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  • परदेसी से प्रीत न करना

    परदेसी से प्रीत न करना

    तुमसे विलग   हुए तो कैसे
    कैसे दिवस निकालेंगे।
    दीप    जलाये   हैं हमने ही
    दीपक आप बुझा लेंगे।


    तन्हाई में   जब   जब यारा
    याद तुम्हारी आयेगी।
    परदेसी  से   प्रीत  न करना
    दिल को यों समझा लेंगे।।


    शायद सदमा झेल न पाओ
    तुम मेरी बर्बादी का।
    अपने अंदर  ही अपने हम
    सारे हाल छुपा लेंगे।।
    झूँठा   है ये  प्यार मुहब्बत
    झूँठे हैं सब अफ़साने।।

    तेरा दिल  बहलाने को हम
    अपना खून बहा लेंगे।।
    “करुण”दुआ  मांगे  तेरा ये
    आँगन खुशियों से महके।
    तेरे हर     दर्दोग़म  को हम
    अपना मीत बना लेंगे।

    जयपाल प्रखर करुण

  • किसानों को समर्पित एक कविता

    किसानों को समर्पित एक कविता

    जेठ की तपती दुपहरी हो
    या मूसलाधार बारिश
    अभावों की
    कुलक्षिणी रात हो
    या ….
    दक्षिणी ध्रुवी अंधकार अमावस्या
    जाड़े की ठिठुरन में भी
    औरों की तरह
    नहीं सोता
    वह घोड़े बेचकर ..
    जिम्मेवारियों का निर्वहन करते
    धरती के गर्भ से
    जिसने
    अन्न उपजा
    मनुष्य और मनुष्यता को
    जीवित रखा
    संसार को नया आकार देकर
    फसलों में मुस्कान बिखेरी
    दलदली पंक को रास्ता बना
    नवांकुरों को चलना सिखाया
    मगर!
    विडम्बना ऐसी
    कि आज ..
    उसी का हल गिरवी पड़ा है
    तन पर उसके
    बदहाली के फफोले हैं
    दाने-दाने को तरसती झोपड़ी
    और ..
    चारों दिशाओं से फाँसी के फंदे
    उसे देते हैं आमंत्रण
    जबकि ….
    सही मायने में देखा जाए
    तो किसान
    वरद पुत्र है वसुंधरा का
    दो बीघा ही सही
    लेकिन! दीजिये
    किसान को उसका हक़
    और उसकी जमीन ।

    रचनाकार ~

    प्रकाश गुप्ता ” हमसफ़र ”

    युवा कवि एवं साहित्यकार
         (स्वतंत्र लेखन)
    विनोबा नगर वार्ड नम्बर – 24
    रायगढ़ (छत्तीसगढ़)
    पिन नम्बर – 496001
    मोबाईल – 7747919129

  • माधव श्री कृष्ण पर कविता

    माधव श्री कृष्ण पर कविता

    माधव श्री कृष्ण पर कविता

    shri Krishna
    Shri Krishna

    सबके दिल मे रहने वाला,
    माखन मिश्री खाने वाला।
    गाय चराते फिरते वन मे,
    सुंदर तान सुनाने वाला ।
    खेल दिखाते सुंदर केशव,
    सबके मन को भाने वाला।
    भाये ना केशव मुझको अब,
       हर  दस्तूर जमाने वाला।
    ध्यान धरे है माधव सबकी,
    दुख सबके है हरने वाला।
    क्यों ऐसी बातें करता हैं ,
    हिंसा को भड़काने वाला।


         जागृति मिश्रा रानी

  • फिर जली एक दुल्हन

    फिर जली एक दुल्हन


    शादी का लाल जोड़ा पहन,
    ससुराल आई एक दुल्हन,
    आंखों में सजाकर ख्वाब,
    खुशियों में होकर मगन!

    रोज सुबह घबरा सी जाती,
    बन्द सी हो जाती धड़कन,
    ना जाने कब बन जाये,
    लाल जोड़ा मेरा कफ़न!


    फिरभी सींचे प्यार से,
    अपना छोटा सा चमन,
    खुशियों से महके आँगन,
    नित नए खिलते सुमन!


    एक रोज अखबार देखा,
    आज भी अग्नि-दहन,
    दहेज की ही खातिर,
    फिर जली एक दुल्हन….


    —डॉ पुष्पा सिंह’प्रेरणा’
    अम्बिकापुर, सरगुजा(छ. ग.)

