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  • कर्तव्य-बोध-रामनरेश त्रिपाठी

    कर्तव्य-बोध -रामनरेश त्रिपाठी

    kavita


    जिस पर गिरकर उदर-दरी से तुमने जन्म लिया है।
    जिसका खाकर अन्न सुधा सम नीर समीर पिया है।

    जिस पर खड़े हुए, खेले, घर बना बसे, सुख पाए।
    जिसका रूप विलोक तुम्हारे दृग, मन, प्राण जुड़ाए॥


    वह स्नेह की मूर्ति दयामयि माता तुल्य मही है।
    उसके प्रति कर्त्तव्य तुम्हारा क्या कुछ शेष नहीं है।
    हाथ पकड़कर प्रथम जिन्होंने चलना तुम्हें सिखाया।
    भाषा सिखा हृदय का अद्भुत रूप स्वरूप दिखाया।


    जिनकी कठिन कमाई का फल खाकर बड़े हुए हो।
    दीर्घ देह ले बाधाओं में निर्भय खड़े हुए हो।
    जिसके पैदा किए, बुने वस्त्रों से देह ढके हो।
    आतप, वर्षा, शीत काल में पीड़ित हो न सके हो।


    क्या उनका उपकार भार तुम पर लव लेश नहीं है?
    उनके प्रति कर्त्तव्य तुम्हारा क्या कुछ शेष नहीं है?
    सतत ज्वलित दुख दावानल में जग के दारुण दुख में।
    छोड़ उन्हें कायर बनकर तुम भाग बसे निर्जन में।


    आवश्यकता की पुकार को श्रुति ने श्रवण किया है?
    कहो करों ने आगे बढ़ किसको साहाय्य दिया है?
    आर्तनाद तक कभी पदों ने क्या तुमको पहुँचाया?
    क्या नैराश्य निमग्न जनों को तुमने कण्ठ लगाया?


    कभी उदर ने भूखे जन को प्रस्तुत भोजन पानी
    देकर मुदित भूख के सुख की क्या महिमा है जानी?
    मार्ग पतित असहाय किसी मानव का भार उठाके
    पीठ पवित्र हुई क्या सुख से उसे सदन पहुँचा के?

    मस्तक ऊँचा हुआ तुम्हारा कभी जाति गौरव से?
    अगर नहीं तो देह तुम्हारी तुच्छ अधम है शव से॥
    भीतर भरा अनन्त विभव है उसकी कर अवहेला।
    बाहर सुख के लिए अपरिमित तुमने संकट झेला॥


    यदि तुम अपनी अमित शक्ति को समझ काम में लाते।
    अनुपम चमत्कार अपना तुम देख परम सुख पाते॥
    यदि उद्दीप्त हृदय में सच्चे सुख की हो अभिलाषा।
    वन में नहीं, जगत में जाकर करो प्राप्ति की आशा॥


    रामनरेश त्रिपाठी

  • प्यार से दुश्मनी को मिटा दंगे हम-अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    प्यार से दुश्मनी को मिटा दंगे हम -अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    प्यार की खुशबू से सारे जहां को नहला दंगे हम
    फिर कोई कह नहीं सकेगा
    वो ओसामा है वो सद्दाम है
    हर तरफ नानक, कबीर, गौतम की वाणी
    गुंजा दंगे हम
    कौन कहता है कि
    अजान सुनाई नहीं देती
    घर घर में कुरान
    खिला दंगे हम
    लगने लगेंगे हर जगह
    धर्म के मेले
    सारे जहां को
    धर्मगाह बना दंगे हम
    एकता हर मोड़ पर हर जगह
    दिखाई देगी तुमको
    लोगों को एकता के सूत्र में
    पिरो दंगे हम
    भारत वतन है एकता की
    खुशबू का
    सारे जहां को
    इसका हिस्सा बना दंगे हम
    कि किस्सा –ऐ – जन्नत सुना होगा सबने
    कि हर गली हर कूचे को
    जन्नत बना दंगे हम
    कि धरती है प्रकृति का
    नायाब तोहफा
    चारों और हरियाली
    बिछा दंगे हम
    पालते हैं हम
    अपने दिल में
    जज्बा ऐ वतन
    कि भारत माँ के लाल बनकर
    दिखा दंगे हम
    कि हर गली हर कूचे को
    आतंकवाद से बचा कर रखना
    कूद पड़े जो मैदान में तो
    देश के लिए सर कटा दंगे हम
    वतन पर मिटने की
    तमन्ना रही सदियों से
    कि हर एक बूँद कतरा बन
    देश पर लुटा दंगे हम
    मुझे प्यारा है मेरा वतन
    मुझे प्यारा है मेरा चमन
    इस देश पर अपना सर्वस्व
    लुटा दंगे हम
    इस देश पर अपना सर्वस्व
    लुटा दंगे हम
    इस देश पर अपना सर्वस्व
    लुटा दंगे हम

  • भारत है आने वाले कल का आगाज़ – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    भारत है आने वाले कल का आगाज़ – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    tiranga

