परिवार (family) साधारणतया पति, पत्नी और बच्चों के समूह को कहते हैं, किंतु दुनिया के अधिकांश भागों में वह सम्मिलित वासवाले रक्त संबंधियों का समूह है जिसमें विवाह और दत्तक प्रथा स्वीकृत व्यक्ति भी सम्मिलित हैं।
रिश्तों का ख़ून – 15 मई विश्व परिवार दिवस
ख़ून के रिश्ते सम्भालो यारों, रिश्तों का ना ख़ून करो। आप सम्पन्न हो गये हो तो, उनका दु:ख मालूम करो। शायद हीन भावना हो उनमें, या आपसे कतराते हों। या सीधेपन का फायदा उठा उन्हें कोई भड़काते हों।
ख़ून के रिश्ते अपने होते, वो रिश्तेदार तुम्हारा है। ईर्श्या, नफ़रत मत पालो, ख़ून आखिर तुम्हारा है। भाई हो आर्थिक कमजोर, हाथ उसका थाम लो। तुम अगर सक्षम हो तो, ईश्वर की मर्जी मान लो।
माना कुछ गलतफहमियां, आपस में हो ही जाती हैं। दु:ख तकलीफ़ में आख़िर याद आप ही की आती है। अपनों के होते अपने दूसरों के आगे हाथ फैलाते है । तो अपने साथ आपकी भी इज्जत पे बट्टा लगाते है।
अनाथालयों में दान करो और अपना भूखा सोता है। बहन तंगहाल जीवन जीती, उसका परिवार रोता है। संस्थाओं में धन दान करो, भाभी के घर ना आटा है। ईश्वर क्या तुमसे खुश होगा, वही तो सबका दाता है।
ख़ून के रिश्तों की मदद करो, यही फर्ज तुम्हारा है। उनसे ईर्श्या द्वेश, भाव करो तो पतन भी तुम्हारा है। रिश्तों का ख़ून मत करो, रिश्तों से पहचान होती है। गले लगाकर देखो तो, रिश्तों में अपनायत होती है।
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अब तक प्रकाशित रचनाएँ ( लोकप्रियता के आधार पर )
विश्व परिवार दिवस 15 मई को मनाया जाता है। प्राणी जगत में परिवार सबसे छोटी इकाई है या फिर इस समाज में भी परिवार सबसे छोटी इकाई है। यह सामाजिक संगठन की मौलिक इकाई है। परिवार के अभाव में मानव समाज के संचालन की कल्पना भी दुष्कर है। प्रत्येक व्यक्ति किसी न किसी परिवार का सदस्य रहा है या फिर है। उससे अलग होकर उसके अस्तित्व को सोचा नहीं जा सकता है।
हमारी संस्कृति और सभ्यता कितने ही परिवर्तनों को स्वीकार करके अपने को परिष्कृत कर ले, लेकिन परिवार संस्था के अस्तित्व पर कोई भी आंच नहीं आई। वह बने और बन कर भले टूटे हों लेकिन उनके अस्तित्व को नकारा नहीं जा सकता है। उसके स्वरूप में परिवर्तन आया और उसके मूल्यों में परिवर्तन हुआ लेकिन उसके अस्तित्व पर प्रश्नचिह्न नहीं लगाया जा सकता है।
परिवार का स्वरूप
परिवार व्यक्तियों का वह समूह होता है, जो विवाह और रक्त सम्बन्धों से जुड़ा होता है जिसमें बच्चों का पालन पोषण होता है । परिवार एक स्थायी और सार्वभौमिक संस्था है। किन्तु इसका स्वरूप अलग अलग स्थानों पर भिन्न हो सकता है ।
पश्चिमी देशों में अधिकांश नाभिकीय परिवार पाये जाते हैं । नाभिकीय परिवार वे परिवार होते हैं जिनमें माता-पिता और उनके बच्चे रहते हैं । इन्हें एकाकी परिवार भी कहते हैं। जबकि भारत जैसे देश में सयुंक्त और विस्तृत परिवार की प्रधानता होती है । संयुक्त परिवार वह परिवार है जिसमें माता पिता और बच्चों के साथ दादा दादी भी रहतें हैं । यदि इनके साथ चाचा चाची ताऊ या अन्य सदस्य भी रहते हैं तो इसे विस्तृत परिवार कहते हैं । वर्तमान में ऐसे परिवार बहुत कम देखने को मिलते हैं । व्यापरी वर्ग में विस्तृत परिवार अभी भी मिलते हैं । क्योंकि उन्हें व्यापार के लिये मानव शक्ति की आवश्यकता होती है ।परिवार के बिना समाज की कल्पना नहीं की जा सकती ।
व्यक्ति के जीवन में परिवार की भूमिका