  • मनीलाल पटेल उर्फ़ मनीभाई नवरत्न के कविता

    मनीलाल पटेल उर्फ़ मनीभाई नवरत्न के कविता

    मनीलाल पटेल उर्फ़ मनीभाई नवरत्न के कविता

    एक अजब खिलखिल है

    जान अकेली है।
    मौत सहेली है।
    काँपती देह
    हवा बर्फीली है ।

    चादर आसरा है
    दहक सहारा है।
    दंत की किटकिट
    सर्द की नारा है।

    तन में ठिठुरन है ।
    मन में जकड़न है ।
    जग धुंधला सा
    रज को अड़चन है ।

    हर पल को मुश्किल है ।
    ठंड जिनकी कातिल है।
    रंग बदला मौसम का
    एक अजब खिलखिल है।

    मनीभाई ‘नवरत्न’,
    छत्तीसगढ़, 

    बादल, योद्धा, शिक्षक

    मैं बादल, आसमान में जाऊंगा ।
    संपूर्ण जगत में छा जाऊंगा ।
    जल बनके सबकी प्यास बुझाऊंगा।
    बागों को फूलों से सजाऊंगा ।
    बहारें लाऊंगा ,खुशियां लाऊंगा ।
    मैं बादल आसमान में जाऊंगा ।

    मैं योद्धा, रण में कूदूंगा ।
    छलियों के छक्के छुड़ाऊंगा।
    मातृभूमि की लाज बचाऊंगा।
    उनको निकासी द्वार दिखाऊंगा।
    अमन लाऊंगा ,सुखचैन लाऊंगा ।
    मैं योद्धा, रण में कूदूंगा।

    मैं शिक्षक, पाठशाला जाऊंगा ।
    बच्चों को पाठ पढ़ाऊंगा।
    अच्छी शिक्षा से अनुभवी बनाऊंगा।
    हर चेहरे पर नए सूरत झलकाऊंगा ।
    सबके सपने मैं सजाऊंगा।
    साक्षर देश बनाऊंगा ,विकसित देश बनाऊंगा।
    मैं शिक्षक पाठशाला जाऊंगा।

    मनीभाई ‘नवरत्न’

    अस्तित्व की हाजिरी

    देर एक झोंके की
    दीया फिर बुझ जाएगी।
    ना तू बचेगा ना हम बचेंगे
    कल का दौर आज ही गुजर जाएगी।
    यही संदेशा लेकर आ
    ताज सा कंगूरा बना जाए ।
    इस कोरे कागज धरा पर
    अपनी अस्तित्व की हाजिरी लगा जाएं ।
    अनोखी  करतूतें हमारी
    जन जन को पाठ पढ़ाएगी
    तब सच्चा साकार सपने अपने
    दाह प्रज्वलित कर जाएगी.

     मनीभाई ‘नवरत्न’,छत्तीसगढ़,

    अभी दिल भरा नहीं

    समय को  संगिनी बना कर
    मेहनत से तन सजाकर
    मंजिल मिल जाए सही
    पर वीर कहते यही
    अभी दिल भरा नहीं । निरंतर प्रगति पथ पर
    चल अविचल सीने तन कर
    अंजाम रहे बेरंग सही
    पर वीर कहते यही
    अभी दिल भरा नहीं । रण नाम कर्ण में जैसे पड़ते
    तब शूर कोई इतिहास गढ़ते
    हर पन्नों में उनके कारनामें रही
    पर वीर कहते यही
    अभी दिल भरा नहीं।

     मनीभाई ‘नवरत्न’,

    बादल पर कविता

    बादल भी होते, कितने कमाल!
    कहीं बाढ़ लाए तो कहीं अकाल ।
    बादल! ऐसा बरस कि देश हो मालामाल ।
    जिससे किसान के हल जूते,पूरे महीने साल ।
    कहते हैं ,जो गरजते हैं बरसते नहीं ।
    तो क्यों !अकारण शोर मचाते हो ।
    जहां पर  रहे,मांग तुम्हारी ,
    वहां अपनी रौब दिखाते हो।
    ऐसे बरस जा,कि हो सर्वत्र हरियाली ।
    जिससे गरीब भी मना सके दीवाली ।
    अब तो गुस्सा छोड़ो, छोड़ो ये मनमानी ।
    जी करे यान से जाके,तलवार से निकालूँ पानी ।
    मैंने कहा,  यह आक्रोश शब्द ।
    तब शोर करते बादल, हुए स्तब्ध ।
    लगा मुझे, मेरी बात असर पड़ी ।
    तब कहीं  कमबख्त की छींटे पड़ी।
    देखा पानी, हो गया मेरे अरमान पूरे।
    अब तो होने  लगेंगे अधुरे खेत भी पूरे।
    यह क्या? बरखा कम हुआ धीरे धीरे ।
    देख के ये, कविता न लिख पाया पूरे।
    ✒मनीभाई

