बस तेरा ही नाम पिता
उपर से गरम अंदर से नरम,ये वातानुकूलित इंसान है!
पिता जिसे कहते है मित्रो,वह परिवार की शान है!!
अच्छी,बुरी सभी बातो का,वो आभास कराते है!
हार कभी ना मानो तुम तो,हर पल हमै बताते है!!
वो नही है केवल पिता हमारे,अच्छे,सच्चे मित्र भी है!
परिवार गुलशन महकाए,ऎसा ब्रंडेड ईत्र भी है!!
वह धिरज और गंभिरता की,जिती जागती सुरत है!
वही हमारे परिवार मे,ईश्वर की दुजी मुरत है!!
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(२)
अनुशासित दिनचर्या उनसे,असिम ज्ञान भंडार है!
गुस्सा भी है सबसे जादा,और सबसे जादा प्यार है!!
मुश्किलो मे परिवार की,पापा ही एक हौसला है!
उन्हीके कारण परिवार का,एक सुरक्षित घोसला है!!
वो खूद की ईच्छाओ का हनन है,परिवार की पुर्ती है!
परिवार मे पिता ही साक्षात,बड़ी त्याग की मुर्ती है!!
अपनी आँखो के तारो का,बहुत बड़ा अरमान हो तुम!
परिवार के हर शख्स की,सचमुंछ मे एक जाॅन हो तुम!!
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(३)
रात को उठकर जो बच्चो को,उढ़ाते देखे कंबल है!
जो मां के माथे की बिंदीया,परिवार का संबल है!!
हमने जिनके कंधे चढ़कर,जगत मे देखे मेले है!
परिवार की खूशियो खातिर,संकट जिसने झेले है!!
गुरु,जनक,पालक,पोषक तुम,तुम ही भाग्यविधाता हो!
जरुरत की सब पुर्ती हो तुम,तुम ही सच्चे ताता हो!!
रहे सदा जीवनभर जगमे,बस तेरा ही नाम पिता!
बच्चो सुनो कितने भी बड़े हो,करना सब सम्मान पिता!!
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कवि-धनंजय सिते(राही)
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कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद