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  • क्रांति का सागर पर लेख

    क्रांति का सागर पर लेख

    1947, में फिर से तिरंगा लहराया था, हमने फिरंगियों को भारत से मार भगाया था। क्रांति वो सागर जो हर व्यक्ति में बह रहा था। ये उस समय की बात है, जब बच्चा बच्चा आजादी आजादी कह रहा था। मै शीश जूकाता हूं, उनके लिए जिन्होंने शीश कटवाया था, भारत माता के लिए। आजादी की ऐसी होड़ जो हर व्यक्ति में दौड़ रही थी, ये मत भूलो की उन्होंने ही नए भारत की नीम रखी थी। जलियावाले बाघ की तो कहीं सुनी कहानी थी, हजारों बलिदानों की वो एक मात्र बड़ी कहानी थी। क्रांति का वो सागर जो धीरे धीरे बड रहा था, फिरंगियों को क्या पता वो उनके लिए ही उमड़ रहा था।
    Writer-Abhishek Kumar Sharma

  • मित्रों तोड़ो मौन पर कविता

    मित्रों तोड़ो मौन पर कविता

    जब-जब निर्वात-मौन
    सम्प्रेषणहीन होकर
    पड़ा होता है लाचार
    तब-तब
    वाणी का स्वर
    माध्यम बनकर
    जोड़ता है
    दिलों के दो पुलों को

    जब-जब बर्फ़ीला-मौन
    जम जाता है
    माइनस डिग्री पर
    तब-तब
    बर्फ़-सी जमी मौन के कणों को
    अपनी ऊष्मा से
    पिघलाती है
    ध्वनि-मिश्रित साँसों की गर्मी

    जब-जब अपाहिज-मौन
    रुक जाता है-ठहर जाता है
    चलने में होता है असमर्थ
    तब-तब
    शब्दों की बैशाखी
    थामकर मौन की ऊँगली
    पग-पग आगे
    बढ़ाता है ज़बान तक

    मित्रों ! तोड़ो मौन
    हमेशा ज़रूरी होता है
    चट्टानी-मौन को तोड़ने के लिए
    हथौड़े-संवादों का प्रहार।

    — नरेन्द्र कुमार कुलमित्र
    975585247

  • थूकना और चाटना पर कविता

    थूकना और चाटना पर कविता

    उसके मुँह के सारे थूंक
    अब सूख चुके हैं

    ढूंढ-ढूंढकर वह
    पहले थूंके हुए जगहों पर जाकर
    उन थूंको को चाटकर
    फिर से गीला कर रहा है अपना मुँह

    उन्हें अपने किए ग़लती
    का एहसास हो चुका है अब

    बेहद पछतावा है उसे
    कि आखिर बात-बात पर
    क्यूं थूंका करता था ?

    आख़िर उसे ही अब
    अपना ही थूंका हुआ
    चाटना पड़ रहा है

    बड़ी मुसीबत है उसके सामने
    कि कब-कब और कहाँ-कहाँ अपना थूंका हुआ चाटे
    कि कब-कब और कहाँ-कहाँ खुद पर दूसरों को थूंकने से रोके।

    लोग थूकते ही जा रहे हैं
    आज वह थूंको से घिरा हुआ है
    थूंको से भरा हुआ है
    थूंको में डूबा हुआ है

    अब सूख चुके हैं
    उसके मुँह के सारे थूंक
    जो वक्त-बेवक़्त थूंका करता था दूसरों पर।

    — नरेन्द्र कुमार कुलमित्र
    9755852479

  • कितना कुछ बदल गया इन दिनों…

    कितना कुछ बदल गया इन दिनों…

    देशभक्ति कभी इतनी आसान न थी
    सीमा पर लड़ने की जरूरत नहीं
    घर की चार दीवारी सीमा में
    बाहर जाने से ख़ुद को रोके रहना देशभक्ति हो गई

    ऑफिस जाने की जरूरत नहीं
    बिना काम घर में बैठे रहना ही
    आपकी कर्तव्यनिष्ठा,त्याग और समर्पण का प्रमाण हो गया

    मलूकदास जी
    बड़े ही मर्मज्ञ और दूरदर्शी संत थे
    इसी समय के लिए उसने पहले ही कहा था-
    ”सबके दाता राम”
    हे संत कवि हम तो अज़गर भी नहीं हैं
    और पंछी भी नहीं
    आख़िर कब तक दाताराम के भरोसे जिंदा रहेंगे?

