नवीन कल्पना करो- गोपालसिंह नेपाली
नवीन कल्पना करो तुम कल्पना करो, नवीन कल्पना करो। तुम कल्पना करो। अब घिस गईं समाज की तमाम नीतियाँ,अब घिस गईं मनुष्य की अतीत रीतियाँ,हैं दे रहीं चुनौतियाँ तुम्हें कुरीतियाँ,निज राष्ट्र के शरीर के सिंगार के लिए-तुम कल्पना करो, नवीन कल्पना करो। तुम कल्पना करो जंजीर टूटती कभी न अश्रु-धार से,दुख-दर्द दूर भागते नहीं दुलार … Read more