    कलम से

    कल तक जो मर गया था
    आज जी उठा हूं फिर से
    कलम से, कलम से। गुमराह हो गई युवाशक्ति
    विचलित भी ये नहीं होती
    जैसे ठंडी बर्फ सी।
    इसे पिघला दूंगा,
    कलम से, कलम से। पढ़े-लिखों की अनपढ़ जिंदगी
    संभाले हुए हैं रंग भेद जाति
    मानवता भी शर्मशार सी।
    इन्हें मानव बनाऊंगा,
    कलम से , कलम से। उजड़ रही है स्वर्ग से सुन्दर धरा।
    विस्फोटकों से सरहद का पहरा।
    टेढ़ी नजरों से देखें पड़ोसी।
    मैं प्रीत जगाऊंगा।
    कलम से , कलम से।     ✒️ मनीभाई”नवरत्न”,बसना, महासमुंद,छग

    अनोखा ये समाज

    है कितना अनोखा ये समाज।
    है रंगबाज ,है जंगबाज। इसकी अटूट करतूतें
    मन छूलें कभी दहले
    जिंदगी अगर प्यारी
    सब को शांत सह ले।।
    समझ ले संघ को आज।
    मानले रीति रिवाज। है कितना अनोखा ये समाज।
    है रंगबाज है जंगबाज। हर बात है अग्नि रेखा ,
    स्वीकार ले जो तू ना देखा ।
    तू भी इस कूल का अंग ,
    दामन ना अलग हो पाए इसके संग ।
    बीते तेरी हर काज ,
    तू सहनशील तुझ पर नाज । है कितना अनोखा ये समाज ।
    है रंगबाज है जंगबाज । मिले ना शांति कर तू क्रांति ।
    चौका कर सभी को दिला दे भ्रांति।
    आज सब की यही सिद्धांत
    दिन सेवक तो रात दे मात।
    देख ली आज सबकी मिजाज।
    जितना वाचाल है उतना राज। है कितना अनोखा ये समाज ।
    है रंगबाज है जंगबाज । नायक बने हो चाहे खलनायक
    इस गद्दी का क्या तू नहीं लायक?
    छोड़ दे तू अपनी नमाज
    पकड़ ले तू कानूनी किताब।
    फिर देख आगे तेरा समाज।
    बन जाएगा सबसे लाजवाब। है कितना अनोखा ये समाज।
    है रंगबाज है जंगबाज।।

    मनीभाई ‘नवरत्न’

    आज अंधकार है

    आज अंधकार है
    सारा गांव में।
    आज हाहाकार है
    पानी दांव में।
    फिर हुआ संघर्ष
    युग पड़ाव में।
    कहां छुपा है मनु
    किस नाव में।
    आज अंधकार है,
    सारा गांव में।

    पेड़ कट रहे गर्मी में सोना दुश्वार है।
    विकास नहीं ,
    विनाश को न्यौता है।

    कल अंधकार होगा
    अखिल धरा में।
    चिन्ता की बात नहीं
    चिन्तन की मुद्दा है।

     मनीभाई ‘नवरत्न’, छत्तीसगढ़,

    जो चाहे ढल गए

    काम की बात करूंगा मैं,
    क्योंकि काम से अपना नाता है।
    काम से नाता होकर भी काम ना मिले मुझको ;
    आज मुझ बेरोजगार की यही दास्तां है।  

    हर इम्तिहान में जीत गए,
    फिर भी जो चाहे ढल गए। फतह में भी काम ना बने ,
    क्यों कयामत की कायदा हो गए ।
    शुरू से अंत कदम पर , चित्त सदा लक्ष्य पर ।
    अध्ययन के खर्च पर , अटकी दिलासा के दर्द पर।

    अभागे दिन भूलकर , जो खुश होते रहे ।
    फिर भी जो चाहे ढल गए।

    दुआओं का हुआ ना असर , है रिश्वतखोरी के तेवर ।
    बैठा हूं आज झुंझलाकर , ना कोई समझ ना खबर।

    जिंदगी के सफ़र में हार को जीत कर गए ।
    फिर भी जो चाहे ढल गए।

    अब बेरोजगारी की परिभाषा आ गई ।
    हम पर भी धन का जुनून छा गई ।
    ना कोई जमीन का टुकड़ा है।
    जन्मों से वही प्यासी मुखड़ा है।
    तपती ख्वाब में राख से हाथ जला गए।
    फिर भी जो चाहे ढल गए।

    मनीभाई ‘नवरत्न’

    महंगाई का दौर

    महंगाई का दौर ,
    जनता के लिए उबाऊ है ।
    शायद इसीलिए ,
    जनता ही बिकाऊ है ।
    वह दिन दूर नहीं
    जब आदमियों के ठेले लगेंगे।
    एक रोटी की छोड़
    दाने दाने के लिए लाले पड़ेंगे ।
    फैली होगी हिंसा
    अत्याचार की आंधी आएगी।
    भ्रष्टाचार की झुलस से
    स्वर्ग की वादी जाएगी।
    कलयुग का कंस
    पैसे की भूख से और कौन है ?
    क्या इसे ना छोड़ेगा
    वाचाल अब क्यों मौन है?

