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  • हाइकु मंजूषा -पद्ममुख पंडा स्वार्थी

    हाइकु मंजूषा -पद्ममुख पंडा स्वार्थी

    हाइकु

    हाइकु मंजूषा

    1
    चल रही है
    चुनावी हलचल
    प्रजा से छल

    2

    भरोसा टूटा
    किसे करें भरोसा
    सबने लूटा

    3

    शासन तंत्र
    बदलेगी जनता
    हक बनता

    4

    धन लोलूप
    नेता हो गए सब
    अब विद्रूप

    5

    मंडरा रहा
    भविष्य का खतरा
    चुनौती भरा

    6

    खल चरित्र
    जीवन रंगमंच
    न रहे मित्र

    7

    प्यासी वसुधा
    जो शान्त करती है
    सबकी क्षुधा

    8

    नदी बनाओ
    जल संरक्षण का
    वादा निभाओ

    9

    गरीब लोग
    निहारते गगन
    नोट बरसे

    10

    आर्थिक मंदी
    किसकी विफलता
    दुःखी जनता

    पद्म मुख पंडा
    ग्राम महा पल्ली

  • वर्षा ऋतु कविता – कवयित्री श्रीमती शशिकला कठोलिया

    वर्षा ऋतु कविता 

    ग्रीष्म ऋतु की प्रचंड तपिश,
     प्यासी धरती पर वर्षा की फुहार,       
    चारों ओर फैली सोंधी मिट्टी,
    प्रकृति में होने लगा जीवन संचार।

    दिख रहा नीला आसमान ,
    सघन घटाओं से आच्छादित ,
    वर्षा से धरती की हो रही ,
    श्यामल सौंदर्य द्विगुणित । 

    छाई हुई है खेतों में ,
    सर्वत्र हरियाली ही हरियाली ,
    नाच रहे हैं वनों में मोर ,
    आनंदित पूरा जंगल झाड़ी ।

    नदिया नाला जलाशय, 
    जल से दिख रहे परिपूर्ण ,
    इंद्रधनुष की सतरंगी छटा,
    अलंकृत किए आसमान संपूर्ण ।

    हो गई थी सारी धरती ,
    ग्रीष्म ऋतु में बेजान वीरान ,
    वर्षा ऋतु के आगमन से ,
    कृषि कार्यों में संलग्न किसान।

     कृषि प्रधान इस भारत में ,
    वर्षा प्रकृति की जीवनदायिनी ,
    सच कहा है किसी ने ,
    वर्षा अन्न वृक्ष जल प्रदायिनी।

    श्रीमती शशिकला कठोलिया, शिक्षिका, अमलीडीह ,डोंगरगांव
    कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद

  • संयुक्त राष्ट्र दिवस पर कविता-अरुणा डोगरा शर्मा

    संयुक्त राष्ट्र दिवस पर कविता

    मैं पृथ्वी,
    सुनाती हूं अपनी जुबानी 
    साफ जल, थल, वायु से,
    साफ था मेरा जीवमंडल।
    मानव ने किया तिरस्कार,
    बर्बरता से तोड़ा मेरा कमंडल।
    दूषित किया जल, थल, वायु को 
    की अपनी मनमानी ।
    मैं पृथ्वी,
    सुनाती हूं अपनी जुबानी।

    उत्सर्जन जहरीली गैसों का, 
    औद्योगिकरण का गंदा पानी, 
    वन नाशन,अपकर्ष धरा का 
    निरंतर बढा़ता चला गया।
    ऋषियो, मुनियों ने माना था,
    मुझे कुदरत का सबसे बड़ा उपहार।
    मुझसे ही तो जीवन था सबका साकार, 
    भूल रहा था मानव 
    जब अपना कर्तव्य व्यवहार।
    जागरूक उसे करने के लिए,
    तह किया संयुक्त राष्ट्र दिवस का वार।