    माता-पिता,पत्नी और बच्चों की वर्षों पुरानी
    परिवार को समय न देने की शिकायत दूर हो गई
    न जाने कितने दिनों बाद
    परिवार के साथ गपियाया
    बच्चों के साथ खेला
    पत्नी को छेड़ा
    समझ नहीं आ रहा कि ये अच्छे दिन है या बुरे दिन

    अब तक देख लिया नई और पुरानी उन सारी फ़िल्मों को
    जो समयाभाव के कारण अनदेखी रह गई थी

    अक़्सर मेरे पिताजी कहते थे
    भीड़ के साथ नहीं चलना
    भीड़ से बचना
    भीड़ से रहना दूर
    भीड़ में पहचान खो जाती है
    अस्तित्व मिटा देती है भीड़
    पिताजी आप सहीं थे,हैं और रहेंगे भी
    भीड़ अपना हिस्सा बना लेती है
    पर कभी साथ नहीं देती

    अजीज़ दोस्त सारे
    दोस्ती के ग़ैर पारंपरिक तरीकों से तौबा कर
    अस्थायी तौर पर थाम लिए हैं पारंपरिक तरीकों का दामन

    समाजिक उत्थान,आर्थिक विकास,राजनीतिक गहमागहमी की बातें गौण हो गई
    और सूक्ष्म,अदृश्य की बातें सरेआम हो रही

    वाह्य धर्म और कर्म पर अल्पविराम लग गया
    सारे अनुष्ठान, सारी प्रार्थनाएं  और नमाज़ अंतर्मुख हो गईं

    ”मोको कहाँ ढूँढे बंदे मैं तो तेरे पास में”
    कबीर को बांटने वाले कबीर के दर्शन पर जीने लगे

    सुना था जो हँसता है उसे एक दिन रोना है
    नियति के इस बटवारे में
    एक दिन
    मुझे रोना है
    तुम्हें भी रोना है
    सब को रोना है
    हाँ सब कोरोना है।

