संवेदना पर कविता -अमित दवे

संवेदना पर कविता कथित संवेदनाओं के ठेकेदारों कोसंवेदनाओं पर चर्चा करते देखा। संवेदनाओं के ही नाम पर संवेदनाओं काकतल सरेआम होते देखा।। साथियों के ही कष्टों की दुआ माँगतेसज्जनों को शिखर चढते देखा।। खेलों की बिसातों पे षड्यंत्रों सेअपना बन…

गुरू पर कुण्डलियां -मदन सिंह शेखावत

महर्षि वेद व्यासजी का जन्म आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को ही हुआ था, इसलिए भारत के सब लोग इस पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाते हैं। जैसे ज्ञान सागर के रचयिता व्यास जी जैसे विद्वान् और ज्ञानी कहाँ मिलते…

विरह पर दोहे -बाबू लाल शर्मा

विरह पर दोहे सूरज उत्तर पथ चले,शीत कोप हो अंत।पात पके पीले पड़े, आया मान बसंत।। फसल सुनहरी हो रही, उपजे कीट अनंत।नव पल्लव सौगात से,स्वागत प्रीत बसंत।। बाट निहारे नित्य ही, अब तो आवै कंत।कोयल सी कूजे निशा,ज्यों ऋतुराज…

गाँधीजी पर कविता – बाबू लाल शर्मा

mahatma gandhi

गाँधीजी पर कविता भारत ने थी ली पहन, गुलामियत जंजीर।थी अंग्रेज़ी क्रूरता, मरे वतन के वीर।हाल हुए बेहाल जब, कुचले जन आक्रोश।देख दशा व्याकुल हुए, गाँधी वर मतिधीर। काले पानी की सजा, फाँसी हाँसी खेल।गोली गाली साथ ही , भर…

बसंत पंचमी पर कविता

बसंत पंचमी पर कविता मदमस्त    चमन अलमस्त  पवन मिल रहे  हैं देखो, पाकर  सूनापन। उड़ता है सौरभ, बिखरता पराग। रंग बिरंगा सजे मनहर ये बाग। लोभी ये मधुकर फूलों पे है नजर गीला कर चाहता निज शुष्क अधर। सजती है…

बीते समय पर कविता

बीते समय पर कविता हम रहो के राही हैभटक जाए इतना आसान नहींइतना रहो में गुमार नहीहम से टकरा जाए इतना हकूमत में साहस नहीहो जाता हैचिर हरण जैसे जब अपने घर ही ताक नहीअपने बच्चे ही हाथ नहीदुनिया में…

शब्दो पर दोहे

शब्दो पर दोहे १सागर मंथन जब हुआ, चौदह निकले रत्न।*अन्वेषण* नित कर रहे, सतत समस्त प्रयत्न।।२*सम्प्रेषण* होता रहे, भव भाषा भू ज्ञान।विश्व राष्ट्र परिकल्पना, हो साकार सुजान।।३अपनी रही विशेषता, सब जन के परि त्राण।बना *विशेषण* हिन्द यह, सागर हिन्द प्रमाण।४*अन्वेषण*…

मुस्कान पर कविता

मुस्कान पर कविता मुझे बाजार मेंएक आदमी मिलाजिसके चेहरे परन था कोई गिलाजो लगतारमुस्करा रहा थाबङा ही खुशनजर आ रहा थामैंने उससे पूछा किकमाल है आजजिसको भी देखोमुंह लटकाए फिरता हैतनावग्रस्त-सा दिखता हैआपकी मुस्कान काक्या राज हैमुस्करा रहे होकुछ तो…

बसन्त आयो रे पर कविता

बसन्त आयो रे पर कविता ऋतु बसन्त शुभ दिन आयो रे,सबके मन को भायो रे।पात-पात हरियाली सुन्दर,मधु बन भीतर छायो रे।। नीला अम्बर खूब सितारेसबके मन को भाते हैं।रक्त पलास खिले धरती पर,तन में अगन लगाते हैं।रंग-बिरंगे उपवन सुन्दर,प्रकृति खूब…

कमजोरो पर कविता

कमजोरो पर कविता कमजोर पर सभी हिमत दिखाते हैंलोग पत्थर से क्यों नही टकराते हैएक पीछे एक चलते हैंक्यों नही कुछ अलग कर दिखाते हैकुछ बढ़िया कर जाते हैंमहान बनने के लक्षण सभी में नही पते हैक्यों लोग;कमजोर पर हिमत…

शह-मात पर कविता-विनोद सिल्ला

शह-मात पर कविता जाने क्योंशह-मात खाते-खातेशह-मात देते-देतेकर लेते हैं लोगजीवन पूरामुझे लगासब के सबहोते हैं पैदाशह-मात के लिएनहीं हैकुछ भी अछूताशह-मात सेलगता हैशह-मात ही हैपरमो-धर्मशह-मात हैकण-कण में व्याप्तशह-मात ही हैअजर-अमर Post Views: 54

अब नहीं रुकूंगी पर कविता

अब नहीं रुकूंगी पर कविता अब नहीं रुकूंगी,नित आगे बढूंगीमैंने खोल दिए हैं ,पावों की अनचाहे बेड़ियां।जो मुझसे टकराए ,मैं धूल चटाऊंगीहाथों में डालूंगी ,उसके अब हथकड़ियां।।(१)अब धुल नहीं मैं ,ना चरणों की दासी।अब तो शूल बनूंगीअन्याय से डरूँगी नहीं…