पर्यावरण संकट
जीवन है अनमोल,
सुरक्षित कहां फिर उसका जीवन है,
प्रक्रति के दुश्मन तो स्वयं मानव है,
हर तरफ प्रदूषण से घिरी हमारी जान हैं,
फिर भी हर वक्त बने हम कितने नादान है।
मानव हो मानवता का
कुछ तो धरम करो,
जीवन के बिगड़ते रवैय्ये का
कुछ तो करम करो
चारो ओर मचा हाहाकार है
प्रदूषण का डंका बजा है।
वायु, मर्दा, ध्वनि जल
सब है इसके चपेट में।
ये सुरक्षित तो सुखी हर इंसान है।
हर तरफ प्रदूषण से घिरी जान है ।
फिर भी हर वक्त ……..
दूर-दूर तक फैली थी हरियाली,
जिससे मिलती थी खुशहाली,
धड़ल्ले से कटते वन,जंगल सारे,
हरियाली का चारो तरफ तेजी से उठान है,
बिना वृक्ष के जीवन कैसा विरान है।
फिर भी हर वक्त ……
नदियां की थी पावन धारा
मानव ने ही दूषित किया सारा,
जल जीवन के संकट से,
कैसे उभरे इसके कष्ट से,
आओ ढूढे इसके कारण
जिससे मानव जीवन ही परेशान है।
फिर भी हर वक्त बने हम कितने नादान है।
माधवी गणवीर
राजनादगांव
कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद
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