     — नरेन्द्र कुमार कुलमित्र
         9755852479

  • हाइकु तृतीय शतक

    हाइकु तृतीय शतक

    हाइकु

    हाइकु शतक


    बुलकड़ियाँ
    रिक्त गौशाला द्वार
    सूखा गोबर।

    चैत्र प्रभात
    विधवा का शृंगार
    दूर्वा टोकरी।

    फाग पूर्णिमा
    डंडे पर जौ बाली
    बालक दौड़ा।

    होली दहन
    चूल्हे पे हंसती माँ
    गेहूँ बालियाँ।

    मदिरालय
    कुतिया को पकोड़े
    नाली में वृद्ध।

    औषधालय
    चारपाई पे वृद्ध
    नीम निम्बोली।

    कैर साँगरी
    बाजरी की रोटियाँ
    हाथ खरोंच।

    चंग का स्वर
    मातृ गोद बालिका
    आँख में आंसू।

    निम्बू का रस
    रंगे हाथ बालिका
    मेंहदी तीली।
    १०
    भंग की गोली
    सिल बट्टे पे पिस्ता
    बादाम गिरी।
    ११
    अजवायन
    अरबी की पत्तियाँ
    बेसन लेप।
    १२
    प्याज की क्यारी
    किसान की बेटियाँ
    छाछ राबड़ी।
    १३
    बेसन गट्टा
    आग पर लिपटे
    आटे की पिंडी।
    १४
    दाल पकौड़ी
    सिल बट्टे पे मिर्च
    बालिका चीख।
    १५
    महा नवमी
    सब्जी में तेज पत्ता
    बाला को सिक्का।
    १६
    पगड़ी रस्म
    खीर जलेबी पूरी
    खूँटी पे चूड़ी।
    १७
    लग्न पत्रिका
    लाल डोर लपेटे
    गुड़ चावल।
    १८
    स्वाति नक्षत्र
    माँझी की टोकरियाँ
    शंख सीपियाँ।
    १९
    धन तेरस
    नव युवा हर्षित
    मंगल सूत्र।
    २०
    मखाना बीज
    कमल पुष्प दल
    तैरता युवा।
    २१
    चैत मध्यान्ह
    थालियों में गुलाब
    फूलों पे चीनी।
    २२
    कमल डंडी
    युवकों की तैराकी
    तरुण शव।
    २३
    सरिस्का वन
    मृग छौना उछले
    लकड़बग्घा।
    २४
    पहाड़ी मार्ग
    अनियंत्रित कार
    रक्त की धार।
    २५
    बासोड़ा भोर
    थाली मे पकवान
    पथ में वृद्धा।
    २६
    शहद छत्ता
    करील की झाड़ियाँ
    भल्लुक मुख।
    २७
    हाथी के दाँत
    चूड़ी पर नगीना
    खुश जौहरी।
    २८
    विधान सभा
    चौपाल पे बुजर्ग
    चंगा पै ताश।
    २९
    सचिवालय
    बाल मेले में चाय
    आबाद हाट।
    ३०
    हैलीकाँप्टर
    खेत में चूहे बिल
    झपटा बाज।
    ३१
    पावस भोर
    चौके में झाड़ती माँ
    उछले टोड।
    (टोड~ मेंढक की एक प्रजाति)
    ३२
    पनडुब्बियाँ
    सिंघाड़े की लताएँ
    जलमुर्गियाँ।
    ३३
    सागर तट
    रेत से भरी ट्राली
    मच्छ टोकरी।
    ३४
    चाँधन ताल
    खेजड़ी पर रंग
    प्रवासी पंछी।
    ३५
    पावस साँझ
    नीम झरी पत्तियाँ
    धुँआ गुबार।
    ३६
    शीत यामिनी
    काँपे किसान हाथ
    टार्च फावड़ा।
    ३७
    ग्रीष्म मध्यान्ह
    वृद्धा बो रही खेत
    मूँगफलियाँ।
    ३८
    रसोई गैस
    चिल्ली में सूखे कण्डे
    चारे का झूंपा।
    ३९
    रसोईघर
    वृद्धा घर जुटाए
    सरसों डाँड ।
    ४०
    तोरई लता
    पत्तों पे खीर पूरी
    वायस भोज।
    ४१
    मातृ दिवस
    शहीद की बेटियाँ
    अर्थी को काँधा।
    ४२
    गौरी पूजन
    खेत में गेहूँ काटे
    गवरी बाला।
    ४३
    ग्रीष्म मध्यान्ह
    मौन विद्युत पंखा
    कपोत जोड़ा।
    ४४
    आम का वृक्ष
    चोंच ठोंके विहग
    कठफोड़वा।
    ४५
    गोंद की बर्फी
    खैर बबूल पेड़
    ग्वाल की जेब।
    ४६
    च्यवनप्राश
    आँवले की गुठली
    कढ़ाई पल्टा।
    ४७
    गेंहू की बोरी
    चढाई पर रिक्शा
    हठी युवक।
    ४८
    दाह संस्कार
    झुका युवक सिर
    नाई के आगे।
    ४९
    फसल बीमा
    खेत में पटवारी
    जेब में भार।
    ५०
    चम्बल तट
    बजरी भरी नौका
    पुलिस थाना।
    ५१