     मनीभाई ‘नवरत्न’, छत्तीसगढ़,

    प्रेम तो मैं करता नहीं

    (रचनाकाल:-१४फरवरी २०१९,प्रेम दिवस)

    यूं किसी पे ,मैं मरता नहीं।
    हां! प्रेम तो,मैं करता नहीं।

    प्रेम होता तो,
    ना होता खोने का डर।
    प्रेम के सहारे
    कट जाता मेरा सफर।
    दुख दर्दों से
    रहता  मैं कोसों दूर।
    मैं ना होता
    कभी विवश मजबूर।
    विरह मुझको,खलता नहीं।
    छुपके आहें,मैं भरता नहीं।
    हां! प्रेम तो ,मैं करता नहीं।

    सताती नहीं
    लाभ हानि की चिंता।
    सदा ही जीता
    जो कह गई है गीता।
    ना शिकवा होती
    ना ही किसी से आशा।
    पर क्या है प्रेम?
    समझा नहीं परिभाषा।
    अर्थ इसके,  टिकता नहीं।
    गर है तो,क्यूं दिखता नहीं?
    हां! प्रेम तो ,मैं करता नहीं।

    जहां प्रेम है
    वहां धर्म,जाति किसलिए?
    रंग रूप भेद
    सरहद-दीवार किसलिए?
    राग द्वेष निंदा
    प्रेम के शब्दकोश में कहां?
    और ईर्ष्या बगैर
    प्रेम का अस्तित्व भी कहां?
    प्रेम में वश मेरा चलता नहीं।
    प्रेम कर हाथ मैं मलता नहीं।
    हां! प्रेम तो ,मैं करता नहीं।।
    ✒️ *मनीभाई’नवरत्न’छत्तीसगढ़*

    स्वतंत्र हो चलें

    हर जगह रूप है ,
    एक उसी का।
    जिसे लोग अल्लाह-ईश्वर कहते हैं।
    फिर क्यों लोगों ने…?
    हमको ये कहा
    अल्लाह मस्जिद में,
    ईश्वर मंदिर में रहते हैं।
    हमने समेट लिया खुद को
    अपनी अपनी खुदा को समेट कर
    गिरवी रख दी वजूद को
    अपना विवेक खो कर।
    आखिर हमें
    किस बात का डर?
    ये दूरियां हममें
    क्यों कर गई घर?
    मन में  समत्व भर
    अब तो स्वतंत्र हो चलें
    धर्म के नाम पर।
    ✒️ मनीभाई’नवरत्न’छत्तीसगढ़

    अनमोल है बेटियां


    २४/०५/२०१७
    चहकती हैं , महकती हैं,  बनके मुनिया।
    तेरी खूबसूरती से ,खूबसूरत है दुनिया।
    रंगीन कर दे समां को , ये फुलझड़ियां।
    अनमोल है बेटियां x 2 …..


    चाहे ये समाज , लगा दें जितनी बेड़ियां।
    पर आगे बढ़ निकलेंगी,  हमारी बेटियां ।
    तू अभिमान है ,  मेरे देश की सम्मान है।
    तेरी हंसी से झरती हैं मोती की लड़ियां।
    अनमोल है बेटियां …..

    बेटी में समझ है , है दया-प्रेम-विश्वास।
    बेटी के अपमान से ,है जग का विनाश।
    सबको एकता सूत्र में,बाँधकर रखती ये
    इनसे जुड़ती हैं  , हर रिश्तों की कड़ियां।
    अनमोल है बेटियां……

    माता-पिता के खुशी का,तुझे अहसास ।
    और हर  कष्टों में ,माता-पिता के साथ ।
    धूप लगे तो, बनती छाया जिनके लिये ।
    आखिर क्यों ?हो जाती विदाई,बेटियां ।
    अनमोल है बेटियां….

    (रचयिता :-मनीभाई नवरत्न, छत्तीसगढ़ )

    जीवन तो यारा है क्षणभंगुर

    आया है तो , जाएगा जरूर ।
    जीवन तो यारा,है क्षणभंगुर।
    कौन जाने मौत कहां, कितनी दूर ?
    जीवन तो यारा , है क्षणभंगुर ।

    क्या है सपना ?क्या है अपना ?
    सोचो तो , कुछ भी नहीं है ।
    कल पास था, वो आज ना ,
    सोचो तो , कुछ ना सही है ।
    ये जाने सारी बातें, फिर भी मजबूर।
    जीवन तो यारा ,है क्षणभंगुर ।।1।।

    जब तक जिया ,हर दर्द सिया।
    मानकर सदा जैसे , यही पे रहेंगे।
    अंधेरा सच दिखा, बुझे जब दीया
    सच्चाई से फिर,इतना क्यों डरेंगे ?
    इरादा है अब ,अलविदा कहूं होके मशहूर ।
    जीवन तो यारा, है क्षणभंगुर।।2।।
    (✒️मनीभाई’नवरत्न’)

    ये कैसा संसार है- संसार पर कविता


    इस दुनिया में कोई लाचार है,कोई बेकार है ।
    यहां रोटी के लिए ,मरने मारने को तैयार हैं ।
    ये कैसा संसार है ……


    इस भीड़-भाड़ जिन्दगी में सबने मेले सजाये,
    यहां अच्छे खासों की आबरू,हुई शर्मशार है।
    ये कैसा संसार है…..


