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  • मीत देश वंदन की ख्वाहिश

    मीत देश वंदन की ख्वाहिश

    tiranga

    धरती पर पानी जब बरसे
    मनभावों की नदियाँ हरषे।
    नमन् शहीदों को ही करलें,
    छोड़ो सुजन पुरानी खारिश।
    मीत देश वंदन की ख्वाहिश।

    आज नेत्र आँसू गागर है,
    यादें करगिल से सागर है।
    वतन हितैषी फौजी टोली,
    कर्गिल घाटी नेहिल बारिश,
    मीत देश वंदन की ख्वाहिश।

    आतंकी हमलों को रोकें,
    अंदर के घपलों को झोंके।
    धर्म-कर्म अनुबंध मिटा कर,
    जाति धर्म पंथांत सिफारिश,
    मीत देश वंदन की ख्वाहिश।

    राष्ट्र सुरक्षा करनी हमको,
    भाव शराफ़त भरने सबको।
    काय नज़ाकत ढंग भूलकर,
    बाहों में भर लें सब साहस,
    मीत देश वंदन की ख्वाहिश।
    . _________
    बाबू लाल शर्मा “बौहरा *विज्ञ*

  • पिता पर दोहे

    पिता पर दोहे

    पिता

    पिता क्षत्र संतान के, हैं अनाथ पितुहीन।
    बिखरे घर संसार वह,दुख झेले हो दीन।।

    कवच पिता होते सदा,रक्षित हों संतान।
    होती हैं पर बेटियाँ, सदा जनक की आन।।

    पिता रीढ़ घर द्वार के,पोषित घर के लोग।
    करें कमाई तो बनें,घर में छप्पन भोग।।

    पिता ध्वजा परिवार के, चले पिता का नाम।
    मुखिया हैं करते वही , खेती के सब काम।।

    माता हो ममतामयी,पितु हों पालनहार।
    आज्ञाकारी सुत सुता,सुखी वही घर द्वार।।

    ✍️

    सुश्री गीता उपाध्याय रायगढ़ छत्तीसगढ़

  • तिरंगा (चौपाई छंद)

    तिरंगा (चौपाई छंद)

    छंद
    छंद

    आजादी का पर्व मनालो।
    खूब तिरंगा ध्वज पहरालो।।
    संगत रक्षा बंधन आया।
    भ्रात बहिन जन मन हर्षाया।।१

    राखी बाँधो देश हितैषी।
    संविधान संसद सम्पोषी।।
    राखी बाँध तिरंगा रक्षण।
    राष्ट्र भावना बने विलक्षण।।२

    जन जन का अरमान तिरंगा।
    चाहे बहिन भ्रात हो चंगा।।
    रक्षा सूत्र तिरंगा चाहत।
    धरा बहिन न होवे आहत।।३

    राखी बंधन खूब कलाई।
    मान तिरंगे को निज भाई।।
    भारत का सम्मान तिरंगा।
    अटल हिमालय पावन गंगा।।४

    जन जन का है आज चहेता।
    शान तिरंगे हित जन चेता।
    संगत दोनो पर्व मनाएँ।
    राष्ट्र गान ध्वज सम्मुख गाएँ।।५

    बाँध तिरंगे को अब राखी।
    नभ तक लहरा जैसे पाखी।।
    शर्मा लिखे छंद चौपाई।
    धरा तिरंगा प्रीत मिताई।।६
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    बाबू लाल शर्मा, बौहरा

  • शबरी के बेर(चौपाई छंद)

    शबरी के बेर(चौपाई छंद)

    छंद
    छंद

    त्रेता युग की कहूँ कहानी।
    बात पुरानी नहीं अजानी।।
    शबरी थी इक भील कुमारी।
    शुद्ध हृदय मति शील अचारी।।१

    बड़ी भई तब पितु की सोचा।
    ब्याह बरात रीति अति पोचा।।
    मारहिं जीव जन्तु बलि देंही।
    सबरी जिन प्रति प्रीत सनेही।।२

    गई भाग वह कोमल अंगी।
    वन ऋषि तपे जहाँ मातंगी।।
    ऋषि मातंगी ज्ञानी सागर।
    शबरी रहि ऋषि आयषु पाकर।।३

    मिले राम तोहिं भक्ति प्रवीना।
    यही वरदान ऋषि कह दीना।।
    तब से नित वह राम निहारे।
    प्रतिदिन आश्रम स्वच्छ बुहारे।४

    कब आ जाएँ राम दुवारे।
    फूल माल सब साज सँवारे।।
    राम हेतु प्रतिदिन आहारा।
    लाती फल चुन चखती सारा।।५

    एहि विधि जीवन चलते शबरी।
    कब आए प्रभु राम देहरी।।
    प्रतिदिन जपती प्रीत सुपावन।
    बाट जोहती प्रभु की आवन।।६

    जब रावण हर ली वैदेही।
    रामलखन फिर खोजे तेंही।।
    तापस वेष खोजते फिरते।
    वन मृग पक्षी आश्रम मिलते।।७

    आए राम लखन दोऊ भाई।
    शबरी सुन्दर कुटी छवाई।।
    शबरी देख चकित भई भारी।।
    राम सनेह बात विस्तारी।।८

    छबरी भार बेर ले आती।
    चखे मीठ फिर राम खवाती।।
    अति सनेह भक्ति शबरी के।
    खाए बेर राम बहु नीके।।9

    शबरी प्रेम भक्ति आदर्शी।
    राम सदा भक्तन समदर्शी।।
    भाव प्रेम मय शुद्ध अचारे।
    जाति वर्ग कुल दोष निवारे।।१०
    . __
    बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ

  • मात पिता पूजन दिवस दोहे

    मात पिता पूजन दिवस दोहे

    पिता

    सीमा पर रक्षा करे, अपने वीर जवान।
    मरते मान शहीद से, जीते उज्ज्वल शान।।

    प्रेम दिवस पर है विनय , सुनिये सभी सुजान।
    मात पिता को नेह दें, मन विश्वासी मान।।

    न्यौछावर हैं देश पर , मातृभूमि के पूत।
    त्याग और बलिदान हित, क्षमता लिए अकूत।।

    मातृ शक्ति को कर नमन, नारी का सम्मान।
    सृष्टि संतुलन संचरण, रखें आन अरु शान।।

    मात जन्म देती हमें, पाल पोष संस्कार।
    लेना नित आशीष तुम, करना सच सत्कार।।

    मात पिता गुरुदेव के, ईश धरा अरु देश।
    हम कृतज्ञ इनके रहें, सद्भावी परिवेश।।

    माने तो पितृ देव हैं, दे जीवन पर्यन्त।
    कविजन लिखते हारते, महिमा अमित अनंत।।

    मात लगाती वाटिका , रक्षक पिता सुजान।
    मात पिता का श्रम सखे, फल भोगे संतान।।

    मात पिता पूजन दिवस, आज मने त्यौहार।
    दो प्रसून सप्रेम तुम, उत्तम मृदु आहार।।

    मात पिता के बोल शुभ, अनुभव है अनमोल।
    मान सदा उनका करें, मधुर बोल रस घोल।।
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    © बाबू लाल शर्मा बौहरा, विज्ञ