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  • वाणी वंदना : माँ वाणी अभिनंदन तेरा

    वाणी वंदना : माँ वाणी अभिनंदन तेरा

    माँ वाणी, अभिनंदन तेरा,

    करती हिय से, वंदन तेरा,

    दिव्य रूप आँखों में भर लूं,

    तन हो जाये चंदन मेरा |

    माँ वाणी, अभिनंदन तेरा | 

    जीवन अपना, अनुशासित हो,

    परिलक्षित हो, परिभाषित हो,

    इस पर न हो, तम का डेरा |

    माँ वाणी, अभिनंदन तेरा | 

    हम पर माँ, उपकार करो तुम,

    द्वेष मिटा दो, प्रीति भरो तुम,

    बाल सुलभ सा, हो मन मेरा |

    माँ वाणी, अभिनंदन तेरा | 

    पाप, प्रपंच से, दूर रहूँ मै,

    निर्मलता हो, सरल बहूं मैं,

    हो इतना जीवन धन मेरा |

    माँ वाणी, अभिनंदन तेरा | 

    सत्य शाश्वत, सदा रहेगा,

    आने वाला, समय कहेगा,

    सत्य-कर्म हो, जीवन मेरा |

    माँ वाणी, अभिनंदन तेरा |
    _ उमा विश्वकर्मा ,कानपुर, उत्तरप्रदेश

  • जय गणपति जय पार्वती सुत- गणेश स्तुति

    गणपति को विघ्ननाशक, बुद्धिदाता माना जाता है। कोई भी कार्य ठीक ढंग से सम्पन्न करने के लिए उसके प्रारम्भ में गणपति का पूजन किया जाता है।

    भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी का दिन “गणेश चतुर्थी” के नाम से जाना जाता हैं। इसे “विनायक चतुर्थी” भी कहते हैं । महाराष्ट्र में यह उत्सव सर्वाधिक लोक प्रिय हैं। घर-घर में लोग गणपति की मूर्ति लाकर उसकी पूजा करते हैं।

    जय गणपति जय पार्वती सुत- गणेश स्तुति

    जय गणपति, जय पार्वती सुत,

    गजमुख वंदन, अभिनंदन |

    शिव के नंदन, गणनायक,

    एकदंत, मस्तक चंदन |

    जय गणपति, जय पार्वती सुत

    गजमुख वंदन, अभिनंदन |

    भूपति, भुवनपति, प्रथमेश्वर

    वरदविनायक, बुद्धिप्रिय,

    बुद्धिविधाता, सिद्धिदाता

    विघ्नेश्वर तुम, सिद्धिप्रिय |

    सकल जगत में गूँज रहा है,

    आपका ही महिमा मंडन |

    जय गणपति, जय पार्वती सुत

    गजमुख वंदन, अभिनंदन |

    वक्रतुण्ड, कीर्ति, गणाध्यक्ष

    महागणपति, एकाक्षर,

    एकदंत, मूषकवाहन,

    नादप्रतिष्ठित, लंबोदर |

    पीताम्बर पट देह पे सोहे,

    मंगलमूर्ति करें मंगल |

    जय गणपति, जय पार्वती सुत

    गजमुख वंदन, अभिनंदन |

    • उमा विश्वकर्मा , कानपुर, उत्तरप्रदेश
  • ऋतुराज बसंत- शची श्रीवास्तव

    ऋतुराज बसंत- शची श्रीवास्तव


    पग धरे धीर मंथर गति से
    ये प्रकृति सुंदरी मदमाती,
    ऋतुराज में नवयौवन पाकर
    लावण्य रूप पर इतराती।

    ज्यों कोई नवोढ़ा धरे कदम
    दहलीज पर नए यौवन की,
    यूं धीरे धीरे तेज़ होती है
    धूप नए बसंत ऋतु की।

    पीली सरसों करती श्रृंगार
    प्रकृति का यूं बसंत ऋतु में,
    अल्हड़ सी ज्यूं कोई बाला
    सज धज बैठी अपनी रौ में।

    अमराई से महक उठी हैं
    तरुण आम की मंजरियां,
    कैसे कूके मीठी कोयल
    बिखराती संगीत लहरियां।

    भौरे ने छेड़ा मधुर गीत
    सुना जब आया है मधुमास,
    पुहुप सब रहे झूम हो मस्त
    छेड़ प्रेम का अमिट रास।

    प्रेयसी मगन मन में बसंत
    छाए मधु रस ज्यों रग रग पर,
    अभिसार की चाह जगाए रुत
    ऐसे में करो न गमन प्रियवर।।

    ऋतुराज बसंत- शची श्रीवास्तव

  • लौट आओ बसंत

    लौट आओ बसंत


    न खिले फूल न मंडराई तितलियाँ
    न बौराए आम न मंडराए भौंरे
    न दिखे सरसों पर पीले फूल
    आख़िर बसंत आया कब..?