    बनके बहुरूपिया, खेल दिखाये बाजीगर के ,
    असली जिन्दगी में जिनकी,हरओर से हार है।
    ये कैसा संसार है …..

    बड़े जताते छोटों पर ,अपनी मालिकाना हक
    अपनापन कोसों दूर, मतलब का परिवार है।
    ये कैसा संसार है…….


    दिनोंदिन चकाचौंध होता रहा ,मेरा ये शहर
    दिल के कोने तो सबके,फरेब का अंधकार है।
    ये कैसा संसार है…….

    (✒मनीभाई ‘नवरत्न’ छत्तीसगढ़)

    शादी एल्बम पर कविता

    आज ना जाने , मन ने
    शादी एल्बम

    देखने की लालसा की।
    मैंने वक्त की दुहाई दी
    पर वो माना नहीं।
    एल्बम देखते ही लगा लिया
    जिन्दगी की रिवर्स गियर
    और रोका ऐसी जगह
    जहां मुझे मिले
    हंसते चिढ़ाते मेरे दोस्त।
    ना जाने कहां खो गये थे
    जीवन के आपाधापी में।
    या मैंने ही
    मुंह फेर लिया था उनसे
    चूंकि अक्सर बदल जाते हैं लोग
    जिनकी शादी हो जाती है।

    इस पल सजीव हो उठा हूं
    बहुत दिनों बाद
    लबों की टेढ़ी नाव बह रही है
    यादों के समन्दर में।
    अचानक आती है कहीं से आंधी
    और छा जाती है गहरा सन्नाटा
    यारों से बिछड़ जाने के ग़म से
    लहरें टकराकर छलक जाती है
    पलकों के किनारे से
    नदी बह जाती है
    सुर्ख गालों के मैदान में।

    ये जीवन अजीब रंगमंच है
    जहां हम व्यस्त हैं
    अनेकों किरदार की भूमिका में।
    जहां कोई रिटेक नहीं,
    भावी सीन का पता नहीं
    मैं अपने फिल्म का हीरो।
    यादों के दलदल में और फंसता
    इससे पहले कि
    मेरी हीरोइन की आवाज आई
    “काम पे नहीं जाना क्या?”
    और मैं खड़ा हो गया
    अगली शूटिंग में जाने को
    नये किरदार निभाने को।।


    ✒️ मनीभाई’नवरत्न’
    बसना, महासमुंद,छग

    संघर्ष और सुरक्षा पर कविता

    दो नन्हें नन्हें पौधे, पास-पास में थे उगे।
    एक दूजे के सुख-दुख में ,सदा से  लगे।
    एक दिन आई जंगल में भीषण आंधी।
    चंद वृक्ष ही बच पाये, उखड़ गए बाकी।

    दोनों पौधों को अबसे ,होने लगा था डर।
    यहीं जमें रहे तो एकदिन,जायेंगे बिखर।
    एक  बोला -“नियति पर अपना वश नहीं।
    मेहनत से जड़ें मजबूत करें, यही है सही।”

    दूसरा पौधा यह सुनके जोर जोर से हंसा ।
    उसको अपने शक्ति पर, नहीं था भरोसा ।
    बोला-“बेहतर होगा, ढूंढले सुरक्षित स्थान ।
    बड़े वृक्ष के बीच रहे तो, बची रहेगी जान।”

    पहला बोला- “मैं करूंगा सच  का सामना ।
    सुरक्षा में जीने से श्रेष्ठ ,संघर्ष में मर जाना।”
    मतभेद हो जाने से, टूट गई उनकी मित्रता।
    एक घने वन के बीच, दूजा खुला में रहता ।

    खुली हवा में सहता, वह रोज हवा थपेड़े ।
    होती बारिश बौंछारें और तेज सूर्य किरणें ।
    पर हार न माना , करता रोज ऊर्जासंचार ।
    जीवन में  चुनौती, कर चुका था स्वीकार ।

    जीत लेकर आती ,जीवन में हरेक चुनौतियां।

    आत्मविश्वास बढ़ाये,और आंतरिक शक्तियां।
    विकासयात्रा में पौधा,एक दिन वृक्ष बन गया ।
    उसी जगह में मजबूत होके ,अडिग तन गया ।

