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  • कुछ तोड़ें कुछ जोड़ें

    कुछ तोड़ें कुछ जोड़ें

    5 जून विश्व पर्यावरण दिवस 5 June - World Environment Day
    5 जून विश्व पर्यावरण दिवस 5 June – World Environment Day

    चलो
    आज कुछ
    रिश्ते तोड़ें,
    चलों
    आज कुछ
    रिश्तें जोड़ें…..!
    प्लास्टिक,पॉलीथीन
    बने अंग जो जीवन के
    इनसे नाता तोड़ें,
    जहाँ-तहाँ
    कचरा फेंकना,
    नदियों का पानी
    दूषित करना
    इस आदत को भी छोड़ें…!!
    अलग-अलग हो कचरा
    जैविक और अजैविक
    हर घर में खुदा
    एक गड्ढा हो
    सब गीला कचरा
    उसमें पड़ता हो
    उससे जैविक खाद बनायें
    जैविक खाद बनाना मुश्किल
    इस मिथक को तोड़ें…..!!!
    दिवस विशेष हो कोई अपना
    एक पौधा अवश्य लगायें
    बच्चे जैसी सार-संभाल कर
    उसको वृक्ष बनायें
    पौधों से रिश्ता जोड़,
    पर्यावरण मित्र बनें
    विरासत में सौंपने
    स्वच्छ पर्यावरण
    अनुचित के सम्मुख तनें…..

    डा० भारती वर्मा बौड़ाई
    देहरादून, उत्तराखंड

  • पेड़ धरा का हरा सोना है

    पेड़ धरा का हरा सोना है

     ये कैसा कलयुग आया है
    अपने स्वार्थ के खातिर
    इंसान जो पेड़ काट रहा है
    अपने ही पैर में कुल्हाड़ी मार रहा है
    बढते ताप में स्वयं नादान जल रहा है
    बढ़ रही है गर्मी,कट रहे हैं पेड़
    या कट रहे हैं पेड़ बढ़ रही है गर्मी
    शहरीकरण, औद्योगीकरण,
    ग्लोबल वार्मिंग तेजी से बढ़ रहा है
    पारिस्थितिकी संतुलन बिगड़ रहा है
    ग्रीन हाउस गैस बढ़ रहा है
    धरती का सुरक्षा – कवच
    है जो ओजोन परत,नष्ट होने से बचाना है
    पेड़ के प्रति हमारी बड़ी है जिम्मेदारी
    पेड़ जीवन दायिनी है हमारी
    खूब पेड़ लगाना है
    आने वाली पीढ़ी को अपंग
    होने से बचाना है
    पेड़ है प्रकृति का अनमोल वरदान
    पेड़ ना हों तो अवश्य बढेगा तापमान
    बिन पेड़ के कोई प्राणी का अस्तित्व कहाँ
    पेड़ तो जीते दूसरों के लिए यहाँ
    पेड़ का महत्व समझें
    पेड़ हैं तो हम हैं
    पेड़ “धरा” का हरा सोना है
    इसे नहीं हमें खोना है।
    धनेश्वरी देवांगन धरा
    रायगढ़ (छत्तीसगढ़,)
    मो. नं. 8349430990

    कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद

  • गर्मी बनी बड़ी दुखदाई

    गर्मी बनी बड़ी दुखदाई

    *सुबह सुहानी कहाँ गई अब,*
    *दिन निकला दोपहरी आई ।*
    *जलता सूरज तपती धरती,*
    *गर्मी बनी बड़ी दुखदाई ।।*

    ताल-तलैया नदियाँ झरनें,
    कुँआ बावली सब सूख गए।
    महि अंबर पर त्राहिमाम है,
    जीवन संकट अब विकट भए ।।

    *निज स्वार्थ पूर्ति हेतु मनुज भी,*
    *धरती का दोहन करता है ।*
    *इसी वजह से तपती धरती ,*
    *जीवन संकट बन जाता है ।।*

    तपती धरती कहती हमको,
    अतिशय दोहन अब बंद करो।
    हरा-भरा आच्छादित वन हो,
    तुम ऐसा उचित प्रबंध करो ।।