    पाणिग्रहण
    माँ के हाथ में हल्दी
    आँखों में नीर।
    ५२
    यज्ञोपवीत
    पंचगव्य का दोना
    वटुक हँसा ।
    ५३
    मातृ दिवस
    फोटो देखती बेटी
    आँखों में नीर।
    ५४
    ज्येष्ठ अष्टमी
    उबटन कटोरा
    चाची भाभियाँ।
    ५५
    चैत्र की भोर
    दँराती पर हाथ
    माँ बेटी पिता।
    ५६
    चैत्र मध्यान्ह
    बाल्टी लिए बधूटी
    कटोरदान।
    ५७
    चैत्र की साँझ
    सिर पे चारा पोट
    हाथ गौ रस्सी।
    ५८
    जूड़ा मूसल
    दुल्हन को रोकती
    ननद बुआ।
    ५९
    दादी का बक्सा
    साटन की अँगिया
    चाँदी का सिक्का।
    ६०
    मवेशी मेला
    कालबेलिया नृत्य
    पुष्कर ताल।
    ६१
    भादौ चतुर्थी
    चाँद देखे युवक
    गाल पे चाँटा।
    ६२
    आषाढ़ पूनं
    दिन में सोया पूत
    खीझा किसान।
    ६३
    चैत्र नवमीं
    सिर पर पोटली
    मेले में वधू।
    ६४
    सौरूँ का घाट
    सिर मुँडे युवक
    हाथ पे सिक्के।
    ६५
    जेष्ठ मध्यान्ह
    किसान परिवार
    मूँज मोगरी।
    ६६
    सावन वर्षा
    वृद्ध खोलता मूँज
    खाट दावणी।
    ६७
    सावन मेघ
    क्रीडांगण में मोर
    बालिका नृत्य।
    ६८
    भादौ के मेघ
    पीपल पर बिल्ली
    मयूर केकी।
    ६९
    चैत्र यामिनी
    खेत में पति पत्नी
    पकी फसल।
    ७०
    बैसाख भोर
    पल्लू पकड़े खड़ी
    तूड़े की पोट।
    ७१
    गेहूँ की ढेरी
    थ्रेसर पर वृद्ध
    हाथ पे रक्त।
    ७२
    शीतगोदाम
    बाबू की मेज भरी
    कृषक पीर।
    ७३
    गुलाब गुच्छ
    क्यारी लगा फव्वारा
    बाला के वस्त्र।
    ७४
    पूस की रात
    सिंचाई संग ओस
    भीगा युगल।
    ७५
    परिचालक
    ट्रेन में मूंगफली
    कटा युवक।
    ७६
    परिचारिका
    चिकित्सालय बेंच
    गिफ्ट पैकेट।
    ७७
    चिकित्सालय
    पौंछे जच्चा के आँसू
    सहयोगिनी।
    ७८
    नीम के पत्ते
    चूल्हे पे तपे माता
    कढ़ी मसाला।
    ७९
    गोखरू पाक
    बालिका के तलुए
    जय जवान।
    ८०.
    चैत्र विभात
    शतावरी की जड़
    अश्व सी गंध।
    ८१.
    अमृता लता
    चौके में माँ तैनात
    काढ़ा कटोरी।
    ८२.
    गिलोय वटी
    बेटी के सिर भाल
    गीला कपड़ा।
    ८३.
    तुलसी पत्ता
    बालिका धोये हाथ
    ब्लेक टी कप।
    ८४.
    चैत्र वासर
    रोटी पे सहजन
    गोभी का फूल।
    ८५.
    गृह वाटिका
    सहजन की फली
    चौके में गंध।
    ८६.
    चैत्र प्रभात
    सर्पगंधा के पुष्प
    भ्रमर दल।
    ८७.
    त्रिफला चूर्ण
    आँवले सुखाए माँ
    बजी खरल।
    ८८.
    ईसबगोल
    बैठक में दादाजी
    दही की लस्सी।
    ८९.
    खेल मैदान
    छात्राओं की टोलियाँ
    पौधारोपण।
    ९०.
    झींगा मछली
    ताल में बालिका
    आटे की गोली।
    ९१.
    बया दिवस
    जागरूक शिक्षक
    नीड़ का चित्र।
    ९२.
    आम्र मंजरी
    पीठ पे लगी टंकी
    कीटनाशक।
    ९३.
    *मातृ दिवस*
    *चिता पे चीरा शव*
    *धात्री उदर*।
    ९४.
    हवन वेदी
    दिव्यांग दुल्हनिया
    गोद में फेरे।
    ९५.
    तोरण द्वार
    दूल्हे की उठी छड़ी
    उड़ी चिड़िया।
    ९६.
    डेयरी बूथ
    किसान की केतली
    छाछ की थैली।
    ९७.
    अशोकारिष्ट
    चूल्हे पर देगची
    पानी में छाल।
    ९८.
    धनुष बाण
    भील बाला के हाथ
    गोदना यंत्र।
    ९९.
    सुहाग सेज
    दुल्हन का शृंगार
    हंँसी बालिका।
    १००.
    पितृ दिवस
    घोड़ी पे बैठा दूल्हा
    नन्ही बालिका।
    °°°°°°°
    ✍©
    बाबू लाल शर्मा बौहरा *विज्ञ*
    वरिष्ठ अध्यापक
    सिकंदरा,दौसा, राजस्थान