दरूहा सरकार पर कविता/ बिसेन कुमार यादव’बिसु’

दरूहा सरकार। कोन किथे निपोर मन,इहा राम राज्य आवत हे।राम राज्य नई मोर भाई,दरुहा राज्य बनावत हे छत्तीसगढ़ के मनखे मन ला,अऊ दारू पिये बर सिखावत हे।सरकार हा खुदे जनता मन ला, मनपसंद दारू पियावत हे। सरकार हा मोबाइल फोन…

गृहलक्ष्मी पर कविता/ डॉ नीतू दाधीच व्यास

तुम आओगी क्या? मैं तुम्हें अपनी गृहलक्ष्मी बनाऊंगा,तुम आओगी क्या?बस तुम संग एक छोटा सा संसार बसाऊंगा,तुम आओगी क्या? नहीं लाऊंगा तोड़कर कोई चाँद – तारें,न ही जुगनू से रोशनी कराऊंगा।मैं तो तुम्हारे हाथों से ही, घर के मंदिर में…

खूबसूरत है मग़र बेजान है / रेखराम साहू

खूबसूरत है मग़र बेजान है खूबसूरत है मग़र बेजान है,ज़िंदगी से बुत रहा अनजान हैं। बेचता ताबीज़ है बहुरूपिया,है वही बाबा, वही शैतान है। माँगता है,शर्त रखता है कभी,‘प्यार का दावा’, अभी नादान है । रूह की कीमत बहुत नीचे…

शेष शव शिव पर कविता / रेखराम साहू

शेष शव शिव पर कविता / रेखराम साहू शेष शव,शिव से जहाँ श्रद्धा गयी सभ्यता किस मोड़ पर तू आ गयी,कालिमा तुम पर भयंकर छा गयी। लालिमा नव भोर की है लीलकर,पूर्णिमा की चाँदनी, तू खा गयी। चाट दी चौपाल…

कइसे के लगही जाड़ !/ राजकुमार ‘मसखरे

कइसे के लगही जाड़ ! दुंग-दुंग ले उघरा बड़े बिहनियाझिल्ली,कागज़ बिनैया ल देख,कचरा म खोजत हे दाना-पानीतन  म लपटाय फरिया ल देख ! होत मूंदराहा ये नाली, सड़क मखरेरा,रापा के तैं धरइया ल देख,धुर्रा, चिखला म जेन सनाय हवैअइसन बुता…