    ✍ *केतन साहू "खेतिहर"**✍
      *बागबाहरा, महासमुंद (छ.ग.)*

    ~
    कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद

  • पर्यावरण दूषित हुआ जाग रे मनुज जाग/सुधा शर्मा

    पर्यावरण दूषित हुआ जाग रे मनुज जाग/सुधा शर्मा

    पर्यावरण दूषित हुआ जाग रे मनुज जाग/सुधा शर्मा

    save nature

    धानी चुनरी जो पहन,करे हरित श्रृंगार।
    आज रूप कुरूप हुआ,धरा हुई बेजार।
    सूना सूना वन हुआ,विटप भये सब ठूंठ।
    आन पड़ा  संकट विकट,प्रकृति गई है रूठ।।

    जंगल सभी उजाड़ कर,काट लिए खुद पाँव।
    पीड़ा में फिर तड़पकर,  ढूंढ रहे हैं छाँव।।
    अनावृष्टि अतिवृष्टि है,कहीं प्रलय या आग।
    पर्यावरण दूषित हुआ,जाग रे मनुज जाग।।


    तड़प तड़प रोती धरा,सूखे सरिता धार।
    छाती जर्जर हो गई,अंतस हाहाकार।।
    प्राण वायु मिलते कहाँ,रोगों का है राज।।
    शुद्ध अन्न जल है नहीं,खा रहे सभी खाद।।


    पेड़ लगाओ कर जतन,करिए सब ये काम।
    लें संकल्प आज सभी,काज करिए महान।।
    फल औषधि देते हमें,वृक्ष जीव आधार।
    हवा नीर बाँटे सदा,राखे सुख संसार।।


    करो रक्षा सब पेड़ की,काटे ना अब कोय।
    धरती कहे पुकार के,पीड़ा सहन ना होय।।
    बढ़ती गर्मी अनवरत,जीना हुआ मुहाल।
    मानव है नित फँस रहा, बिछा रखा खुद जाल।।


    सुधा शर्मा
    राजिम छत्तीसगढ़

  • ट्विंकल शर्मा-श्रध्दांजली

    ट्विंकल शर्मा-श्रध्दांजली

    धरती मांता सिसक रही है,देख के हैवानी करतूत!
    मां भी पछता रही है उसकी,मैने कैसे जन्मा ये कपुत!!
    पढ़कर खबरो को सैकड़ो,माताओ के अश्क गिरे!
    सोच रही है क्यो जिंदा है,ये वहशी अबतक सरफिरे!!
    दरिंदे उसकी नन्ही उम्र का,थोड़ा तो ख्याल किया होता!
    नज़र मे बेटी मुरत लाकर,थोड़ा तो दुलार किया होता!!
    कैसे पत्थर दिल इंसा हो तुम,सोच रहा है हर मानव!
    नर पिशाच्य है इंसा रुप मे,या नराधमी है ये दानव!!
    कलम भी थर्राती है लिखने,साहस ना कर पाती है!
    ऎसी खबरो को लिखने को,स्याही भी सुख जाती है!!
    जाहिद,असलम दोनो सुनलो,तुम तो ना बच पाओगे!
    बदतर जहान्नुम से जो हो,वही सजा तुम पाओगे!!
    उन्नाव,दामिनी,और कठुआ,अब अलिगढ़ का जो मंजर है!
    कुछ को सजा कुछ बच जाए ,कानुन व्यवस्था लचर है!!
    पांच साल से मन्नत करके,और चिकीत्साओ के बाद!
    तब जाकर पाई थी ट्विंकल,जैसी सुंदर ये औलाद!!
    केवल दस हजार की खातिर,ये भयावह काम किया!
    मासुम का वहशी दरिंदो ने,सरासर कत्ले आम किया!!
    आखिर कबतक ऎसे मंजर,तुम्हे देखने का ईरादा है!
    इन्हे जनता को सौप दो देंगे,वो सही सजा मेरा वादा है!!
    ट्विंकल तेरी हर यादो को,खूब संजोया जाएगा!
    श्रध्दांजली मे ऎसा मंजर,वादा है ना दोहरा जाएगा!!
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    कवि-धनंजय सिते(राही)
    Mob-9893415828
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    कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद