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  • कवियों की आपबीती पर कविता

    कवियों की आपबीती पर कविता

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    शीश महल की बात पुरानी,
    रजवाड़ी किस्से जाने।
    हम भी शहंशाह है, भैया,
    शीश पटल के दीवाने।

    आभासी रिश्तों के कायल,
    कविताई के मस्ताने।
    कर्म विमुख साधो सा जीवन,
    अरु व्याकरणी पैमाने।

    कुछ तो नभमंडल से तारे,
    कुछ मुझ जैसे घसि यारे।
    काम छोड़ कविताई करते,
    दुखी भये सब घर वारे।

    मैं भी शीश पटल सत संगी,
    तुम भी हो साथ सयाने।
    पंख हीन बिन दीपक जलते,
    हम बिन मौसम परवाने।

    सुप्रभात से शुभ रात्रि तक,
    शीशपटल पर रहता हूँ।
    घरवाली दिन भर दे ताने,
    बिन जाने ही सहता हूँ।

    नदिया, मे बुँदिया की जैसे,
    स्वप्न लोक में बहता हूँ।
    मनोभाव ऐसे रहते ज्यों,
    शीश महल मे हीे रहता हूँ।

    एक पटल पर भी रह लेता,
    अन्य पटल भी मँडराता।
    संदेशे पढ़ पढ़ कर मै, तो,
    भँवरे सा नित भरमाता।

    चैन पटल बिन नहीं मिले तो,
    पटलों पर बेचैन रहूँ।
    नैन पटल में क्या क्या खोजे,
    लगता घर बिन नैन रहूँ।

    कैसे, अनुपम रिश्ते जोड़े,
    आभासी प्रतिबिंबो से।
    धरा धरातल भूल रहें,हम,
    दूर रहे सत बिम्बो से।

    जीवन ही आभास मात्र अब,
    शीश पटल आचरणों में।
    जैसे शहंशाह रमते थे,
    शीश महल सत वरणों में।

    मूल भूत, अन्तर पहचाना,
    कैसा, यह परिहास हुआ।
    वो, तो शीश महल के स्वामी,
    पटलों का मैं दास हुआ।
    . ______
    बाबू लाल शर्मा “बौहरा

  • सुख-दुख की बाते बेमानी

    सुख-दुख की बाते बेमानी

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    सुख-दुख
    ( १६,१६)
    मैने तो हर पीड़ा झेली।
    सुख-दुख की बाते बेमानी।

    दुख ही मेरा सच्चा साथी,
    श्वाँस श्वाँस मे रहे सँगाती।
    मै तो केवल दुख ही जानूँ,
    प्रीत रीत मैने कब जानी,
    सुख-दुख की बाते बेमानी।

    सुख तो केवल छलना है,
    मुझे निरंतर पथ चलना है।
    बाधाओं से कब रुक पाया,
    जब जब मैने मन में ठानी,
    सुख-दुख की बातें बेमानी।

    अवरोधक है सखा हमारे,
    संकट बंधु पड़ोसी सारे।
    इनकी आवभगत कर देखे,
    कृत्य सुकृत्य हितैषी मानी,
    सुख-दुख की बातें बेमानी।

    विपदाएँ अच्छी लगती,
    मेरा एकाकी पन हरती।
    श्वाँस रक्त दोनों ही मैने,
    देशधरा की सम्पत्ति मानी,
    सुख-दुख की बातें बेमानी।

    मन में सुख-दुख जोड़ा है,
    दुख ज्यादा सुख थोड़ा है।
    दुख में नई प्रेरणा मिलती,
    सुख की सोचें ही नादानी,
    सुख-दुख की बातें बेमानी।
    . ______
    बाबू लाल शर्मा,बौहरा

  • पनघट मरते प्यास

    पनघट मरते प्यास

    kavita


    {सरसी छंद 16+11=27 मात्रा,
    चरणांत गाल, 2 1}
    .
    नीर धीर दोनोे मिलते थे,
    सखी-कान्ह परिहास।
    था समय वही,,अब कथा बने,
    रीत गये उल्लास।
    तन मन आशा चुहल वार्ता,
    वे सब दौर उदास।
    मन की प्यास शमन करते वे,
    पनघट मरते प्यास।।

    वे नारी वार्ता स्थल थे,
    रमणी अरु गोपाल।
    पथिकों का श्रम हरने वाले,
    प्रेमी बतरस ग्वाल।
    पंछी जल की बूंद आस के,
    थोथे हुए दिलास।
    मन की प्यास शमन करते वे
    पनघट मरते प्यास।

    बनिताएँ सरिता होती थी,
    प्यासे नीर निदान।
    वे निश्छल वाणी ममता की,
    करती थी जल दान।
    कान्हा राधे की उन राहों में,
    भरते घोर कुहास।
    मन की प्यास शमन करते वे
    पनघट मरते प्यास।

    पनघट संगत पनिहारिन भी,
    रहे मसोसे बाँह।
    नीर भरी प्यासी अँखियाँ वे,
    ढूँढ रही है छाँह।
    जरापने सब दुख ही पाते,
    टूटे सबकी आस।
    मन की प्यास शमन करते वे,
    पनघट मरते प्यास ।।

    रीते सरवर ताल तलैया,
    कूएँ सूखे सार।
    घट गागर भी लुप्त हुए हैं,
    रस्सी सुप्त विचार।
    दादी नानी , बात कहानी,
    तरसे कथ परिहास।
    मन की प्यास शमन करते वे,
    पनघट मरते प्यास।।