एक बच्चे के रूप में हमें जन्म देने के बाद परिवार में उपस्थित माता-पिता हमारा पालन पोषण करते हैं। ब्रश करने तथा जूते का फीता बाँधने से लेकर पढ़ा-लिखा कर समाज का एक शिक्षित वयस्क बनाते हैं। भाई-बहन के रूप में घर में ही हमें दोस्त मिल जाते हैं, जिनसे अकारण हमारी अनेक लड़ाई होती है। भावनात्मक सहारा और सुरक्षा भाई-बहन से बेहतर और कोई नहीं दे सकता है। घर के बड़े-बुजुर्ग के रूप में दादा-दादी, नाना-नानी बच्चे पर सर्वाधिक प्रेम न्यौछावर करते हैं।
कटु है पर सत्य है, व्यक्ति पर परिवार का साया न होने पर व्यक्ति अनाथ कहलाता है। इसलिए समृद्ध या गरीब परिवार का होना आवश्यक नहीं पर व्यक्ति के जीवन में परिवार का होना अतिआवश्यक है।
परिवार और हमारे मध्य दूरी के कारण
परिवार की अपेक्षाएं – हमारे किशोरावस्था में पहुंचने पर जहां हमें लगने लगता है हम बड़े हो गए हैं वहीं परिवार की कुछ अपेक्षाएं भी हम से जुड़ जाती हैं। ज़रूरी नहीं हम उन अपेक्षाओं पर खरे उतर पाए अंततः रिस्तों में खटास आ जाती है।
हमारा बदलता स्वरूप – किशोरावस्था में पहुंचने पर बाहरी दुनिया के प्रभाव में आकर हम स्वयं में अनेक परिवर्तन करना चाहते हैं, जैसे की अनेक दोस्त बनाना, प्रचलन में चल रहे कपड़े पहनना, परिस्थिति को अपने तरीके से हल करना आदि। इस सब तथ्यों पर हमारा परिवार हमारे साथ सख्ती से पेश आता है ऐसे में हमारी न समझी के कारण कई बार रिस्तों में दरार आ जाते हैं। यहां एक दूसरे को समझने की ज़रूरत है।
विचारधारा में असमानता – अलग पीढ़ी से संबंधित होने के वजह से हमारे विचार और हमारे परिवार जनों के विचारधारा में बहुत अधिक असमानता होती है। जिसके वजह से परिवार में क्लेश हो सकता है।
परिवार महत्वपूर्ण क्यों है?
व्यक्ति के व्यक्तित्व का पूर्ण निर्माण परिवार द्वारा होता है इसलिए सदैव समाज व्यक्ति के आचरण को देखकर उसके परिवार की प्रशंसा या अवहेलना करता है।
व्यक्ति के गुणों में जन्म से पूर्व ही उसके परिवार के कुछ अनुवांशिक गुण उसमें विद्यमान रहते हैं।
व्यक्ति की हर परेशानी (आर्थिक, समाजिक, निजी) परिवार के सहयोग से आसानी से हल हो सकती है।
मतलबी दुनिया में जहां किसी का कोई नहीं होता वहां हम परिवार के सदस्यों पर आख बंद कर के विश्वास कर सकते हैं।
परिवार व्यक्ति को मजबूत रूप से भावनात्मक सहारा प्रदान करता है।
जीवन में सब कुछ प्राप्त कर पाने की काबिलियत हमें, परिवार द्वारा प्रदान की जाती है।
परिवार के सही मार्ग दर्शन से व्यक्ति सफलता के उच्च शिखर को प्राप्त करता है इसके विपरीत गलत मार्ग दर्शन में व्यक्ति अपने पथ से भटक जाता है।
हमारे जीत पर हमारी सराहना तथा हार पर संतावना परिवार से मिलने पर हमारा आत्मविश्वास बढ़ जाता है। यह हमारे भविष्य के लिए कारगर साबित होता है।
परिवार के प्रति हमारा दायित्व
परिवार से प्राप्त प्यार और हमारे प्रति उनका निस्वार्थ समर्पण हमें उनका सदैव के लिए ऋणी बनाता है। अतः हमारा, हमारे परिवार के प्रति भी विशेष कर्तव्य बनता है।
बच्चों को सदैव अपने से बड़ों की आज्ञा का पालन करना चाहिए और स्वयं की बात समझाने का प्रयास करना चाहिए। किसी बात के लिए हठ करना उचित नहीं।
परिवार के इच्छाओं और अपेक्षाओं पर सदैव खरा उतरने का प्रयास करना चाहिए।
बच्चों और परिवार के मध्य कितना भी अनबन हो बच्चों को परिवार से दूर कभी नहीं होना चाहिए।
जिस बातों पर परिवार सहमत नहीं हैं, उन बातों पर पुनः विचार करना चाहिए और स्वयं समझने का प्रयास करना चाहिए।
निष्कर्ष
समाज में हमारे पिता के नाम के साथ हमें पहचान दिलाने से लेकर हमारे पिता को हमारे नाम से जानने तक, परिवार हमें हर प्रकार से सहयोग प्रदान करता है। परिवार के अभाव में हमारा कोई अस्तित्व नहीं है अतः हमें परिवार के महत्व को समझने की चेष्टा करनी चाहिए।
