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  • श्याम चौपाई-पुष्पा शर्मा “कुसुम”

    श्याम चौपाई-पुष्पा शर्मा “कुसुम”

    श्याम चौपाई

    श्याम भक्ति मीरा मन भाई।
    दीन्हे सकल काज बिसराई ।।
    करहि भजन सेवा अरु पूजा।
    एक देव और नहीं दूजा।।


    नाचहि गावहि धरियहि  ध्याना ।
    प्रेम सहित गिरधर पति माना ।।
    सतत करहि सन्तन सन्माना।
    रचना कर गावहि पद नाना ।

    राणा का जब कहा न माना
    कुपित भये दीन्हे दुख नाना ।।
    चरणामृत कह विष भिजवाया ।
    पीवत मुदित परम सुख पावा ।।

    पुष्पा शर्मा “कुसुम”

  • सुप्रभात वंदन -नमन वंदन वीणावादनी

    सुप्रभात वंदन -नमन वंदन वीणावादनी

    सुप्रभात वंदन -नमन वंदन वीणावादनी

    नमन वंदन वीणावादनी,
                    सुर नर मुनि जन पूजे ज्ञानी।
    वाणी में विराजती माता,
                     माँ  शारदे  बड़ी  वरदानी।।
    राह सच जो चलता हमेशा,
                     ज्ञान मातु नित नित वह पाया।
    मिले नित साहस लेखनी को,
                     मातु शरण मैं तेरे आया।।
                          …….भुवन बिष्ट

  • तू कदम बढाकर देख

    तू कदम बढाकर देख

    •तू कदम बढाकर देख•

    मंजिल बुला रही है
    तू कदम बढाकर  देख
    खुशियाँ गुनगुना रही है
    तू गीत गाकर देख

    काँटे ही नहीं पथ में,
    फूल भी तुम्हें मिलेंगे
    पतझड़ का गम ना करना,
    गुलशन भी तो खिलेंगे

    बहारें बुला रहीं है,
    कोंपल लगाकर देख

    पीसती है जब वसुंधरा
    तभी दामन होता है हरा
    तप-तप कर अग्नि में ही
    कुंदन होता है खरा

    जिन्दगी मुस्कुरा रही है
    तू सर उठाकर देख

    कदम -कदम चलके ही
    मंजिल है पास आती
    चलकर काँटों से ही
    खुशियाँ गले लगाती

    राह जगमगा रही है
    तू शमां जलाकर देख

    मन की बात क्या है
    अंधेरी रात क्या है
    विश्वास ही जिंदगी है
    थकने की बात क्या है

    विजया बुला रही है
    तू आस लगाकर देख

    सुधा शर्मा
    राजिम छत्तीसगढ़

  • मुसाफिर हैं हम जीवन पथ के

    मुसाफिर हैं हम जीवन पथ के

    मुसाफिर हैं हम जीवन पथ के

    मुसाफिर हैं हम जीवन पथ के
    राहें सबकी अलग-अलग
    धूप-छांव पथ के साथी हैं
    मंज़िल की है सबको ललक।

    राही हैं संघर्ष शील सब
    दामन में प्यार हो चाहे कसक
    पीड़ा के शोलों में है कोई
    कोई पा जाता खुशियों का फलक।

    मुसाफिर हूँ मैं उस डगर की
    काँटों पर जो नित रोज चला
    मधुऋतु हो या निदाघ, पावस
    कुसुम सदा काँटों में खिला।

    संघर्ष ही मुसाफिर की जीवन तान
    अंतर्मन बेचैन हो चाहे
    जिजीविषा प्रचंड बलवान।
    अनुकूल समय की आशा ही
    पथिक के कंटक पथ की शान।

    जीवन पथ के अनजान मुसाफिर
    झंझा से नित टकराते हैं
    नैया बिन पतवार हो गर तो
    भंवर में भी राह बनाते हैं।

      गर्त हैं अनजानी राहों में कई
    चुनौतियों के भी शिखर खड़े हैं
    मुसाफिर असमंजस में होता है
    तमन्नाओं के भी महल बड़े हैं।

    जीवन पथ संग्राम सा भीषण
    उल्फत नहीं उदासी है
    मृगतृष्णा का मंजर मरु में
    मुसाफिर की रूह भी प्यासी  है।

    सुख दुख में समभावी बनकर
    राही को मंज़िल मिलती है
    अदम्य साहस है नींव विजय की
    अमावस्या भी धवल बनती है।

    मुसाफ़िर हूँ मैं अजब अलबेली
    हिम्मत शूलों पर चलने की
    पथरीले पथ पर लक्ष्य है कुसुम का
    नैराश्य त्राण को हरने की।

    कुसुम लता पुंडोरा

  • स्वालंबन पर कविता

    स्वालंबन पर कविता

    स्वालंबन पर कविता

    स्वालंबन है जीवन अवलंबन
    बिन स्वावलंब जीवन है बंधन
    स्वावलंबन ही है आत्मनिर्भरता
    बिन इसके जीवन दीप न जलता।

    स्वालंबन जग में पहचान कराता
    शिक्षा का सदुपयोग सिखाता
    निराशा में भी आशा भरता
    ऊसर में भी प्रसून खिलाता।

    अपना दीपक स्वयं बनो
    स्वालंबन ही है सिखलाता
    जीने का दृष्टिकोण बदलना
    स्वालंबी है कर दिखलाता।

    स्वालंबन है आत्म अवलंबन
    आत्म अवलंबन जब आता है
    तो आत्मसम्मान जाग जाता है
    आत्मावलंबी स्वयं ही सारे अभाव मिटाता है
    नहीं ताकता मुँह किसी का
    सम्मान की रोटी खाता है।

    स्वालंबन की भूख ही जीवन सफल बनाती है
    परालंबन का यह कलंक मिटाती  है
    स्वालंबन से सुख न मिले तो क्या
    स्वात्मा खुशी से तो इठलाती है।

    परावलंबी की आत्मा स्वप्न में भी न सुख पाती है
    स्वालंबन भले बुरे का भेद मिटाती है
    आत्मसम्मान जगता है जब
    आत्मा हर्षित हो जाती है।

    स्वालंबन का पथ ही सत्य संकल्प है
    आत्मसम्मान से जीने का न कोई विकल्प है
    स्वालंबन पर न्योछावर कुबेर का खजाना है
    स्वालंबन को सबने जीवन रेखा माना है।

    स्वालंबन के आनंद का न कोई अंत है
    स्वालंबन का सुख दिग दिगंत है
    अपना हाथ जगन्नाथ हो कुसुम तो
    पतझड़ भी लगता वसंत है।

    कुसुम लता पुंडोरा