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  • माँ गंगा का अवतरण दिवस

    यहाँ माँ पर हिंदी कविता लिखी गयी है .माँ वह है जो हमें जन्म देने के साथ ही हमारा लालन-पालन भी करती हैं। माँ के इस रिश्तें को दुनियां में सबसे ज्यादा सम्मान दिया जाता है।

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    माँ पर कविता

    माँ गंगा का अवतरण दिवस

    अवतरण दिवस माँ गंगा का 
    दशमी  तिथि थी जेष्ठ मास 
    इसके पावन तट पर मनुज ने 
    किया  सभ्यता का  विकास l

    पावन,निर्मल, अविरल है गंगा 
    विशाल  जलधारा शीतल  जल 
    हिमगिरि के शिखरों से निकली 
    बहती नित कल-कल छल-छल l

    शिव की पावन जटा से आई 
    धरती को मिला श्रेष्ठ वरदान 
    माता  सम है  पूज्य  ये  गंगा 
    वेदों में इसकी महिमा महान l

    सभ्यता सृजित हुई गंगा तट पर 
    मानव जगत की है  पालनहार 
    युगों  से  सबकी  प्यास बुझाती 
    माता तुल्य देती समृद्धि  दुलार l

    गंगा के पूजित कोमल जल में 
    असीम पावनता का  है संचार 
    स्नान करके सब पुण्य कमाते 
    माता के तट पर आता संसार l

    स्वार्थ में अंधा होकर मनुज ने 
    मैला  कर माँ  को पाप  किया 
    आपदा रूप में क्रोधित मैया ने 
    पतित  हो  हमको  श्राप दिया l

    प्रदूषित किया गंगा को हमने 
    संकट  के हैं मंडराते  बादल 
    कहीं रुख  मोड़ा  मानव ने 
    गंदगी से किया मैला आँचल l

    मोक्षदायिनी जीवनदायिनी माँ 
    गंगा  का हम  सम्मान  करें 
    स्वच्छ रखें सदा माँ का आँचल 
    गंगा दशहरा पर ये आह्वान करें l

    कुसुम लता पुन्डोरा 

    नई दिल्ली

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  • तुम पर लगे इल्जामातमुझे दे दो

    तुम पर लगे इल्जामातमुझे दे दो

    तुम अपने अश्कों की सौगात
    मुझे दे दो
    अश्कों में डूबी अपनी हयात
    मुझे दे दो

    जिस रोशनाई ने लिखे
    नसीब में आंसू
    खैरात में तुम वो दवात
    मुझे दे दो

    स्याही चूस बन कर चूस लूंगा
    हरफ  सारे
    रसाले में लिखी हर इक बात
    मुझे दे दो

    जमाने से तेरी खातिर 
    टकरा जाऊँगा
    जो तुम पर लगे इल्जामात
    मुझे दे दो

    मैं सीने से लगा कर रख
    लूंगा ‘राकेश,
    गमजदा सब अपने वो जज्बात
    मुझे दे दो। 

    राकेश कुमार मिश्रा
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  • मेरे वो कश्ती डुबाने चले है

    मेरे वो कश्ती डुबाने चले है

    रूठे महबूब को हम मनाने चले है |
    अपनी मजबूरीया उनकों सुनाने चले है |

    जो कहते थे तुम ही तुम हो जिंदगी मेरी  |
    बीच दरिया मेरे वो कश्ती डुबाने चले है |

    ख्यालो ख्याबों मेरी  सूरत उनका था दावा |
    डाल गैरो गले बाहे वो मुझको भुलाने चले है |

    टूटकर चाहा खुद से भी ज्यादा जिसको |
    तोड़कर दिल मेरा दुश्मनों दिल लूटाने चले है  |

    यकीन हो उनको हम आज भी है आपके |
    जख्मी टूटा दिल हम उनको दिखाने चले है |

    खुला रखा दरवाजा दिला का खातिर उनकी |
    रौंदकर पैरो तले दिल वो मुझे तड़पाने चले है |

    श्याम कुँवर भारती
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  • मानवता की छाती छलनी हुई

    मानवता की छाती छलनी हुई

    विमल हास से अधर,
    नैन वंचित करुणा के जल से।
    नहीं निकलती 
    पर पीड़ा की नदी
    हृदय के तल से।।

    सहमा-सहमा घर-आँगन है, 
    सहमी धरती,भीत गगन है ।
    लगते हैं अब तो 
    जन-जन क्यों जाने ?
    हमें विकल से ।

    स्वार्थ शेष है संबंधों में, 
    आडंबर है अनुबंधो में ।
    मानवता की छाती छलनी हुई
    मनुज के छल से ।

    ——R.R.Sahu
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  • कंगन की खनक समझे चूड़ी का संसार

    कंगन की खनक समझे चूड़ी का संसार

    HINDI KAVITA || हिंदी कविता
    HINDI KAVITA || हिंदी कविता

    नारी की शोभा बढ़े, लगा बिंदिया माथ।
    कमर मटकती है कभी, लुभा रही है नाथ।

    कजरारी आँखें हुई,  काजल जैसी रात।
    सपनों में आकर कहे,  मुझसे मन की बात।

    कानों में है गूँजती, घंटी झुमकी साथ।
    गिर के खो जाए कहीं, लगा रही पल हाथ।

    हार मोतियों का बना, लुभाती गले डाल।
    इतराती है पहन के, सबसे सुंदर माल।

    कंगन की खनक समझे, चूड़ी का संसार।
    प्रिय मिलन को तड़प रही, तू ही मेरा प्यार।

    अर्चना पाठक ‘निरंतर’ 

    अम्बिकापुर