    दूजे पौधे को मिली, माना जंगल की सुरक्षा ।
    हवा तेज धूप न पाये, रह गया बीमार बच्चा ।
    कहीं हम तो नहीं चाहते,ऐसी सुरक्षा घेराव ।
    बिना संघर्ष किये हो जाये, खुद का बचाव।

    मानव जीवन को होना पड़ेगा संघर्ष प्रधान।
    वरना रह जायेंगे , अपने शक्ति से अनजान।
    सुरक्षा की खोज, हमें बना देती है कमजोर।
    सब आसान हो जाएगा, जब लगायेंगे जोर।

    ✒️ मनीभाई’नवरत्न’, बसना महासमुंद छग

    मुझे तो जीना है

    चलो आज
    हो चलें तन्हा।
    कब से तड़प रहा है,
    कुछ कहने को;
    ये दिल नन्हा।
    शहर से दूर
    सागर किनारे,
    मिलने जाना है खुद से।
    जो पास होके भी होता नहीं
    छू कर आना है 
    वजूद से।
    कब तक दौड़ूगां
    आखिर
    किस मंजिल की तलाश है?
    वो सब छोड़ जाना है
    जो भी मेरे पास है।
    तरंगों के जाल में
    मैं महसूस करता हूं
    फंसा हुआ।
    मुझे याद करने हैं
    वो पल
    जब था हंसा हुआ
    मेरी रफ़्तार
    रूकती क्यों नहीं
    चाहता हूं थम जाना
    किनारों का मोह टूटा
    मेरी इच्छा-सूची में
    शामिल चुकी है,
    बह जाना।
    क्या ये सूचक है?
    आत्मघात के
    पर मुझे तो जीना है
    वो जिंदगी
    जो अब तक जी न सका हूं।


    ✒️ मनीभाई’नवरत्न’ की डायरी से

    अब बसंत पास

    मदमस्त    चमन
    अलमस्त  पवन
    मिल रहे  हैं देखो,
    पाकर  सूनापन।

    उड़ता है सौरभ,
    बिखरता पराग।
    रंग बिरंगा सजे
    मनहर ये बाग।

    लोभी ये मधुकर
    फूलों पे है नजर
    गीला कर चाहता
    निज शुष्क अधर।

    सजती है धरती
    निर्मल है आकाश।
    पंछी का कलरव,
    अब बसंत पास।


    ✒️ मनीभाई’नवरत्न’

    लक्ष्मण रेखा

    जब भी देखता हूं
    उसका चेहरा
    उन्माद छा जाता मुझमें
    उसमें जो बात है
    वो उसकी छायाचित्र में भी
    रंच कम नहीं।
    उंगलियों से यात्रा करता
    उसे पाने को तस्वीर में,
    मंजिल तलाशता।
    इस राह में पर्वतश्रृंखला है
    तो गहरी खाईयां भी।
    जिसमें बार-बार चढ़ता
    बार-बार गिरता
    बिखरता
    खुद को बटोरता
    उसकी मुस्कान की
    टेढ़ी नाव लेकर
    नैनों की झील पार करता।
    माथे के सितारे से
    अंधेरी गलियों से निकलता।
    परन्तु उफ़!
    ये रक्त-सी लक्ष्मण-रेखा माँग ।
    मेरी मनोवृत्ति को
    झकझोर दिया।
    फिर मैंने गौर किया-
    ये वासना थी
    जो सदैव बहकाती
    रति के वेश में
    प्रेम तो बिल्कुल नहीं।
    ✒️ मनीभाई’नवरत्न’ छत्तीसगढ़

    समय प्रबंधन

    हर लम्हाँ कुछ कहता है ,
    पर शायद कोई सुन पाए ।
    जो न सुन पाता इसकी बोली,
    ढूंढता रहता उसे हर लम्हाँ ।।

    जिसने जाना समय की कीमत
    समय ने उसे कीमती बना दिया
    समय के दायरे में रहकर जो पला
    रहा ना कभी वो, जीवन में तन्हा।।

    वैसे हर कोई पैदा हुआ है
    समय की गिनती लेकर ।
    और उल्टी गिनती शुरु है
    यह बताती घड़ी की सुइयां ।।

    समय कैसे देती है घाव?
    पुछे मरणासन्न व्यक्ति को
    बता देगा हर पल की घात।
    खोई हुई पल की कहानियां ।।

    यह समय ही तो है
    जो राजा को रंक बना दे।
    पतित को शिखर पहुंचा दे।
    बिना एक पल भी देर किए।

    गर समय पर सवार होना हो
    और मनमाफिक काम लेना हो
    तो एक ही राह नजर आती है
    वो है “समय प्रबंधन”।।

    ✒️ मनीभाई’नवरत्न’

