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  • कदम-कदम पर कविता

    कदम-कदम पर कविता

    यहां है
    प्रतिस्पर्धा
    इंसानों में
    एक-दूसरे से।
    आगे निकलने की
    चाहे किसी के
    सिर पर या गले पर
    रखना पड़े पैर,
    कोई परहेज़-गुरेज नहीं ।
    किसी को कुचलने में
    नहीं चाहता कोई
    सबको साथ लेकर
    आगे बढ़ना।
    होती है टांग-खिंचाई
    रोका जाता हैै।
    आगे बढ़ने से
    डाले जाते हैं अवरोध।
    लगाया जाता है,
    एड़ी-चोटी का जोर।
    एक-दूसरे के खिलाफ
    कदम-कदम पर।।

  • विरह पर कविता

    विरह पर कविता

    प्रेम में पागल चाँद से चकोर प्यार करे ।
    उम्र भर देखे शशि को उसका हीं दीदार करे ।

    हिज्र एक पल का भी सहा जाये ना उनसे ।
    आंसुओं के मोती से इश्क का इजहार करे।

    हर घड़ी हर पल आँखों में चंदा की चंद्रकला ।
    चाँद को मन में बसाकर बेशुमार प्यार करे।।

    बादामी रातों में चाँद की जुन्हाई का।
    मखमली धरणी पर वो पुष्प से श्रृंगार करे।।

    उनको छूने की चाह में बीते चाहे लाखों जन्म।
    चाँद की छवि में अपने प्रेम का इकरार करे।।

    चंद्रकिरणों को पीकर वो वियोगी इंदु का ।
    पूनम की रात का वो फिर से इंतजार करे ।

    ?सर्वाधिकार सुरक्षित?

    बाँके बिहारी बरबीगहीया ✍

  • बहरूपिया पर कविता

    बहरूपिया पर कविता

    बहरूपिया पर कविता

    ये क्या ! अचानक इतने सारे
    अब गाँव- गाँव पधारे ,
    लगता है सफेद पंखधारी
    हंस है सारे !
    सावधान रहना रे प्यारे !
    भेष बदलने वाले है सारे !!

    पहले पता नहीं था
    इसमें क्या – क्या गुण है,
    ये हमारे शुभ चिंतक है
    या अब मजबूर है !
    बड़े सहज लग रहे हैं
    अब सारे के सारे !
    सावधान रहना रे प्यारे !
    भेष बदलने वाले है सारे !!

    इनके योग्यता पत्र देखों
    जुझारू संघर्षशील,
    कुशल कर्मठ संवेदनशील
    स्वच्छ छवि मिलनसार
    सुख -दुःख के साथी
    सहज मिलनसार !
    ये पांच वर्षों में ही
    दिखते है एक बार सारे !
    सावधान रहना रे प्यारे !
    भेष बदलने वाले है सारे !!

    अब थोक के भाव में
    प्रगटे है गाँव में
    बैठे है पीपल छांव में
    मांथा टेके हर पांव में
    सावधान रहना रे प्यारे
    ईद का चांद है सारे !
    भेष बदलने वाले है सारे !!

    दूजराम साहू
    निवास भरदाकला
    तहसील खैरागढ़
    जिला राजनांदगाँव( छ ग)

  • हंसवाहिनी माँ पर कविता

    हंसवाहिनी माँ पर कविता

    माघ शुक्ल बसंत पंचमी Magha Shukla Basant Panchami
    माघ शुक्ल बसंत पंचमी Magha Shukla Basant Panchami

    हंसवाहिनी मात शारदे
    हमको राह दिखा देना।
    वीणापाणि पद्मासना माँ
    तम अज्ञान हटा देना।।
    ???
    विद्यादायिनी तारिणी माँ
    करु प्रार्थना मैं तेरी।
    पुस्तकधारिणी माँ भारती
    हरो अज्ञानता मेरी।।
    ???
    हम सब अज्ञानी है माता
    हम पर तुम उपकार करो।
    तुम दुर्बुद्धि दुर्गुण मिटाकर
    शुचि ज्ञान का दान करो।।
    ???
    हे धवलवस्त्रधारिणी मात
    हम भक्ति करें तुम्हारी।
    दिव्यालंकारों से भूषित
    क्षमा करो भूल हमारी।।
    ???
    शिवा अम्बा वागीश्वरी माँ
    हम सब मानव अज्ञानी।
    रूपसौभाग्यदायिनी अम्ब
    बुद्धिदान करो भवानी।।
    ???
    अन्धकारनाशिनी माते
    अंधकार को दूर करो।
    ज्ञानदायिनी बुद्धिप्रदा माँ
    दोष हमारे दूर करो।।
    ???
    वीणावादिनी सुरपूजिता
    कोकिल कंठ प्रदान करो।
    छेड़ दो तुम वीणा की तान
    एक मधुर झंकार करो।।

    ????????

    ©डॉ एन के सेठी

  • रोटी पर कविता

    रोटी पर कविता

    सांसरिक सत्य तो
    यह है कि
    रोटी होती है
    अनाज की
    लेकिन भारत में रोटी
    नहीं होती अनाज की
    यहाँ होती है
    अगड़ों की रोटी
    पिछड़ों की रोटी
    अछूतों की रोटी
    फलां की रोटी
    फलां की रोटी
    और हां
    यहाँ पर
    नहीं खाई जाती
    एक-दूसरे की रोटी

    -विनोद सिल्ला