कमजोर पर सभी हिमत दिखाते हैं लोग पत्थर से क्यों नही टकराते है एक पीछे एक चलते हैं क्यों नही कुछ अलग कर दिखाते है कुछ बढ़िया कर जाते हैं महान बनने के लक्षण सभी में नही पते है क्यों लोग; कमजोर पर हिमत दिखाते हैं
साल निकल गए कि ताक नही आज सभी सेवक और सेवा करना चाहते है पता नही क्या साबित करना चाहते है सेवा या दिखावा या चला चल माया क्या करना चाहते हैं
जाने क्यों शह-मात खाते-खाते शह-मात देते-देते कर लेते हैं लोग जीवन पूरा मुझे लगा सब के सब होते हैं पैदा शह-मात के लिए नहीं है कुछ भी अछूता शह-मात से लगता है शह-मात ही है परमो-धर्म शह-मात है कण-कण में व्याप्त शह-मात ही है अजर-अमर
अब नहीं रुकूंगी, नित आगे बढूंगी मैंने खोल दिए हैं , पावों की अनचाहे बेड़ियां। जो मुझसे टकराए , मैं धूल चटाऊंगी हाथों में डालूंगी , उसके अब हथकड़ियां।। (१) अब धुल नहीं मैं , ना चरणों की दासी। अब तो शूल बनूंगी अन्याय से डरूँगी नहीं जरा सी। क्रांति की ज्वाला हूँ मैं, समझ ना रंगीनी फुलझड़ियाँ ।। मैंने खोल दिए हैं , पावों की अनचाहे बेड़ियां…… …….. अब नहीं रुकूंगी, नित आगे बढूंगी ।। (२) दूर रही इतने दिनों तक, अपने वजूद की सदा तलाश थी । तेरे फैसले ,विचार मुझ पर थोपे कभी ना जाना, मुझे क्या प्यास थी ? अब मौका मिला, बंधन मुक्ति का ख्वाहिश नहीं अब मोती की लड़ियां ।। मैंने खोल दिए हैं , पावों की अनचाहे बेड़ियां….. ………. अब नहीं रुकूंगी, नित आगे बढूंगी ।। (३) घर में सजी रही वस्तु बन, सपनों का गला घोंटा चारदीवारी में । पीड़ित हो सामाजिक सरोकार से , सती हो गई सिर्फ घरेलू जिम्मेदारी में । क्या पहचान नहीं उन्मुक्त गगन में? किस बात में कम हैं हम लड़कियां? मैंने खोल दिए हैं , पावों की अनचाहे बेड़ियां…… ………. अब नहीं रुकूंगी, नित आगे बढूंगी ।। ✍मनीभाई”नवरत्न”
वही खून फिर से दौड़े जो,भगतसिंह में था, नहीं देश से बढ़कर दूजा, भाव हृदय में था, प्रबल भावना देशभक्ति की,नेताजी जैसी, इंग्लिस्तानी छोड़ सभ्यता,अपनाओ देशी हिंदुस्तानी रहन-सहन हो,छोड़ो परदेशी।
वही रूप सौंदर्य वही हो,सोच वही जागे, प्राणों से प्यारी भारत की,धरती ही लागे, रानी लक्ष्मी रानी दुर्गा सुंदर थी कैसी, इंग्लिस्तानी छोड़ सभ्यता,अपनाओ देशी हिंदुस्तानी रहन-सहन हो,छोड़ो परदेशी।
वीर शिवाजी अरु प्रताप सा,बल छुप गया कहाँ, आओ जिनकी संतानें थी,शेर समान यहाँ, आँख उठाए जो भारत पर,ऐसी की तैसी, इंग्लिस्तानी छोड़ सभ्यता,अपनाओ देशी हिंदुस्तानी रहन-सहन हो,छोड़ो परदेशी।
#स्वरचित *डॉ.(मानद) शुचिता अग्रवाल ‘शुचिसंदीप*
(विधान – 26 मात्रा, 16,10 पर यति, अंत में गुरु l कुल चार चरण, क्रमागत दो-दो चरण तुकांत l)