    युवा  चेतना

    देश की हालात देख, मेरा मन भर आया।
    बाहर शांत और अंदर घनी उदासी छाया।
    समाधान के लिए मुझे मेरा मन उकसाया।
    दशा सुधार हेतु ,युवा को आधार बनाया।।

    युवा के आवारापन ने,   मुझे बैचेन किया।
    किंतु जग को उजाला करने हेतु वही दीया ।
    देश की हालत जानके भी,युवा अनजाना।
    ऐसे युवा को चाहिए,लज्जा से  मर जाना।

    शक्ति तुझमें नहीं रही तो पहन ले चूड़ी।
    या आगे बढ़ना हो तो मेहनत कर कड़ी।
    माना देश की सम्पत्ति,  अंग्रेजों ने लूटा।
    पर उस हेतु तो,वीर क्रांतिकारी दल टूटा।

    वो ताकत का जज्बा,आज तुझमे कहां है ?
    प्रश्न करूं मैं कि वह जोश  तुझमें कहां है ?
    मत ऐसा ऊंघो,कि अंग्रेज दुबारा आ जाएं ।
    तुम जैसे लाचारों के फिर श्मशान  बन जाए।

    कौन कहता है समय नहीं रहा बदलाव में ?
    हां!समय ना रहा अब  अविचल ठहराव में ।
    प्रगति कर ऐसे, पीढ़ियों तक तेरा असर रहे।
    देश ही क्या? परदेश में भी तेरा  कहर रहे।।

    देश विकास के लिए एक तू ही बुनियाद है ।
    मेरे रचना का आज तुझसे यही फरियाद है।


    ✒️ मनीभाई ‘नवरत्न’, छत्तीसगढ़
    (१५वर्ष पूर्व रचित मेरी रचना जब मैं ११वीं कक्षा में था, आपको समर्पित है।)

    वो बेबाक कवि है


    (रचयिता:-मनीभाई,भौंरादादर)
    ••••••••••••••••••••••••••••
    कभी कल्पना की पर लगाये।
    कभी भटके को डगर दिखाये।
    कभी करें हंसी ठिठोली ,
    कभी करें क्रांति की बोली।
    वह कोई नहीं
    समाज का उगता रवि है ।
    हां ! वो बेबाक कवि है ।।

    चारण बन राजा का गुणगान किया।
    आत्मविश्वास भर चरित बखान किया ।
    भक्तिधारा बहा के,मानव मूल्य संजोया।
    काव्य श्रृंगार करके प्रेम बीज बोया।
    रंजन किया जग का,
    मन में जिसकी छवि है ।
    हां ! वो बेबाक कवि है ।।

    खादी-कुर्ता,कलम दवात,कांधे में झोली ।
    साहित्य सृजनकर्ता वो ,किताब हमजोली।
    गुदगुदाया जी भर के, कभी संग हमारे रो ली ।
    कुरीति दूर करने को , सहे ताने की गोली ।
    जिसकी रचना कोई खोज ,
    हर पुरातन से नवी है ।
    हां ! वो बेबाक कवि है ।।


    ©®मनीभाई’नवरत्न’

    गर हम कहते हैं


    गर हम कहते हैं
    कोई ऊंच-नीच नहीं है।
    तो फिर हम
    डरे क्यों किसी से ?
    सबका सरकार एक है ।
    सबका अधिकार एक है ।
    सबका रिश्ता इंसानियत का
    सबका आधार एक है ।
    गर हम कहते हैं
    भारत माँ के सब बेटे हैं
    तो फिर
    उलझे क्यूँ किसी से ?
    सबका भगवान एक है ।
    सबकी मुस्कान एक है ।
    सबकी भावना एक सी
    सबकी जुबान एक है ।
    गर हम कहते हैं
    इस देश के रखवाले हैं ।
    तो फिर
    बँटे क्यों एक दूसरे से ?
    संघ समाज एक है
    रीति रिवाज एक है ।
    एक है रंग रुप भाषा
    वेशभूषा साज एक है ।
    गर हम कहते हैं
    कि हम स्वतंत्र हैं
    तो फिर हम
    दबकर रहे क्यों किसी से?
    आओ भर लें उड़ान।
    देखें हमें सारा जहान।
    स्वयं को लें पहचान।
    देश को करें महान।।