    रीत प्रीत से लोटा डोरी,
    बँध रहते दिन रात।
    ललनाओं से चुहल कहानी,
    अपनेपन की बात।
    रिश्तों में मर्याद ठिठोली,
    देवर भाभी हास।
    मन की प्यास शमन करते वे,
    पनघट मरते प्यास।।

    सास ससुर की बाते करती,
    रमणी भोली जान।
    करे शिकायत कभी प्रशंसा,
    पनिहारिन अभिमान।
    याद कहानी होकर घटते,
    प्रीत रीत विश्वास।
    मन की प्यास शमन करते वे
    पनघट मरते प्यास।।

    प्रेम कहानी घर के झगड़े,
    सहते मौन स्वभाव।
    कभी चुहल देवर भौजाई,
    ईश भजन समभाव।
    जल घट डोर डोल वे लोटे,
    दर्शन ही परिहास।
    मन की प्यास शमन करते वे,
    पनघट मरते प्यास।।

    प्रियजन,पंछी,पथिक पाहुने,
    गायें लौटत हार।
    वृद्ध जनो से अवसर पाके,
    दुआ लेत पनिहार।
    सबको अपना हक मिलता था,
    कोय न हुआ हताश।
    मन की प्यास शमन करते वे,
    पनघट मरते प्यास।।

    वर्तमान की अंध दौड़ में,
    भूल गये संस्कार।
    आभूषण पनिहारिन रखती,
    वस्त्रों संग सँभार।
    याद रहे बस याद कहानी,
    मर्यादा के हास।
    मन की प्यास शमन करते वे,
    पनघट मरते प्यास।।

    दंत खिलकती,नैन छलकती,
    झिलमिल वे शृंगार।
    देख दृष्य वे खूब विहँसती,
    मूक स्वरों पनिहार।
    मौन गवाही पनघट देते,
    रीते लगे पलाश।
    मन की प्यास शमन करते वे,
    पनघट मरते प्यास।।
    . _______
    बाबू लाल शर्मा “बौहरा” विज्ञ

  • मां शारदे नमन लिखा दे

    मां शारदे नमन लिखा दे

    मां शारदे नमन लिखा दे

    नमन् लिखा दे
    . १६,१४
    वीणा पाणी, ज्ञान प्रदायिनी,
    ब्रह्म तनया माँ शारदे।
    सतपथ जन प्रिय सत्साहित,हित
    कलम मेरी माँ तार दे।

    मात शारदे नमन् लिखादे,
    धरती, फिर नभ मानों को।
    जीवनदाता प्राण विधाता,
    मात पिता भगवानों को।

    मात शारदे नमन लिखा दे,
    सैनिक और किसानों को।
    तेरे वरद पुत्र,माँ शारद,
    गुरु, कविजन, विद्वानों को।

    मात शारदे नमन लिखा दे,
    भू पर मरने वालों को।
    अपना सर्व समर्पण कर के,
    देश बचाने वालों को।

    मात शारदे नमन लिखा दे,
    संसद अरु संविधान को।
    मातृ भूमि की बलिवेदी पर,
    अब तक हुए बलिदान को।

    मात् शारदे नमन् लिखा दे,
    जन मन मान कल्याण को।
    भारत माँ के सत्य उपासक,
    श्रम के पूज्य इंसान को।

    मात शारदे नमन लि खादे,
    माँ भारती के गान को।
    मैं तो प्रथम नमामि कहूँगा,
    माँ शारदे वरदान को।
    . ______
    बाबू लाल शर्मा”बौहरा” विज्ञ

  • अटल बिहारी वाजपेई के लिए कविता

    अटल बिहारी वाजपेई के लिए कविता

    अटल बिहारी वाजपेई के लिए कविता

    atal bihari bajpei
    अटल बिहारी वाजपेयी

    हरिगीतिका छंद
    . (मापनी मुक्त १६,१२)
    . अटल – सपूत

    श्री अटल भारत भू मनुज,ही
    शान सत अरमान है।
    जन जन हृदय सम्राट बन कवि,
    ध्रुव बने असमान है।
    नहीं भूल इनको पाएगा,
    देश का अभिमान है।
    नव जन्म भारत वतन धारण,
    या हुआ अवसान है।
    .
    हर भारत का भरत नयन भर,
    अटल की कविता गात है।
    हार न मानूं रार न ठानू ,
    दइ अटल सौगात है।
    भू भारत का अटल लाड़ला,
    आज क्यो बहकात है।
    अमर हुआ तू मरा नहीं है,
    हमको भी विज्ञात है।
    .
    भारती प्रिय पूत तुम सपूत को ,
    मात अटल पुकारती।
    जन गण मन की आवाज सहज,
    अटल ध्वनि पहचानती।
    राजनीति के दल दलदल में,
    अटल सत्य सु मानती।
    गगन ध्रुव या धरा ध्रुव समान
    सुपुत्र है स्वीकारती।
    .
    सपूत तू धरा रहा पुत्र सम,
    करि नहीं अवमानना।
    अब देवों की लोकसभालय,
    प्रण सपूती पालना।
    अटल गगन मे इन्द्रधनुष रंग,
    सत रंग पहचानना।
    अमर सपूत कहलाये अवनि ,
    मेरी यही कामना।
    . _______
    बाबू लाल शर्मा ‘बौहरा’