अटल चुनौती अखिल विश्व को भला-बुरा चाहे जो माने। डटे हुए हैं राष्ट्रधर्म पर, विपदाओं में सीना ताने ।
लाख-लाख पीढ़ियाँ लगीं, तब हमने यह संस्कृति उपजाई। कोटि-कोटि सिर चढ़े तभी इसकी रक्षा सम्भव हो पाई॥ हैं असंख्य तैयार स्वयं मिट इसका जीवन अमर बनाने। डटे हुए हैं राष्ट्रधर्म पर, विपदाओं में सीना ताने ।
देवों की है स्फूर्ति हृदय में, आदरयुत पुरखों का चिन्तन। परम्परा अनुपम वीरों की, चरम साधकों के चिर साधन॥ पीड़ित शोषित दुखित बान्धवों के, हमको हैं कष्ट मिटाने। डटे हुए हैं राष्ट्रधर्म पर, विपदाओं में सीना ताने।
हमी विधाता नयी सृष्टि के, सीधी सच्ची स्पष्ट कहानी। प्रेम कवच है, त्याग अस्त्र है, लगन धार आहुति है वाणी॥ सभी सुखी हों, यही स्वप्न है, मरकर भी यह सत्य बनाने डटे हुए हैं राष्ट्रधर्म पर, विपदाओं में सीना ताने ॥
नहीं विरोधक रोक सकेंगे, निन्दक होवेंगे अनुगामी। जन-जन इसकी वृद्धि करेगा, इसकी गति न थमेगी थामे॥ जुटे हुए हैं इसीलिए हम राष्ट्रधर्म को अमर बनाने । डटे…
धीरज रखने वालों की हार नहीं होती। लहरों से डरकर नौका पार नहीं होती। एक नन्हींसी चींटी जब दाना लेकर चलती है।।
चढ़ती दीवारों पर सौ बार फिसलती है। चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना न अखरता है। आखिर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती। धीरज रखने
डुबकियाँ सिन्धु में गोताखोर लगाते हैं। जो जाकर खाली हाथ लौट फिर आते हैं। मिलते न सहज ही मोती गहरे पानी में। बढ़ता दूना उत्साह इसी हैरानी में। खाली उसकी मुट्ठी हर बार नहीं होती। धीरज…
असफलता एक चुनौती है स्वीकार करो। क्या कमी रह गई, देखो और सुधार करो॥ जब तक न जीत हो, नींद, चैन को त्यागो तुम, संघर्षों का मैदान छोड़ मत भागो तुम, कुछ किये बिना ही जय साकार नहीं होती। धीरज रखने वालों की हार नहीं होती।
जंगल की आग देखकर सिहर उठता हू मैं सोचता हूँ उस सूक्ष्म जीव का क्या हुआ होगा जो अभी- अभी किसी अंडे से बाहर आया होगा आँखें अभी उसकी खुली भी नहीं तन पर जिसके अभी ऊर्जा आई ही नहीं
जंगल की आग देखकर सिहर उठता हू मैं।
शेर के उस छोटे से बच्चे का अंत कितना भयावह रहा होगा अभी तो उसने अपनी माँ के दूध का आचमन भी न किया होगा वह अपने भाई बहनों के साथ खेल भी ना सका कि मौत के खेल ने अपना रंग दिखा दिया
जंगल की आग देखकर सिहर उठता हू मैं।
उन छोटी – छोटी चीटियों की भी बात करें हम टिक-टिक कर रेंगती यहाँ से वहाँ क्या हुआ होगा इनका अंडे इनके अपने बच्चों को इस धरती पर बाहर भी न ला पाए होंगे कि जंगल की आग ने इन्हें अपनी आगोश में ले लिया होगा
जंगल की आग देखकर सिहर उठता हू मैं।
बात हम उनकी भी करें जंगल जिनका जीवन स्थल है वे झोपड़ी बना जंगल पर आश्रित रहते हैं रोज का भोजन रोज एकत्रित करने वाले ये जीव ये प्राणी क्या इन्हें बाहर भागकर आने का मौक़ा मिला होगा या चारों और फैलती भयावह आग ने इन्हें निगल लिया होगा
जंगल की आग देखकर सिहर उठता हू मैं।
ये जंगल की आग केवल जंगल की आग ही नहीं वरन समाज में फ़ैली कुरीतियों की ओर भी संकेत देती हैं दंगा , आतंकवाद भी समाज में जंगल की आग की तरह सब कुछ नष्ट कर मानव जीवन को बेहाल करती है क्षेत्रीयतावाद, जातिवाद, धर्मवाद आज भी जंगल में आग की तरह हमारा पीछा नहीं छोड़ रहे ये आग देखकर सिहर उठता हूँ मैं इस आग में जलते मानव को, झुलसते मानव को देख रो पड़ता हूँ मैं रो पड़ता हूँ मैं
जंगल की आग देखकर सिहर उठता हू मैं। जंगल की आग देखकर सिहर उठता हू मैं।