    ✒️ मनीभाई’नवरत्न’,छत्तीसगढ़

    प्रेम की परिभाषा

    प्रेम वो धुरी है
    जिसके बिना
    जिंदगी अधुरी है।


    प्रेम जरूरी है
    छलछद्म,ईर्ष्या
    बहुत ही बुरी है।


    प्रेम संसार है
    सुख शांति का
    एक आधार है।


    प्रेम  शक्ति है
    ईश्वरीय दर्शन
    श्रद्धा भक्ति है।


    प्रेम अनुराग है
    मात्र चाह नहीं
    सच्चा त्याग है।


    प्रेम परीक्षा है
    मानव बनने की
    एक दीक्षा है।


    प्रेम प्रतीज्ञा है
    संकट क्षण में
    सच्ची प्रज्ञा है।


    प्रेम  सूक्ति है
    मोह माया से
    मोक्ष मुक्ति है।


    प्रेम परमात्मा है
    प्रतिशोध से दूर
    त्रुटि पर क्षमा है।

    प्रेम वो डोर है
    दोनों ही सिरा
    जन्नत ओर है।


    प्रेम एक रंग है
    ख़ुदी खोने की
    सरल  ढंग  है।

    प्रेम क्या है?
    दिल की तू सुन
    वहां सब बयां है।


    ✒️ मनीभाई’नवरत्न’, छत्तीसगढ़

    कल दे देना किश्त में

    नहीं है कोई चिंता की बात,
    जनाब हम हैं,आपके साथ।
    आज खाली है आपके हाथ!
    भाई! कल दे देना किश्त में।


    क्या सुख सुविधा है पाना?
    किस में दिल का ठिकाना ?
    ले जाओ ना आप मनमाना,
    बांध करके जरा किश्त में ।

    क्यों रखते हो जी हिसाब?
    हमसे कर लो ना पुछताछ ।
    क्या स्कीम नहीं लाजवाब?
    थोड़ा थोड़ा कर किश्त में।


    लगा ना प्रस्ताव में लाभ।
    संग उपहार भी नायाब।
    मनमोहक सारे असबाब।
    ख्वाब पूरे करो किश्त में।


    फाइनेंसर की सुनकर दलील।
    बेकाबू होने लगा अपना दिल।
    रिकार्ड तोड़ ,बड़ा लिए बिल।
    कर लिये पूरे शौक किश्त में।


    अब चेहरा क्यों है उदास ?
    चीजें आलीशान है पास ।
    क्या करूं एसी की ठंड में
    अब नींद आए किश्त में।।


    हमने शीघ्रता की चाह में
    भटकते जीवन की राह में
    आय से ज्यादा व्यय हुआ
    अब नहीं चाहिए किश्त में।।


    ✒️ मनीभाई’नवरत्न’,छत्तीसगढ़

    एक सवाल है

    ये जीवन शतरंज की चाल है।
    जनाब!आपके क्या ख्याल है?
    जान परखकर आगे बढ़ना ।
    गिर-गिर के, जरा  संभलना।
    भूल-भुलैया ख्वाबों का ठौर
    ख्वाह चुरा ना ले कोई  और
    यहां पग-पग में बिछी जाल है।
    हर कदम बना , एक सवाल है ।
    अजनबियों से रिश्ते बनते हैं ।
    दो कदम चलके बिखरते हैं ।
    ये रिश्ते महज होते हैं भ्रांति।
    लूट लेते हैं,  मन की शांति।
    रिश्तों की ज़िन्दगी कमाल है।
    ये रिश्ते नाते , एक सवाल है ।
    पल पल में  मिलता है मौका ।
    ये मौका ,हो सकता है धोखा ।
    जब भी इन्हें पाना, तू बेखबर ।
    हो जाना चौकन्ना , हर डगर ।
    मौका पाने को ही,मचे बवाल है।
    हर मौके में तो, एक सवाल है ।।

    मनीभाई’नवरत्न’ छत्तीसगढ़

    ईश्वर रूपी सत्य

    मैं सत्य मान बैठा प्रकाश को ,
    पर वह तो रवि से है।
    जैसे काव्य की हर पंक्तियां
    कवि से है ।


    धारा, किनारा कुछ नहीं होता ।
    नदी के बिन।
    नदी का भी कहां अस्तित्व है?
    जल के बिन।
    प्राण है तो तन है ।
    ठीक वैसे ही,
    तन है तो प्राण है ।
    भूखंड है तो विचरते जीव।
    वायु है तो उड़ते नभचर ।
    मानव है तो धर्म है ।
    वरना कैसे पनपती जातियां ,
    भाषाएं ,रीति-रिवाजें,
    खोखली परंपराएं ।


    रात है तो दिन है ।
    सुख का अहसास गम से है ।
    मूल क्या है ?
    खुलती नहीं क्यों ?
    रहस्यमयी पर्दा।
    असहाय,बेबस दे देते
    ईश्वर का रूप।
    कुछ जिद्दी ऐसे भी हैं
    जो थके नहीं ?
    तर्क- वितर्क चिंतन से।
    खोज रहे हैं राहें ,
    अंधेरी गलियों में
    सहज व सरल ।


    कुछ खोते ,कुछ पाते।
    विकास की नींव जमाते।
    फिर भी सत्य अभी दूर है ।
    जाने कब सफर खत्म हो
    और मिल जाए हमें,
    सत्य रूपी ईश्वर..
    ईश्वर रूपी सत्य…


    ✍मनीभाई”नवरत्न”