

    प्लास्टिक मुक्त दिवस पर दोहे-अंचल

    आज प्लास्टिक ने हमारे पर्यावरण के लिए बहुत खतरा पैदा कर दिया है। तो जनजागृति हेतु यहां पर प्लास्टिक मुक्त दिवस पर दोहे दिया गया है

    प्लास्टिक मुक्त दिवस पर दोहे

    पन्नी की उपयोगिता,करें बन्द तत्काल।
    खतरा जीवन के लिए,जीना करे मुहाल।।

    धीमा विष है जगत में ,सेहत करे प्रभाव।
    आओ इनसे सब करें,रिस्ता खत्म लगाव।।

    जहर धुँआ में व्याप्त है, करे गात बीमार।
    इनसे बचकर ही रहे, अंचल करे पुकार।।

    प्रचलन में लाना नहीं,आओ लें सौगन्ध।
    बन्द करें निर्माण सब,करें त्वरित प्रतिबन्ध।।

    गर रखना जीवन हमें,उन्नत औ खुशहाल।
    आओ इन पर सब करें ,खत्म बाबत सवाल।।

    संकट लाये जगत में,खोजें चल निपटान।
    दूर रखें उपयोग से, चले विश्व अभियान।।

    एक पूण्य का काम है,कहता अंचल नित्य।
    सुखदाता बनना हमें, करिए ऐसे कृत्य।।

    बन्द करें आओ चलें,लेकर नव संकल्प।
    इससे दूजा है नहीं, बचने हेतु विकल्प।।

    कपड़े थैले की करें ,आओ जी उपयोग।
    जड़ से करना खत्म है ,पन्नी तुच्छ वियोग।।

    खोजें आओ हम सभी,फौरन सहज निदान।
    रोग रहित दुनिया बने ,संध्या और बिहान।।

    हाथ हमारे फैसला, लेना है तत्काल।
    बन्द करें उपयोग तब,होगा समय बहाल।।

    ✍️अंचल

  • छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया

    ‘छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया’
    ये नारा बड़ अच्छा लगथे!
    ये नारा बनइया के मन भर
    मोर पैलगी करे के मन करथे !!

    जब छत्तीसगढ़िया मन..
    गुजराती लॉज/राजस्थानी लॉज म रुकथे
    हरियाणा जलेबी,बंगाली चाय के बड़ाई करथे
    बड़ अच्छा लगथे .!!

    जब छत्तीसगढ़िया मन.
    अपन घर म कोनों काम-कारज ल धरथे
    तब बीकानेर/जलाराम ले मन भर खरीदी करथे
    बड़ अच्छा लगथे!!

    जब छत्तीसगढ़िया मन
    बाहिर वाले के कृषि फारम म काम करथे
    ‘साउथ’ वाले के ‘नर्सिंगहोम’ के चाकरी म मरथे
    बड़ अच्छा लगथे !!

    जब छत्तीसगढ़िया मन
    आने राज म आने के बड़े-बड़े बिल्डिंग बनाथे
    बँधुआ मजदूर बन के,ईंटाभट्ठा म मरत कमाथे
    बड़ अच्छा लगथे !!

    जब छत्तीसगढ़िया मन.
    ये परदेशिया नेता मन के गुलामी करथे
    इंखर जय,गुनगान करत,झंडा धर निकलथे
    बड़ अच्छा लगथे!!

    *राजकुमार ‘मसखरे’*
    भदेरा /पैलीमेटा, ( K.C.G )