    किन्तु  संपूर्ण विश्व के राष्ट्र 
    ना करना अब मुझे निराश,
    आपके सहयोग से ही बंधेगी मेरी आस।
    वन रोपण, भूमि संरक्षण, 
    आपसी भेदभाव में सबका योगदान।
    संयुक्त होना  ही तो ,
    है अंतिम निदान,
    आने वाली पीढ़ियों का सच्चा उद्यान।

    अरुणा डोगरा शर्मा
    मोहाली
    ८७२८००२५५५
      [email protected]

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  • संयुक्त राष्ट्र संघ का सपना -बृजमोहन श्रीवास्तव “साथी”

    संयुक्त राष्ट्र संघ का सपना

    संयुक्त राष्ट्र संघ का सपना ,
                    मानव श्रेष्ठ बनाना है ।
    शोषण कोई नही कर पाये ,
             जन जन को बतलाना है ।।

    भूख गरीबी लाचारी में ,
                जो जन जीवन जीता है ।
    सच मानो वो मानव केवल ,
                 जह़र यहाँ पर पीता है ।।
    भूख गरीबी लाचारी को ,
                   जग से हमें भगाना है ।
    संयुक्त राष्ट्र संघ ………………….

    सुख शांति सदभाव देश को ,
                      वैभव समृद्धि देता  ।
    विश्व मंच पर वही उभरकर ,
               बन जाता है अभिनेता ।।
    आपस में मिलजुल कर रहना ,
              सबको यही सिखाना है ।
    संयुक्त राष्ट्र ………………………

    फँसता वही भँवर में साथी ,
                केवल स्वार्थ परायण है । 
    हुआ विनाश अभी तक जिनका ,
                 अंहकार के कारण है ।। 
    अधिकारों का ज्ञान मनुष को ,
                 हमको आज कराना है ।
    संयुक्त राष्ट्र संघ ………………….

    संयुक्त राष्ट्र संघ संचालन ,
                 मानवता का पोषक  है ।              
    मानवता अपनाकर देखो ,
              लगती कितनी रोचक है ।।
    हक मानव का जो होता है ,
                 सबको वही दिलाना है ।
    संयुक्त राष्ट्र ……………………. .. 

    कवि बृजमोहन श्रीवास्तव “साथी”
    मो.9981013061
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  • सुंदर विश्व बनाएं-डॉ नीलम

    सुंदर विश्व बनाएं


    मानव के हाथों में कुदाल
    खोद रहा 
    अपने पैरों से रहा 
    अपनी जडे़ निकाल

    अपने अपने झगडे़ लेकर
    करता नरसंहार है
    विश्व शांति के लिए बस
    बना संयुक्त राष्ट्र है

    निःशस्त्रिकरण की ओट में
    अपने घर में आयुध भंडार भरे
    परमाणु की धौंस जता कर
    कमजोरों पर वार करें

    कितनी कितनी शाखाएँ खोलीं
    पर विश्व ना सुखी हुआ
    एक देश कुपोषित होता
    दूजा महामारी से मरता
    थे उद्देश्य बहुत स्पष्ट
    विश्व शांति के लिए
    पर अपने-अपने व्यापार में सब
    बस लाभ के लिए लडे़

    एक बार फिर से सबको
    पन्ने खंगालने होंगे
    क्या क्या करने होंगे बदलाव
    फिर से देखने होंगे

    परिवर्तन जरुरी अब हो गया
    हर राष्ट्र परिपक्व हो गया
    बड़ गयीं जरुरते हर एक की
    सबको समानता की आस है

    भूख मानव की पेट की नहीं
    जमीन के टूकडे़ पर वो लड़ रहा
    अपनी अपनी अस्मिता की चाहत में वो अड़ रहा

    देकर जिसका जो दाय है
    सबको संतुष्ट करना चाहिए
    व्यर्थ अपने ही हाथों 
    ना अपना सर्वनाश करना चाहिए

    चलो फिर एक बार 
    फिर से कदम बढा़एँ
    विश्व जो हो रहा 
    टुकड़े-टुकड़े
    उसको फिर जोड़ 
    सुंदर विश्व बनाएं।

         डा.नीलम
    कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद