मित्रों तोड़ो मौन पर कविता

मित्रों तोड़ो मौन पर कविता

जब-जब निर्वात-मौन
सम्प्रेषणहीन होकर
पड़ा होता है लाचार
तब-तब
वाणी का स्वर
माध्यम बनकर
जोड़ता है
दिलों के दो पुलों को

जब-जब बर्फ़ीला-मौन
जम जाता है
माइनस डिग्री पर
तब-तब
बर्फ़-सी जमी मौन के कणों को
अपनी ऊष्मा से
पिघलाती है
ध्वनि-मिश्रित साँसों की गर्मी

जब-जब अपाहिज-मौन
रुक जाता है-ठहर जाता है
चलने में होता है असमर्थ
तब-तब
शब्दों की बैशाखी
थामकर मौन की ऊँगली
पग-पग आगे
बढ़ाता है ज़बान तक

मित्रों ! तोड़ो मौन
हमेशा ज़रूरी होता है
चट्टानी-मौन को तोड़ने के लिए
हथौड़े-संवादों का प्रहार।

— नरेन्द्र कुमार कुलमित्र
975585247

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