पाती सैनिक का पत्नी के नाम

पाती सैनिक का पत्नी के नाम

प्राण पिआरी दिल की रानी  | सदा सुहागिन होउ सयानी   ||
आज तेरी चिट्ठी क्या आई   |  याद मुझे सबकी है सताई  ||
वन्दवुं प्रथम बाबा अरु दादी | सीस झुकाऊँ मातु पिता जी  ||
कैसे हैं सब चाचा चाची     | बडकी मैया बड़े पिता जी   ||
गुडिया जैसी कैसी बहना    | आशिर्वाद उसे भी कहना    ||
भैया भाभी चरण मनाऊँ    | सिया राम जैसे गुण गाऊँ   ||
अनुज कहो कैसा है मेरा    | इहां उहां करता क्या फेरा    ||
करे पढाई मन से कहना    | पढ लिख कर फौजी है बनना ||
चन्ठ भतीजा और भतीजी   | कैसी है हम सबकी जीजी    ||
प्यारा बेटा प्यारी बेटी      | कैसे गांव गली अरु खेती     ||
बड़े दिनों में पाती पाया    | पढते पढते आंसू आया       ||
मै लिखता सनेह से पाती   | भरि आई लिखते मम छाती  ||
पिछली छुट्टी में घर आया  | खुशियाँ था भरपूर मनाया    ||
माँ के हाथों का वो खाना  | आंचल से मुझको दुलराना    ||
आती मुझको याद तिहारी  | भूल न पाऊँ तुमको प्यारी    ||
हर पल रखती ध्यान हमारा | अपना सब कुछ मुझ पर वारा ||
बात बात में वो इतराना    | मंद मंद तेरा मुसुकाना      ||
छाई थी तुमपे हरियाली    | होठों पे सजती थी लाली     ||
करती थी तुम नैन इशारे   | इक दूजे को सदा निहारे    ||
जाने का दिन जब था आया | आँखों ने आंसू छलकाया    ||
रो रो मेरी करी विदाई      | वारि बिना जिमि नदी सुहाई ||
वच्चों का रोना बिलखाना   | बापू जल्दी वापस आना     ||
गले लगाके मैया रोई      | बापू की आँखें थी खोई      ||
यूनिट में था जब मै आया  | सबने मिलकर गले लगाया   ||
मिलकर सबने बैग थे खोले  | भाभी ने क्या भेजा बोले    ||
जो भी था सब मिलके खाए  | आपस में सब खूब हँसाए   ||
और सुनाओ प्राण पिआरी    | लगे मोहिनी मोपर डारी    ||
जो जो मन्नत बचा तिहारा   | अबकी पूरा करना सारा    ||
छोटू का मुंडन है करना      | मन्नत का धागा है बधना  ||
सीमा पे अभी युद्ध की हलचल | रक्षा में रहते हम प्रतिपल  ||
सारा भारत परिवार हमारा    | मातृभूमि पे जीवन वारा    ||
छुट्टी मिलते ही आऊँगा      | सबकी खुशियाँ लौटाऊंगा    ||
छोटू का भी टैंक खिलौना    | बिटिया के गुडिया का गहना ||
और सभी का लीस्ट बनाया  | तेरे झुमके को बनवाया     ||
पत्र नही दिल इसको मानो  | बाँहों में मुझको हूँ जानो    ||
कभी नही रोना तुम प्यारी  | हर पल है आशिष हमारी    ||
पाती पढते पढते हलचल   | बाहर झांकी ठहर गया पल   ||
सैनिक गाड़ी द्वारे आई    | सहम गई कुछ बोल न पाई  ||
देखा इक शव उसमे आया  | जो है तिरंगे में लिपटाया    ||
भीड़ बड़ी द्वारे है मोहन     | रुक गइ जैसे सबकी धड़कन ||
पति पहिचानि के पिटहि छाती | पर धीरज मन में है लाती  ||
अजर अमर  हो पिया हमारे   | जोर जोर जय हिंद पुकारे  ||
अजर अमर  हो पिया हमारे   | जोर जोर जय हिंद पुकारे  ||
मोहन श्रीवास्तव
कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद

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