    भारत है आने वाले कल का आगाज़
    जिसके सर पर होगा
    भविष्य की दुनिया का ताज
    पलती है जहां संगीत की संस्कृति
    घुंघरुओं की आवाज़ पर
    जहां मूक भी मधुर वाणी में
    गाते हैं आलाप सुनकर
    कथा यहाँ की निराली है
    हर छटा यहाँ की निराली है
    संस्कारों की पुण्य भूमि यह
    दुनिया की शान मात्रभूमि यह
    भारत का अर्थ इसके सत्य में है
    जीता है भारत
    हर भारतीय के कर्म में
    सुदामा – कृष्ण की दोस्ती के
    किस्से यहाँ पलते हैं
    राम – हनुमान की भक्ति के
    सत्य यहाँ खिलते हैं
    गौतम – नानक की पुण्यभूमि यह
    यहाँ गली – गली में आलाप इनके सुनते हैं
    पावन जिसकी नदियों के घाट हैं
    बुलाते हम सबको मंदिर – मस्जिद के द्वार हैं
    त्योहारों की छटा की बात मत पूछो यारों
    यहाँ राम और रहीम खाते एक थाल हैं
    मुस्कुराती यहाँ चारों ओर हरियाली है
    अपनी ओर खींचती यहाँ हर धर्म की डाली है
    पवित्रता इस धरा की निराली है
    पूजे जाते साधु- संत और यहाँ पीर हैं
    पत्थर भी पूजे जाते यहाँ
    धर्मपूर्ण धरा यह विश्व में निराली है
    भारत है आने वाले कल का आगाज़
    जिसके सर पर होगा भविष्य की दुनिया का ताज

  • कर्म कर ले प्यारे – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    कर्म कर ले प्यारे – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

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    पाप पुण्य के चक्कर में
    मत पड़ प्यारे
    कर्म कर कर्म कर
    कर्म कर ले प्यारे
    परिणाम की चिंता में
    नींद हराम मत कर प्यारे
    कर्म कर कर्म कर
    कर्म कर ले प्यारे


    जीवन बहती
    धारा का नाम है
    हो सके तो जीवन में
    कुछ अच्छे काम कर ले प्यारे
    कर्म कर कर्म कर
    कर्म कर ले प्यारे


    आत्मा पवित्र कर
    परमात्मा में
    लीन हो प्यारे
    कर्म कर कर्म कर
    कर्म कर ले प्यारे
    सद्चरित्र धरती पर
    जीवता हर मुकाम है
    कर्म कर कर्म कर
    कर्म कर ले प्यारे


    निराशा के झूले में
    झूलना मत प्यारे
    कर्म कर कर्म कर
    कर्म कर ले प्यारे
    योग का आचमन कर
    आत्मा को पुष्ट कर प्यारे
    कर्म कर कर्म कर
    कर्म कर ले प्यारे


    जीवन बहती नदी है
    विश्राम ना कर प्यारे
    कर्म कर कर्म कर
    कर्म कर ले प्यारे
    मन है चंचल पर
    आत्मा पर अपनी
    अंकुश लगा प्यारे
    कर्म कर कर्म कर
    कर्म कर ले प्यारे


    जीना है धरा पर तो
    पुन्यमूर्ती बन कर जी प्यारे
    कर्म कर कर्म कर
    कर्म कर ले प्यारे
    सत्कर्म पूजनीय परमात्मा
    दर्शन देत प्यारे
    कर्म कर कर्म कर
    कर्म कर ले प्यारे


    जीवन लगाम कस
    अल्लाह को सलाम कर प्यारे
    कर्म कर कर्म कर
    कर्म कर ले प्यारे
    बंधनों के मोह में
    तू ना पड़ प्यारे
    कर्म कर कर्म कर
    कर्म कर ले प्यारे


    शांत स्वभाव
    मृदु वचन बोल प्यारे
    कर्म कर कर्म कर
    कर्म कर ले प्यारे
    निर्बाध तू बढ़ा चल
    भक्ति का आँचल पकड़
    जीवन राह विस्तार कर ले प्यारे
    कर्म कर कर्म कर
    कर्म कर ले प्यारे


    साँसों की डोर की मजबूती का
    भरोसा नहीं है
    उड़ सके तो सद्ज्ञान के
    आसमान में उड़ प्यारे
    कर्म कर कर्म कर
    कर्म कर ले प्यारे
    अधर्म की राह छोड़
    धर्म पथ से नाता जोड़
    किस्मत संवार ले
    कर्म कर कर्म कर
    कर्म कर ले प्यारे


    छूना है आसमान
    पाना है उस पुण्यमूर्ति
    परम परमात्मा को
    जीवन को अपने
    कर्म पथ पर निढाल
    कर ले प्यारे
    कर्म कर कर्म कर
    कर्म कर ले प्यारे

  • हिंदी संग्रह कविता-बलि पथ का इतिहास बनेगा

    बलि पथ का इतिहास बनेगा

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह


    बलि पथ का इतिहास बनेगा
    मर कर जो नक्षत्र हुए हैं उनसे ही आकाश बनेगा।


    सह न सकें जो भीषणता को, सर पर बाँध कफन निकले थे,
    देख उन्हें मुस्करा कर जाते, पत्थर भी मानों पिघले थे।
    इस उत्सर्गमयी स्मिति से ही माँ का मधुर सुहास बनेगा।


    कायरता ने शीश झुका जब, हार अरे अपनी थी मानी।
    तरूणाई ने अपने बल से, लिख दी थी रंगीन कहानी।
    उनके लाल रक्त से ही, सिन्दूर का उल्लास बनेगा।


    खून सींच कर फूल खिलाये, झुके शीश थे बलिदानों को।
    और अमरता मिली सहज ही, बलिपथ के उन दीवानों को।
    उनके बलिदानों से जग में आज नया इतिहास बनेगा।