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  • कहाँ बचे हैं गाँव

    कहाँ बचे हैं गाँव

    कहाँ बचे हैं गाँव

    जब से बौने वृक्ष हुए हैं, बौनी हो गयी छाँव |

    शहरी दखल हुआ जबसे, कहाँ बचे हैं गाँव ?

    कहाँ बचे हैं गाँव

    पट गए सारे ताल-तलैया,

    नहरों को भी पाट दिया,

    आस-पास जितने जंगल थे,

    उनको हमने काट दिया,

    थका पथिक को राह में,

    मिला नहीं ठहराव |

    जब से बौने वृक्ष हुए हैं, बौनी हो गयी छाँव |

    पगडंडी पर चलना छोड़ा,

    हम बाइक पे चलते हैं,

    हुए रिटायर बैल हमारे,

    ट्रैक्टर से काम निकलते हैं,

    हुआ मशीनी जीवन अपना,

    ये कैसा बदलाव ?

    जब से बौने वृक्ष हुए हैं, बौनी हो गयी छाँव |

    • उमा विश्वकर्मा, कानपुर, उत्तरप्रदेश
  • थके हुए हैं पाँव दूर बहुत है गाँव

    थके हुए हैं पाँव दूर बहुत है गाँव

    थके हुए हैं पाँव दूर बहुत है गाँव

    थके हुए हैं पाँव दूर बहुत है गाँव

    थके हुए हैं पाँव, दूर बहुत है गाँव,

    लेकिन हमको चलना होगा |

    ढूंढ रहे हम ठाँव, लगी जिंदगी दाँव,

    ठोकर लगे, संभलना होगा |

    कर्मभूमि को अपना समझा,

    जन्मभूमि को छोड़ दिया |

    वक़्त पड़ा तो दोनों ने,

    हमसे रिश्ता तोड़ लिया |

    यहाँ मिली ना वहाँ मिली,

    बुरे वक़्त में छाँव |

    दूर बहुत है गाँव……………

    ना गाडी, न कोई रेल,

    पैदल हमको चलना होगा |

    अजब जिंदगी के हैं खेल,

    आज नहीं, तो कल क्या होगा ?

    खेल-खेल में हम सबका,

    उलट गया है दाँव |

    दूर बहुत है गाँव……………

    – उमा विश्वकर्मा, कानपुर, उत्तरप्रदेश

  • चटक लाल रोली कपाल

    चटक लाल रोली कपाल

    चटक लाल रोली कपाल

    morning

    चटक लाल रोली कपाल,

    मस्तक पर अक्षत लगा हुआ,

    मुखमंडल पर आभा ऐसी,

    दिनकर जैसे नभ सजा हुआ |

    ये अरुणोदय का है प्रकाश,

    या युवा ह्रदय की प्रबल आस,

    सुर्ख सुशोभित मस्तक पर,

    प्रस्फुटित हुआ जैसे उजास |

    अक्षत रमणीय छवि बिखेरे,

    माणिक को ज्यो कुंदन घेरे,

    लगा लाल के भाल दमकने,

    चला प्रभात करन पग-फेरे |

    विस्मयकारी छटा मनोहर,

    अलौकिक हैं दिव्य रूप धर,

    सुधा कलश से छलकी ऐसे,

    तरल तरंगों में गुंजित स्वर |

    उमा विश्वकर्मा, कानपुर, उत्तरप्रदेश

  • खिली गुनगुनी धूप

    खिली गुनगुनी धूप

    खिली गुनगुनी धूप

    morning

    खिली गुनगुनी धूप, खिल गई अलसाई सी धरती |

    है निसर्ग की माया ये, ऋतुओं ने सृष्टि भर दी |

    लगे चहकने सभी पखेरू, भरने लगे उड़ान,

    लगे महकने सभी प्रसून, महकी हर मुस्कान,

    तितली के पंखों ने दुनिया,

    रंग-बिरंगी कर दी |

    खिली गुनगुनी धूप, खिल गई अलसाई सी धरती |

    पतझर का मौसम बीता, आया अब मधुमास

    कलियों ने आँखें खोली, मधुप की जागी प्यास

    छत की सभी मुंडेरों पर आकर,

    अठखेली सी करती |

    खिली गुनगुनी धूप, खिल गई अलसाई सी धरती |

    मैंने भी अंजुरी में भर ली, आज गुनगुनी धूप,

    आस-पास का सब अँधियारा, डाल दिया है कूप,

    मन वीणा के तारों में,

    इक झंकार सी भरती |

    खिली गुनगुनी धूप, खिल गई अलसाई सी धरती |

    उमा विश्वकर्मा , कानपुर, उत्तरप्रदेश

  • वीणा वादिनी नमन आपको प्रणाम है

    वीणा वादिनी नमन आपको प्रणाम है

    माघ शुक्ल बसंत पंचमी Magha Shukla Basant Panchami
    माघ शुक्ल बसंत पंचमी Magha Shukla Basant Panchami

    शब्द-शब्द दीप की, अखंड जोत आरती |

    प्रकाश पुंज से प्रकाशवान होती भारती |

    खंड-खंड में प्रचंड, दीप्ति विघमान है |

    वीणा वादिनी नमन, आपको प्रणाम है |

    साधकों की साधना में,

    एकता के स्वर सजे,

    आपकी आराधना में,

    साज संग मृदंग बजे |

    कोटि-कोटि वंदनाएं, आपके ही नाम हैं |

    वीणावादिनी नमन, आपको प्रणाम है |

    नेक काज कर सके,

    हमको ऐसी बुद्धि दो,

    छल कपट से हो परे,

    आत्मा में शुद्धि दो |

    सत्य की डगर में माना, मुश्किलें तमाम हैं |

    वीणावादिनी नमन, आपको प्रणाम है |

    बुराइयों से हों परे,

    नेकियों का साथ हो,

    मेरे शीश पर सदा,

    आपका ही हाथ हो |

    भोर थी विभोर सी, अब सुहानी शाम है |

    वीणावादिनी नमन, आपको प्रणाम है |

    सद्भाव की डगर चलें,

    समग्रता सुलभ मिले,

    रहे ज़मीन पर क़दम,

    चाहें सारा नभ मिले |

    उपासना में आपकी, सत्य का ही नाम है |

    वीणावादिनी नमन, आपको प्रणाम है |
    उमा विश्वकर्मा, कानपुर, उत्तरप्रदेश