    पूछने पर कहते हैं–
    आकर चला गया बसंत !
    मेरे मन में रह जाते हैं कुछ सवाल
    कब आया और कब चला गया बसंत ?
    कितने दिन तक रहा बसंत ?
    दिखने में कैसा था वह बसंत ?

    कोई उल्लास में दिखे नहीं
    कोई उमंग में झूमे नहीं
    न प्रेम पगी रातें हुई
    न कोई बहकी बहकी बातें हुई

    मस्ती और मादकता सब भूल गए
    न जाने कितने होश वाले और समझदार हो गए

    अरे छोड़ो भी इतनी समझदारी ठीक नहीं
    कहीं सूख न जाए हमारी संवेदनाओं की धरती

    प्रेम से मिले हम खिले हम महके हम
    मुरझाए से जीवन में फिर से बसंत उतारे हम ।

    नरेंद्र कुमार कुलमित्र
    9755852479

  • राम नाम ही सत्य रहेगा / उपमेंद्र सक्सेना एड०

    राम नाम ही सत्य रहेगा / उपमेंद्र सक्सेना एड०

    राम/श्रीराम/श्रीरामचन्द्ररामायण के अनुसार,रानी कौशल्या के सबसे बड़े पुत्र, सीता के पति व लक्ष्मणभरत तथा शत्रुघ्न के भ्राता थे। हनुमान उनके परम भक्त है। लंका के राजा रावण का वध उन्होंने ही किया था। उनकी प्रतिष्ठा मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में है क्योंकि उन्होंने मर्यादा के पालन के लिए राज्य, मित्र, माता-पिता तक का त्याग किया।

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    राम नाम ही सत्य रहेगा / उपमेंद्र सक्सेना एड०

    वर्ष पाॅंच सौ गुजरे रोकर, अब हमको आराम मिला।
    इतने पापड़ बेले तब ही, भव्य राम का धाम मिला।।

    सच्चे राम- भक्त जो होते, नहीं किसी से वे डरते।
    भोले बाबा उनकी सारी, इच्छाएँ पूरी करते।।
    जय बजरंग बली की बोलें, वे कष्टों को हैं हरते।
    जो उनसे नफरत करते हैं, देखे घुट-घुट कर मरते।।

    राम लला आजाद हो गए, सुख अब आठों याम मिला।
    इतने पापड़ बेले तब ही, भव्य राम का धाम मिला।।

    सदा आस्था रही राम में, अब तक थे हम दबे हुए।
    जो बाधा बनकर आए थे, जल- भुन काले तबे हुए।।
    मर्यादाओं के मीठे में, आज पके सब जबे हुए।
    संघर्षों के चने यहाॅं पर, लगते हैं सब चबे हुए।।

    आज अयोध्या नगरी को भी, एक नया आयाम मिला।
    इतने पापड़ बेले तब ही, भव्य राम का धाम मिला।।

    राम -नाम ही सत्य रहेगा, तो हम क्यों उसको छोड़ें।
    ‘सत्यमेव जयते’ से भी हम, कभी न अपना मुॅंह मोड़ें।।
    राम -राज्य भी अब आया है, उससे हम नाता जोड़ें।
    बाधाओं की यहाॅं बेड़ियाॅं, मिलजुल कर हम सब तोड़ें।।

    जिनके सपने भटक रहे थे, उनको एक मुकाम मिला।
    इतने पापड़ बेले तब ही, भव्य राम का धाम मिला।।

    रचनाकार-

    उपमेंद्र सक्सेना एड०
    ‘कुमुद- निवास’
    बरेली (उत्तर प्रदेश)
    मो० नं०- 98379 44187